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Stories related to मैं हूँ इस नदिया का बूढ़ा पुल कविता

Prashant Mishra

नदिया का पानी देखता हूँ

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है पड़ी मजधार में ये ज़िंदगानी देखता हूँ
है अधूरी इश्क़ की मेरे  कहानी देखता हूँ
खटखटाकर दिल का दरवाज़ा चली जाती है वो
मैं किनारे सा पड़ा, नदिया का पानी देखता हूँ

--प्रशान्त मिश्रा नदिया का पानी देखता हूँ

kavita singodia

जीवन के इस मोड़ पर अब हो गया हूँ कुछ बूढ़ा मैं .... #DeshKiBetiyaan

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sonia

# मैं नदिया

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मै नदिया
 मैं बहती जाती 
मुहाने पर नव मिट्टी हरिदूब 
सुंदर सुर्ख लाल फूल 
नम धरती में पलता जीवन
 मैं देती जाती
 मैं नदिया मैं बहती जाती
 विश्व की प्रत्येक समर्पण भाव से परिपूर्ण नारी को  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सूर्य प्रभा का सलाम # मैं नदिया

Amit Singhal "Aseemit"

मैं कविता हूँ

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sudesh Kumar

मैं इस देश का सम्मान करता हूँ

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काव्यामृत कोष

मैं जड़ हूँ इस कहानी का.... #MistakeOfMyLife

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Praddip

मैं खामोश हूँ#कविता

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मैं खामोश हूँ

मैं खामोश हूँ
इसिलिए नहीं
कि तुम मेरे पास हो,
मैं खामोश हूँ
इसिलिए नहीं
कि तूम मुझसे दूर हो...
मैं खामोश हूँ
इसिलिए नहीं
कि तुम मेरे नहीं हो,
मैं खामोश तो
इसिलिए हूँ
दिल कुछ कह रहा है
दर्द के पन्ने खोलकर
और मैं सुनता गया
खामोशी से.... मैं खामोश हूँ#कविता

आदर्श सिंह

मैं कविता हूँ.... #colours

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मैं कविता हूँ, हाँ कविता हूँ...-2
मैं कलमकार के कलम से बनकर लोगो को हरषाती हूँ,
मैं जनमानस की खुशियाँ और दुःख दर्द सुनाने आती हूँ।
मैं सच्चाई को लिखकर के लोगो के हक की बात करूँ,
मैं शौर्य कथाएँ लिखकर के वीरों के मत की बात करूँ।
मैं तो सब लोगों के दिल में बहने वाली सरिता हूँ,
मैं कविता हूँ......
मैं कबीर के दोहों सी मैं तुलसी की चौपाई हूँ,
मैं भूषण की हूँ वीर कथा सुभद्रा की अमराई सी।
जब कोई दीवाना कहता है तो मैं कुमार हो जाती हूँ,
मैं काका की हँसी-ठिठोली में भी शुमार हो जाती हूँ।
गर सच्चे मन से लिखी गयी तो मैं सबकी दुख हरिता हूँ,
मैं कविता हूँ.......
                                           - आदर्श सिंह

©आदर्श सिंह मैं कविता हूँ....

#colours

A K

न मैं इस #शहर का हूँ, न मैं उस शहर का हूँ| मैं तो #मुसाफिर हूँ, कभी इस #रास्ते का हूँ, कभी उस रास्ते का हूँ|| - AK wa

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न मैं इस शहर का हूँ,
न मैं उस शहर का हूँ|
 मैं तो  मुसाफिर हूँ,
कभी इस रास्ते का हूँ,
कभी उस रास्ते का हूँ||
                 -   AK

©A K न मैं इस #शहर का हूँ,
न मैं उस शहर का हूँ|
 मैं तो  #मुसाफिर हूँ,
कभी इस #रास्ते का हूँ,
कभी उस रास्ते का हूँ||
                 -   AK

#wa

SHAYARI BOOKS

“मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ, मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ” मैं घोर हूँ अघोर हूँ, व्योम का मैं शोर हूँ” राम का हूँ शील मैं,और रावण का दम्भ हूँ” मैं

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“मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ, मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ”

मैं घोर हूँ अघोर हूँ, व्योम का मैं शोर हूँ”
राम का हूँ शील मैं,और रावण का दम्भ हूँ”
मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ,मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ!

मैं गीता का ज्ञान हूँ,मैं अर्जुन का बाण हूँ”
मैं भीष्म की प्रतिज्ञा, और द्रोण का मैं आन हूँ”
मैं ही प्रत्यंचा हूँ, और मैं ही रंभ हूँ”
मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ, मैं सृष्टि का प्रारंभ हूँ!

मैं ॐ हूँ ओंकार हूँ, मैं जीत हूँ जयकार हूँ”
मैं ही शुभंकर हूँ, मैं हाहाकार हूँ”
हिमालय का हिम मैं,और गंगा का अंभ हूँ”
मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ, मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ!

मैं काल हूँ विकराल हूँ,मैं सूक्ष्म हूँ विशाल हूँ”
त्रिशूल का मैं वार हूँ, मैं डमरू की ताल हूँ”
मैं जीवन हूँ मृत्यु मैं, प्राण का स्तम्भ हूँ”
मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ,मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ!

मैं कंकर हूँ शंकर हूँ,भोला भयंकर हूँ”
देवों का देव और,मैं ही तो किंकर हूँ”
मैं ही हलाहल हूँ, और अमृत कुम्भ हूँ
मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ,मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ!„

©SHAYARI BOOKS “मैं अंत हूँ आरम्भ हूँ, मैं सृष्टि का प्रारम्भ हूँ”

मैं घोर हूँ अघोर हूँ, व्योम का मैं शोर हूँ”
राम का हूँ शील मैं,और रावण का दम्भ हूँ”
मैं
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