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PREETA
Aksar log kisi bewafa k piche rote he, Bekar me isi k piche waqt khote he . Kash wafai tumhare chahne wale se ki hote to bewfai ka e Jakam hi dil pe na wo de पाते. ©PREETA #paper #paper
Tooba's diary
ہماری زندگی کے ہر فیصلے کا مقدر کاغذ کے چند ٹکڑوں سے ہی کیوں جڑا ہوتا ہے؟. ©Tooba's diary #Toobasdiary #paper#kagaz#paper #faisle
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read moreTafizul Sambalpuri
ମୁଁ କିଛି ଲେଖେ ବୋଲି ସମସ୍ତେ ଭାବନ୍ତି ମୁଁ ଖୁବ୍ କାନ୍ଦେ ବୋଲି ସମସ୍ତେ କହନ୍ତି ହେଲେ ଏ ସମସ୍ତ ଶବ୍ଦତ ତୁମର ଏ ଲୁହ ମଧ୍ୟ ତୁମର ମୁଁ କେବଳ ତାକୁ ସଂଗ୍ରହ କରିଛି ମୋ ହୃଦୟର ସାଧା କାଗଜରେ ମୋ ଚକ୍ଷୁ କରୋଡରେ ତୁମକୁ ଓ ତୁମ ଅଥୟ ଭାବନାକୁ ବାରମ୍ବାର ପଢ଼ିବା ପରେ ସେଥିରେ ଥିବା ସମସ୍ତ ପ୍ରଶ୍ନକୁ ତର୍ଜମା ପରେ ଉତ୍ତର ରଖିଛି ଏଠି ମୋର ବୋଲି କିଛି ନାହିଁ ସବୁତକ କେବଳ ତୁମର ମୁଁ କ'ଣ ମୋ ପାଇଁ କିଛି ଲେଖିପାରେ ମୁଁ ମୋ ପାଇଁ ନା ହସିପାରେ ମୁଁ ମୋ ପାଇଁ ନା କାନ୍ଦିପାରେ ହଁ ମୁଁ ମତେ ଏଇତ ଚିହ୍ନଟ କରିଛି ତୁମର ଗୁଡ଼ାଏ ଜଟିଳ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟରୁ ଓହ୍ଲେଇ ଦେଉଛି ସମସ୍ତ ଆଶଙ୍କାକୁ ମୋ ଶରୀରରୁ ଗୋଟି ଗୋଟି କରି ଯାହା ତୁମକୁ ଆଶଙ୍କିତ କରୁଛି ଦେଖ ମୁଁ ଏବେ ଗୋଟିଏ ସାଦା କାଗଜ ଯେଉଁଥିରେ ଲେଖା ହେବ ଏମିତି ଅସଂଖ୍ୟ କାହାଣୀ, କବିତା ଓ ଗଳ୍ପ ଯାହା ସବୁତକ କେବଳ ତୁମର ।। ©Tafizul Sambalpuri #paper
Bhushan Thakare
भाकरी फिरवता फिरवता तवाच फिरला... आप्तस्वकीयांचा वेगळा मनसुबा जागेवरच विरला... तेल लावलेला पहिलवान शेवटचा डाव कुणालाही सांगत नाही.. म्हणूनच सगळ्यांना करतो चितपट हातात कुणाच्या लागत नाही.. ✍🏻भुषण ठाकरे ©Bhushan Thakare #paper
Jairam Dhongade
नाटक एक मेंढी तेवढी ढकलावयाला पाहिजे, मागुती जातात बाकी आकलाया पाहिजे! केवढे अन्याय अत्याचार होती सारखे रक्त आता जाणत्यांचे सळसळाया पाहिजे! दूध प्याले वाघिणीचे पुस्तकांना वाचुनी भुंकणे नाही बरे बा गुरगुराया पाहिजे! बाप थकला मायची तब्येत नाही ती बरी, श्रावणासम लेकरांनी त्या झुराया पाहिजे! घेत जा अन् घेत जा तू घ्यायचे ते मोकळे घे वसाही दानतीचा द्यावयाला पाहिजे! केवढ्या शाळा इथे अन् शिक्षणाची पंढरी लोपले संस्कार जे शिकवावयाला पाहिजे! नाटकाचे अंक नाही नाट्य व्हावे नेटके लाभला जो रोल तो वठवावयाला पाहिजे! जयराम धोंगडे, नांदेड (९४२२५५३३६९) ©Jairam Dhongade #paper
Jairam Dhongade
शिकस्त सुखात होते सोबत सारे संकट समयी दिसले नाही, गप्प राहिले मिळून अवघे तीळ मुखीचे भिजले नाही! आले त्यांना घास भरविला करू कशाला उहापोह तो, खरे सांगतो माझ्याखातर कधी त्याकडे शिजले नाही! बाप मुलीचा दीनवाणा नि सतत काळजी उजवायाची, कधी कुठे ना बाप पाहिला ज्याचे जोडे झिजले नाही! भल्या घरी ती लेक पडावी त्यासाठी मग रान जिवाचे, काळजातले भाव दाटले उगाच डोळे थिजले नाही! स्वप्न पाहिले भव्य दिव्य अन् सपाटाच बघ पूर्णत्वाचा, तहानभूक नि भुललो सारे नयन जराही निजले नाही! माळ यशाची खुणावते तर शिकस्त सारी कसून करतो, हुलकावणीस काय बिथरणे यत्नकुंड बघ विझले नाही! बरे जाहले सुचू लागले लिहू लागलो मी स्वच्छंदी, वाचक माझा अन् माझेही रसिकमन कधी विटले नाही! ® जयराम धोंगडे, नांदेड (९४ २२ ५५ ३३ ६९) ©Jairam Dhongade #paper
Syed Masroor Hussain Kakakhail
مکیں محلوں کےیہاں تہہ ِخاک ہوگئے فرعونِ وقت کئی خس وخاشاک ہو گئے اہلِ ہوس کی حِرص نہ مٹ سکی مسرور زیبِ تنّ آخر کفن کےپوشاک ہوگئے ©Syed Masroor Hussain Kakakhail #paper