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Anjali Nigam
( नदी ) *नदी* अपना रास्ता खुद बनाती ना किसी के हाथ जोड़ती ना किसी के पैर पकड़ती ना कोई मिन्नते करती है ! खुलकर एक बार शिव की जटा से कलकल करके बहती जाती गंगा बनकर मोक्ष दिलाये गंगा जल भी वो बन जाती ! जिस रास्ते पर खुद वो मुड़ जाती पावन वो धाम कर जाती देकर अपना नाम कन्या को अपने जैसा पावन कर जाती !! ©Anjali Nigam #नदी
Vidushi Sarita Gupta
"यह कलयुग है जनाब , यहां पर गंगा नदी में नहा कर लोग अपने तन को तो पवित्र कर लेते हैं, लेकिन मन को नहीं।" ©Vidushi Sarita Gupta #नदी
Manish ghazipuri
"नदी" शिखर से पिघल कर, धरा को चली हैं उलझती झगड़ती कहाँ को चली हैं, पहाडों ने रोका, किनारो ने रोका, नजारो ने रोका, सितारो ने रोका, खड़ी बेअदब इन शिलाओ ने रोका, हवाओ ने सरगम सुना करके रोका, ये अल्हड़ मचलती कहाँ कब रुकी हैं, मिलन को तड़पती,मिलन को चली हैं। ©Manish ghazipuri नदी
नदी
read moreOmbir Kajal
समंदर था खफा, तो नदी तालाब की ओर बहने लगी, तू ही तो है अब मेरा, नदी उससे कहने लगी, मगर जब तालाब पाया छोटा, तो फिर समंदर का रुख किया, अपनी ना समझी से उसने, तालाब को भी दुख दिया, फिर से एक बार नदी, समंदर की तरफ बहने लगी, मगर कुछ बूंद तो उसकी अब, तालाब में भी रहने लगी। ✍✍✍ Ombir Kajal ©Ombir Kajal नदी
नदी
read moresarika
वो नादान नदी इश्क समुंदर से कर बैठी अपने अस्तित्व की परवाह किए "बगैर" वो "बावरी" समुंदर में मिल बैठी वो नादान नदी इश्क समुंदर से कर बैठी..।। -:sarika:- #नदी
Rajendra Kumar Ratnesh
नदी """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""" न इर्ष्या-द्वेष,न अभिमान की धारा है , हर्षित हैं सर्व प्राणी वहाँ, जहाँ-जहाँ तूने पाँव पसारा है ।। रोम- रोम धरा का पुलकित , प्राणी मिटाते प्यास जहाँ किनारा है, तू इर्ष्या-द्वेष ,न अभिमान की धारा है ।। नतमस्तक सर्व प्राणी आगे तुम्हारे, युगों-युगों तक चले तेरे सहारे। कृति तुम्हारी धरातल पर पाँव पसारा है । तू इर्ष्या -द्वेष,न अभिमान की धारा है ।। सीख मानवता को दे रही तू एक संदेश में, सर्व प्राणी हितकारी बढ़े चलो, सुख-दुःख दोनों तीरों के भेष में । निगलते जा रहे अब मानव तुझे, बने और सब प्राणी बेसहारा हैं । न इर्ष्या-द्वेष,न अभिमान की धारा ।। --------------------------------------------- रचनाकार-राजेन्द्र कुमार मंडल जन्म-10-02-1996 पता-ग्राम +पोस्ट-रामविशन पुर ,ward-06 थाना-राघोपुर,जिला-सुपौल बिहार-852111 Mob-9771199373 E-mail -rajendrakrmd97711@gmail.com नदी
नदी
read moreअनुवाद
पर्वत का सीना चीर कर अवतरित हों दुर्गम रास्तों से प्रवाहित होना सदा बहते रहना मेरा चरित्र है अच्छे बुरे का भेद भुलाकर सबकी प्यास बुझाना मेरी आदत कोई मुझे माँ कह के पुकारता है कोई करता है अपनी प्रेयसी से तुलना कुछ करते हैं मुझे मलीन कुछ चाहते हैं मरकर मुझमें घुलना पर मैं नदी हूँ और मेरा उद्देश्य है बस अपने सागर से मिलना ©अनु उर्मिल"सर्वदा आशावादी" #नदी