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Stories related to hariom pawar poem on kashmir

Sachin mishra

#Hariom pawar

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बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे / हरिओम पंवार
कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का
कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का
एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है
अब तो भूखे पेटों का बागी होना मजबूरी है

जागो कलम पुरोधा जागो मौसम का मजमून लिखो
चम्बल की बागी बंदूकों को ही अब कानून लिखो
हर मजहब के लम्बे-लम्बे खून सने नाखून लिखो
गलियाँ- गलियाँ बस्ती-बस्ती धुआं-गोलियां खून लिखो

हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में
हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में
हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं

जब तक भोली जनता के अधरों पर डर के ताले हैं
तब तक बनकर पांचजन्य हम हर दिन अलख जगायेंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

अगवानी हर परिवर्तन की भेंट चढ़ी बदनामी की
हमने बूढ़े जे.पी. के आँसू की भी नीलामी की
परिवर्तन की पतवारों से केवल एक निवेदन था
भूखी मानवता को रोटी देने का आवेदन था

अब भी रोज कहर के बादल फटते हैं झोपड़ियों पर
कोई संसद बहस नहीं करती भूखी अंतड़ियों पर
अब भी महलों के पहरे हैं पगडण्डी की साँसों पर
शोकसभाएं कहाँ हुई हैं मजदूरों की लाशों पर

निर्धनता का खेल देखिये कालाहांडी में जाकर
बेच रही है माँ बेटी को भूख प्यास से अकुलाकर
यहाँ बचपना और जवानी गम में रोज बुढ़ाती हैं
माँ , बेटे की लाशों पर आँचल का कफ़न उढाती है

जब तक बंद तिजोरी में मेहनतकश की आजादी है
तब तक हम हर सिंहासन को अपराधी बतलायेंगे
बाग़ी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

गाँधी के सपनों का सारा भारत टूटे लेता है
यहाँ चमन का माली खुद ही कलियाँ लुटे लेता है
निंदिया के आँचल में जब ये सारा जग सोता होगा
राजघाट में चुपके -चुपके तब गाँधी रोता होगा

हर चौराहे से आवाजें आती हैं संत्रासों की
पूरा देश नजर आता है मंडी ताज़ा लाशों की
सिंहासन को चला रहे हैं नैतिकता के नारों से
मदिरा की बदबू आती है संसद की दीवारों से

जन-गण-मन ये पूछ रहा है दिल्ली की दीवारों से
कब तक हम गोली खायें सरकारी पहरेदारों से
सिंहासन खुद ही शामिल है अब तो गुंडागर्दी में
संविधान के हत्यारे हैं अब सरकारी वर्दी में

जब तक लाशें पड़ी रहेंगी फुटपाथों की सर्दी में
तब तक हम अपनी कविता के अंगारे दहकायेंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

कोई भी निष्पक्ष नहीं है सब सत्ता के पण्डे हैं
आज पुलिस के हाथों में भी अत्याचारी डंडे हैं
संसद के सीने पर ख़ूनी दाग दिखाई देता है
पूरा भारत जलियांवाला बाग़ दिखाई देता है

इस आलम पर मौन लेखनी दिल को बहुत जलाती है
क्यों कवियों की खुद्दारी भी सत्ता से डर जाती है
उस कवि का मर जाना ही अच्छा है जो खुद्दार नहीं
देश जले कवि कुछ न बोले क्या वो कवि गद्दार नहीं

कलमकार का फर्ज रहा है अंधियारों से लड़ने का
राजभवन के राजमुकुट के आगे तनकर अड़ने का
लेकिन कलम लुटेरों को अब कहती है गाँधीवादी
और डाकुओं को सत्ता ने दी है ऐसी आजादी

राजमुकुट पहने बैठे हैं बर्बरता के अपराधी
हम ऐसे ताजों को अपनी ठोकर से ठुकरायेंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

बुद्धिजीवियों को ये भाषा अखबारी लग सकती है
मेरी शैली काव्य-शास्त्र की हत्यारी लग सकती है
पर जब संसद गूंगी शासन बहरा होने लगता है
और कलम की आजादी पर पहरा होने लगता है

तो अंतर आ ही जाता है शब्दों की परिभाषा में
कवि को चिल्लाना पड़ता है अंगारों की भाषा में
जब छालों की पीड़ा गाने की मजबूरी होती है
तो कविता में कला-व्यंजना ग़ैर जरुरी होती है

झोपड़ियों की चीखों का क्या कहीं आचरण होता है
मासूमो के आँसू का क्या कहीं व्याकरण होता है
वे उनके दिल के छालों की पीड़ा और बढ़ाते हैं
जो भूखे पेटों को भाषा का व्याकरण पढ़ाते हैं

जिन शब्दों की अय्याशी को पंडित गीत बताते हैं
हम ऐसे गीतों की भाषा कभी नहीं अपनाएंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

जब पूरा जीवन पीड़ा के दामन में ढल जाता है
तो सारा व्याकरण पेट की अगनी में जल जाता है
जिस दिन भूख बगावत वाली सीमा पर आ जाती है
उस दिन भूखी जनता सिंहासन को भी खा जाती है

मेरी पीढ़ी वालो जागो तरुणाई नीलाम न हो
इतिहासों के शिलालेख पर कल यौवन बदनाम न हो
अपने लोहू में नाखून डुबोने को तैयार रहो
अपने सीने पर कातिल लिखवाने को तैयार रहो

हम गाँधी की राहों से हटते हैं तो हट जाने दो
अब दो-चार भ्रष्ट नेता कटते हैं तो कट जाने दो
हम समझौतों की चादर को और नहीं अब ओढेंगे
जो माँ के आँचल को फाड़े हम वो बाजू तोड़ेंगे

अपने घर में कोई भी जयचंद नहीं अब छोड़ेंगे
हम गद्दारों को चुनकर दीवारों में चिन्वायेंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे #hariom pawar

Vaibhav Chaudhary

#doctor Hariom Pawar

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yaseen mustafa

poem on Kashmir

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the streets, filled
with impenetrable smoke,
Kashmir is burning again,
so are tyres, rubber,
and logs. The houses
are burning. Fire
runs in waves. The air,
heavy with soot, murmurs
death overhead.
The lost children of
the sad country sprint
in alleyways with
black balloons. The lost
children of the sad country
count shadows
on the sun. In the afternoons
they sleep to the
rain’s lalluby. The food is scant.
There is no milk. The
grain of life shapes itself
into a stone we bring home
for a familial ceremony. Each evening
on the dinner tables
we prepare for our little wars
we will fight in the morning.” poem on  Kashmir

deepak raina

#poem on kashmir #Roses

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फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
फिर एक बार हमने अपने आप को बेबस ओर लाचार पाया
फिर से आज चिनारो मे गूजती है मोत की चीखे 
फिर आज उस गुलिसतान को हमने वीरान पाया
फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
तडपते है फिर से बचचे अपने मा बाप के खातिर
फिर से हमने मासूम बचचो को यतीम पाया
हर तरफ सुनाई देती है फिरसे मोत की चीखे
अपने हमसाये को ही हमने फिर से अपना कातिल पाया
फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
फिर एक बार हमने अपने आप को बेबस ओर लाचार पाया

©deepak raina #poem on kashmir

#Roses

DrShagun Narang

#KargilDay #Hariom pawar ji ki kavita #terimitti

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Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)

Hindi Poem on Kashmir by Prakhar Dubey Nojoto Open Mic Gwalior | Poem on Kashmir in Hindi #Hindi #Nojoto #nojotohindi video #Poetry

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Bhupendra kushwaha

# मेरी मोह्हबत dil ki baat Rj Mithila00 kapil pawar sonam mishra (Youtuber) Hariom Kumawat kapil pawar

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 # मेरी मोह्हबत dil ki baat  Rj Mithila00 kapil pawar sonam mishra (Youtuber) Hariom Kumawat  kapil pawar

Rj Faheem ul islam

مظلوم کشمیر                     

میرے مظلوم وطن،میرے ویران چمن
تیری جرأت کو سلام تیری عصمت کو سلام

جس فضا میں تیری خوشبو کی مہک بسی تھی
اس فضا میں یہ دھماکوں کا دھواں کیوں؟

جن گلیوں میں نھنے پرندوں کی چہچہاہٹ تھی
ان گلیوں میں ماتم کی  ویران محفلیں کیوں؟

جن آنگن میں تیری خوبصورتی کے چرچے تھے
ان آنگن میں تیرے آزاد پرندوں کی لاشیں کیوں؟

جن ندیوں میں پربت سے پھٹے چشمے بہتے تھے
ان ندیوں میں وطن کے نگہبانوں کا خون کیوں؟

 جو شاہیں صفت بچوں کی پرواز کا مرکز ہے
وہاں شاہینوں کا مستقبل تاریک میں کیوں؟

جس ہستی سے تیرے چمن کے پھول آباد ہیں
اس ہستی کے پاک دامن پہ درندوں کا حملہ کیوں؟

 جب دنیا ہے آزاد ،فضا ہے آزاد ،لوگ آزاد ہے
پھر ظالموں کا ظلم مظلوم کشمیریوں پہ کیوں؟

©فہیم الاسلام #poem #kashmir #freedom #indianoccupiedkashmir

Irshadmajeed

kashmir paradise on earth

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Devgill

BSF Kashmir on duty

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