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Parasram Arora
उसने नहीं मारा जूता किसी बुरे को न उसने दिया सम्मान किसी भले को जो बुरा हैँ बुरा ही रहा जो भला हैँ वो भला ही न उसने कभी निंदा की हैँ किसी बुरे की न उसने स्तुति ही की हैँ किसी भले की वो तो वैसा ही रहा जस का तस निरमोही निरपक्ष निरमोही निरपक्ष.......
निरमोही निरपक्ष.......
read moreHarshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat मऩन कथंन चलन। व्यांकुल पमाद प्रताप। विचार निरमोही साकार। #words #feelings #meaning #depth #yqdidi #yqbaba Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat मऩन कथंन चलन। व्यांकुल पमाद प्रताप। विचार निरमोही साकार
Ujjwal Sharma
रात का आखरी आँसू और ये दूरी तुम्हें नही लगता ये ज़्याती है ? एक साल होने को आया है और एक तुम हो जो किसी निरमोही की तरह तटस्थ विलीन हो ब्रम्हांड के किसी कोने में मैं शैलपुत्री तो नहीं पर मीरा से कम कठिन जीवन नहीं है मेरा कभी कभी लगता हैं जैसे जीवन बीते है मेरे इस झरोके पे देखते तुम्हारी राह यहाँ से एक धुंदला सा साया तो दिखता हैं पर तुम नहीं मुझे याद है वो रात लेकर मुझे अपनी बाजुओं में तुमने मुझे रंगा था वो रंग हल्का पड़ रहा हैं मैं बेज़ान हो रही हूँ आख़िर उस रंग से मिले भी तो जन्म बीत चुके हैं सुबह होने को आई हैं पर मुझें इंतज़ार हैं उस कस्तूरी की धीमी गंध का जो तुम्हारे होंठो की मुस्कान से आती हैं मैं तरस गई हूँ क्या करूँ भला तुम ऐसे ही याद जो आते हों सुबह से अगली सुबह तक बस ऐसी ही हर पहर पर एक हिचकी तुम्हारी स्मृतियों के पन्ने पलटती हैं और दे जाती हैं मुझें ठंडक जिसकी हवा से बन जाता हैं एक आँसू और बह जाता हैं वो तुम्हारी राह में। उज्ज्वल~ ©Ujjwal Sharma रात का आखरी आँसू और ये दूरी तुम्हें नही लगता ये ज़्याती है ? एक साल होने को आया है और एक तुम हो जो किसी निरमोही की तरह तटस्थ विलीन हो ब्रम्हा
रात का आखरी आँसू और ये दूरी तुम्हें नही लगता ये ज़्याती है ? एक साल होने को आया है और एक तुम हो जो किसी निरमोही की तरह तटस्थ विलीन हो ब्रम्हा
read morevasundhara pandey
तुम कोमल दूर्वा सी कुम्हला गयी.. देवदार ने चुनौती मृत्यु को दी अपनी हार को दी वो निर्भीक था, निरमोही था, प्रतिरोधी था! वो अड़ा रहा, खड़ा रहा! "तुम फिर शकुंतला सी चंचल बन,मनमोहक नृत्य करोगी किसी दुष्यंत की बिरहा नहीं,अपितु भाग्यस्वामिनी बनोगी " आज तुमने सोचा है तुम हार गयी हाँ तुम हार गयी कठिन शिशिर में वो देवदार का वृक्ष अड़ा रहा! बिना पोषण के बर्फ की परत के नीचे, अपनी इक्षाशक्ति
आज तुमने सोचा है तुम हार गयी हाँ तुम हार गयी कठिन शिशिर में वो देवदार का वृक्ष अड़ा रहा! बिना पोषण के बर्फ की परत के नीचे, अपनी इक्षाशक्ति
read moreHarshita Dawar
गम या घाव गम था की वो हमेशा के लिए नहीं पर अधूरा छोड़ गया कुछ तो ऐसा जिंदगी में काम करता जो पूरा सा कर जाता अधूरे पड़े हर्फ कर्ज़ भी नहीं चुका पाए थे के एक सदमा देकर गया उभार पाई हूं ख़ुद या सेमेटी सी कुछ अनकहे लफ्ज़ बिखर कर गया सभी दराज़ो में जब तलाशी ली तो मिले अध जली तस्वीरों के टुकड़े हवा से राख उड़ता गया जलजला उठ ता रहा बाहर मगर अंदर सब सिकुड़ता दिल छोड़ गया सबके स्वालों में खड़ी एक जिंदा लाश को बदनुमा दाग़ अछूती बातों में कारावास छोड़ गया जैसे तिल तिल कर एक बार जकड़ कर दिल का दौरा बेइमतिहा दिल में दर्द कर जाता है वैसे ही किसी रिश्ते को त्यागना एक तरफा त्याग नहीं होता वो छोटी छोटी बातों को नज़र अंदाज़ करते जाना और आख़िरी में नहीं किसी एक को दोषी करार देकर गुनहगार ठराया जाना स्वालो में एक को खड़ा करना ऐसा किसी के दिल छननी को और जलाने के लिए छोड़ गया निरमोही वो मगर बुद्ध नहीं की पूजा जायेगा इस भूलेखे में त्याग तपस्या नहीं मैं का दामन थाम कर छोड़ गया कोई पिता होकर बेगैरत पर हर पिता इतना खुशनसीब कहा होता है जिसके हिस्से बेटी होकर बेटी का प्यार होता है लाचार समझ ख़ुद को कमज़र पिता ना नाम देकर छोड़ गया कोई मां होकर जिम्मेदारियों में पकती ख़ुद कांटो में काटा सवालों में छाटा पालती पोस्ती मज़बूत बनने के चक्कर में कभी हसीं के साथ ख़ुद आसूयो में भीगो लेती यूंही बिना सोचे छोड़ गया— % & गम या घाव गम था की वो हमेशा के लिए नहीं पर अधूरा छोड़ गया कुछ तो ऐसा जिंदगी में काम करता जो पूरा सा कर जाता अधूरे पड़े हर्फ कर्ज़ भी नहीं चु
गम या घाव गम था की वो हमेशा के लिए नहीं पर अधूरा छोड़ गया कुछ तो ऐसा जिंदगी में काम करता जो पूरा सा कर जाता अधूरे पड़े हर्फ कर्ज़ भी नहीं चु
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छलिया ना राधा का हुआ बैरी न मीरा संग विराजे है सांवरा रंग ही छलिया ये ना कभी लौट आये हैं... भ्रमर आया की नलिनी का समर्पण उमड़ बैठा मेरे बगीचे में बसंत अनायास आ बैठा बहुत टोका लताओं ने कि नलिनी सुन ले बात ये मेरी ये बसंत नहीं रुत स
भ्रमर आया की नलिनी का समर्पण उमड़ बैठा मेरे बगीचे में बसंत अनायास आ बैठा बहुत टोका लताओं ने कि नलिनी सुन ले बात ये मेरी ये बसंत नहीं रुत स
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मेरी बहती कविताएं यह कविताएं विशेष आकस्मिक ही निकली हैं मेरे अंतर्मन से, मैंने जब भी स्वंय को टटोलना चाहा बस अपने भीतर ऐसे ही अनेकों लयबद्ध विचारों को उप
यह कविताएं विशेष आकस्मिक ही निकली हैं मेरे अंतर्मन से, मैंने जब भी स्वंय को टटोलना चाहा बस अपने भीतर ऐसे ही अनेकों लयबद्ध विचारों को उप
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ओ अल्हड़ Dedicating a #testimonial to यशवंत कुमार बंधु, आपके page पर आते ही एक अलग ही एहसास होता था हमेशा ही ऊर्जावान, हिंदी इंग्लिश उर्दू सब एक से
Dedicating a #testimonial to यशवंत कुमार बंधु, आपके page पर आते ही एक अलग ही एहसास होता था हमेशा ही ऊर्जावान, हिंदी इंग्लिश उर्दू सब एक से
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