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Niaz (Harf)
गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं मगर, टूटे आईनों में सूझते हैं। रोटी के टुकड़ों में बंटा है सारा वजूद, हर ख्वाहिश पर लगता है जैसे कोई सूद। आंखों में आंसू, दिल में हसरतें दबती हैं, हर सुबह उम्मीदें फिर से मरती हैं। नहीं हैं किताबें, ना खेलों की बात, बस मेहनत में बीतता है बचपन का हर रात। वो टूटी हुई झोपड़ी, वो सूना सा चूल्हा, दौलत के आगे सब कुछ यहाँ बेमानी सा लगता है। कभी उम्मीदें होती हैं, कभी दिल तंग होता है, गरीबी में हर इंसान का सपना अधूरा सा रहता है। इस अंधेरी रात में बस एक ख्वाब है रोशनी का, शायद कभी खत्म हो ये दर्द गरीबी का। ©Niaz (Harf) गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं म
गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं म
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्ने की पिराई दी है ये रक़म हाथ न ऐसे आयी भर के बोरी आज राई दी है ख़ूब ऊँचा है किसानों में जो बीच में छोड़ पढ़ाई दी है आज औलाद मज़ा है करती क्योंकि हमने ही ढिलाई दी है आसमां छू रही मँहगाई को कर में देखा न रिहाई दी है घूस से तोंद उन्हीं की भारी जिनके कपड़ों की सिलाई दी है ये फ़सल आज प्रखर तुम देखो इसकी हमने ही सिंचाई दी है महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न
ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न
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