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Satguru ki kripya
सत्संग विचार जिसके घर में भी हर रोज सत्संग विचार होते हैं उन घरों की आदि समस्याएं दूर हो जाती है सत्संग विचार परमात्मा के नाम पर होने चाहिए क्योंकि आप इंसान होने का कोई तो कर्तव्य निभाई है आप कुछ थोड़ा समय निकाल कर श्रीमद्भागवत गीता जी को पढ़िए मेरे गुरु तत्वदर्शी जगत रामपाल जी महाराज के द्वारा लिखित ज्ञान गंगा पुस्तक को पढ़िए मंगाइए फ्री में आर्डर कीजिए अपना नाम पता एड्रेस मैसेज कीजिए किताब आपके घर पर पहुंच जाएगी जीवन का अनमोल ज्ञान का खजाना है जो सूक्ष्म ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिए लोग बड़े-बड़े संत महात्माओं की खोज करते हैं उनके दर्शन को भटकते हैं इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपकी 1000 परसेंट प्रॉब्लम ठीक हो जाएगी ©Satguru ki kripya सत्संग विचार सत्संग विचार
सत्संग विचार सत्संग विचार
read moreHP
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवादी, पलायनवादी विचार इन सत्संगों में मिलते हैं। फालतू लोग अपना समुदाय बढ़ाने के लिए सस्ते नुस्खे बताते रहते हैं या किसी देवी देवता के कौतूहल भरे चरित्र सुनाकर उनके सुनने मात्र से स्वर्ग, मुक्ति आदि मिलने की आशा बँधाते रहते हैं। ऐसा विडम्बनापूर्ण सत्संग किसी का क्या हित साधेगा? सत्संग
सत्संग
read moreपूर्वार्थ
धर्म सत्संग प्रवचन या फिर ईश्वर पर अंधविश्वास जो श्रद्धा से कही अधिक हो... मैं श्रद्धा और अंधविश्वास को ईश्वर के लिए दो अलग अलग भाव से देखती हूं.... अगर आप ईश्वर के भरोसे बैठे रहे की वो जो करेंगे अच्छा करेंगे या वो एकदिन जरूर समय बदलेंगे तो मैं इसे अंधविश्वास मानती हूं... लेकिन अगर आप अपने कर्मो और अच्छे विचारों के साथ पूरी ईमानदारी से तत्परता के साथ ईश्वर को भी मानते है तो मैं इसे श्रद्धा कहूंगी, गौतम बुद्ध ने जब धर्म को अपनाया तो उन्होंने दाम्पत्य और गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया... उन्होंने अपने समस्त ध्यान धर्म सत्संग अच्छे विचारों में लगाया... यशोधरा को दुख तो जरूर हुआ क्युकी वो उनको कुछ कहकर नही गए लेकिन यशोधरा की उम्मीदें और इच्छाएं आत्मनिर्भर हो गई उन्हे बुद्ध से कोई आशाएं नहीं रह गई..... और बुद्ध ने भी इनपर कभी भाव व्यवहारिकता का बंधन नहीं डाला ..... एक स्त्री के लिए धर्म सत्संग असमय पूजा पाठ मंदिर या व्रत जप तप गृहस्थ जीवन में रहकर नामुमकिन बातें है या अधकुचली रीति रिवाज है, अकसर औरतें औसत उम्र ढल जाने के बाद ईश्वर को समझ पाती है... वो हमेशा वक्त नहीं मिलता का ही दुख रोती रहती क्युकी उनके लिए प्राथमिक धर्म और पूजा उनका परिवार होता है, कभी बच्चे छोटे होते तो कभी घर पर कोई बीमार होता, कभी लंच की जल्दी रहती तो कभी शाम रिश्तेदार आ जातें.... लेकिन एक पुरुष गृहस्थ जीवन से ऊब कर सन्यासी या धर्म का अनुयायी बनता है ... धार्मिक होना अच्छी बात है लेकिन धर्म के नाम पर कायर होना या जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना धर्म का अपमान है.... इससे अच्छा है बुद्ध बनो और एक रात घर छोड़ दो फिर समझ आएगा धर्म का रास्ता इतना सरल नहीं है... गौतम बुद्ध कितने दिनों तक भूखे प्यासे रहे होंगे,, कितनी राते जाग कर काटी होंगी, मीलो पैदल चलते रहे होंगे , कितने कंकड़ कितने लोगो और कितने स्थानों पर वो एक अकेला शरीर कितना चुभता होगा... जिसे सन्यास कहा जाता है, धार्मिक जीवन बहुत कठिन है अपनाना तो दूर इसे ईमान दारी से छुआ भी नहीं जा सकता ।। ©पूर्वार्थ #सत्संग #वेदज्ञान
Diwani Divya
White 💖 शिक्षकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, और चिकित्सकों का दर्शन और संग आनंदपूर्ण और होश जागरण के लिए है, और धार्मिक ठेकेदारों, राजनीतिज्ञों, और भविष्यवक्ताओं के दर्शन और हमारे मनोमस्तिष्क पर प्रभाव हमारे कमजोर मन की उपज है 💖 ©Diwani Divya #सत्संग💖
सत्संग💖
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