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Vikash Sancheti
I am delighted because अंधेरे को मिटना होगा, रोशन ये शमा होगा। ढलती सांझ के बाद सवेरा फिर होना है
ढलती सांझ के बाद सवेरा फिर होना है
read moreShashank Rastogi
दुनिया का हर अंधेरा कभी ना कभी रौशन होता है हर उदासी भरी रात के बाद एक उज्जवल सवेरा होता है रात और सवेरा #रात #सवेरा
Author Harsh Ranjan
हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है
सवेरा कहीं और है
read moreAuthor Harsh Ranjan
हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है
सवेरा कहीं और है
read moreH I m a n s h u
अब नहीं होता , वो पहले सा सुहाना सवेरा अब नहीं होती , वो पहले सी हसीन शाम पहले , तुम्हारे मेसेज और कॉल से मेरी नींद खुलती थी अब पल ,मिनट , घंटे , दिन , हफ्ते, महीनों , और एक अरसा बीत गया .... वो पहले सा सुहाना सवेरा नहीं होता अब नहीं होती वो पहले सी हसीन शाम । एक वक़्त था , जब प्यार था , लडाई थी , रूठना ,और मनाना था एक पागल थी , लडती भी थी , नाराज़ भी होती थी , और रोती भी थी , फिर भी वही सुहाना सवेरा होता था , और वही हसीन शाम होती थी । पर ,अब नहीं होता, वो पहले सा सुहाना सवेरा अब नहीं होती वो पहले सी हसीन शाम। याद है तुम्हे वो दिन , जब घंटो बाते होती थी , रातों कूलर की आवाज़ और रजाई की आहट में खुस फुसाहट भरी आवाज़ में बाते करती थी याद है जब तुम अपने पापा , मा का फोन चोरी छुपे लेकर कभी calls to kbhi chat Kiya Karti thi याद है क्या जब तुम्हारी प्यारी प्यारी बातो में मै बिन बोले , जैसे लोरी सी सुनकर सो जाया करता था , याद है जब मेरे ढेर सारे sorry messages के साथ तुम्हारा सुहाना सवेरा होता था याद है जब सुबह morning wale message notification ki ring सुनकर मै फोन पर टूट पड़ता था नींद में भी अब तो ना वो सुहाना सवेरा होता है , ना ही वो हसी शाम ना वो बेईमान मौसम ही होता है ।, ना अब वो परिंदो की आवाज़ सुनाई देती है , ना सुनहरा सा सूरज देखने को मिलता है ना अब वो खुशनुमा शाम ही दिखती है अब नहीं होता वो सुहाना सवेरा, अब नहीं होती वो हसीन शाम भी ....... -KRISHNASHU सुहाना सवेरा और हसीन शाम
सुहाना सवेरा और हसीन शाम
read moreSUNIL KUMAR VERMA
*सांझ* कई बार जाने क्यूं ऐसा भी होता है? मंजिलों को पाकर लौटना जरूरी होता है. ©SUNIL KUMAR VERMA सांझ
सांझ
read moreShashi Ranjan
साँझ जब सूरज की किरणें थकने को होती है जब चांद के दीदार को दिल बेकरार होता है हर परिंदा लौटता है घर अपने जब अपनों से मिलन को मन तैयार होता है। उस वक़्त एक कसक सी उठती है जिया में आंखे ढूंढ़ती हैं तुझको परिंदों की आवाजें झिंझोड़ते हैं मुझको कोई आवाज आती है उस आसमा की लाली से एक दर्द उठती है सूखे पेड़ो की डाली से कोई तो लौटा दो मेरे सांझ के सहारे को मेरे पत्तियां मेरे हमसफ़र मेरे साखों की हरियाली को ये सांझ की तन्हाई क्यों तोड़ देते है मुझे इस वक़्त में अपने मेरे क्यों छोड़ देते हैं मुझे।। सांझ
सांझ
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