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New हकदार 1946 Quotes, Status, Photo, Video

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Shivkumar barman

मैं तुम्हारे लिए उस #चांद तारे को इस #जमीन पर ला तो नहीं सकता लेकिन तुम्हें तुम्हारे #हिस्से कि वो मै हर खुशी दे सकता जिसके तुम #हकदार

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मैं तुम्हारे लिए उस चांद तारे को 
इस जमीन् पर ला तो नहीं सकता

लेकिन तुम्हें तुम्हारे हिस्से कि वो
मै हर खुशी दे सकता जिसके तुम हकदार हों...

हा शायद मैं उसमे शामिल न हो पाऊं 
तुम्हारे घर के हर उत्सव में आऊं

लेकिन अगर कभी जो आई मुसीबत मे
 मुझे तुम हमेसा ही मेरा साथ जरूर पाओगे...

हा शायद मैं ना दे पाऊं कभी वो,
 तुम्हें हर वक्त ब्रांडेड गिफ्ट्स या वो खुशियाँ 

लेकिन तुम मेरे साथ रहे अगर तो 
हमेशा वो मन, सम्मान और भरोसा भी पाओगे...

हा शायद तुम्हें डर है 
प्यार, मोहब्बत और इश्क से,
लेकिन क्या मेरे कहने से तुम 
एक बार , मुझ पर वो भरोसा कर पाओगे...

©Shivkumar barman मैं तुम्हारे लिए उस #चांद  तारे को 
इस #जमीन  पर ला तो नहीं सकता

लेकिन तुम्हें तुम्हारे #हिस्से  कि वो
मै हर खुशी दे सकता जिसके तुम #हकदार

Reetu Yadav

मेरी कमियों को दूर करने में में जो मेरे साझेदार नही, मेरे स्वच्छ व्यक्तित्व और निर्मल व्यवहार के वे हकदार नहीं।

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Srinivas

सपनों को हकीकत बनाने का रास्ता सिर्फ मेहनत ही दिखाती है। जो लोग परिश्रम करते हैं, वही इसके असली हकदार बनते

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सपनों को हकीकत बनाने का रास्ता सिर्फ मेहनत ही दिखाती है। जो लोग परिश्रम करते हैं, वही इसके असली हकदार बनते हैं

©Srinivas सपनों को हकीकत बनाने का रास्ता सिर्फ मेहनत ही दिखाती है। जो लोग परिश्रम करते हैं, वही इसके असली हकदार बनते

SK Naim Ali

#love_shayari बस तू ही हकदार बन गया। #sknaimali शायरी हिंदी में शायरी लव शायरी दर्द

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष

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गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष
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