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Stories related to करूं कैसे

अम्बुज बाजपेई"शिवम्"

रातें इस क़दर बीत रही हैं यूं इजतिरार में, तेरी यादों पर करूं कैसे इख्तियार मैं। कुछ नहीं सूझता है अब तेरे सिवा मुझको, इतनी शिद्दत से तेरे इ

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रातें इस क़दर बीत रही हैं यूं इजतिरार में,
तेरी यादों पर करूं कैसे इख्तियार मैं।
कुछ नहीं सूझता है अब तेरे सिवा मुझको,
इतनी शिद्दत से तेरे इश्क़ में हुआ गिरफ्तार मैं।

 रातें इस क़दर बीत रही हैं यूं इजतिरार में,
तेरी यादों पर करूं कैसे इख्तियार मैं।
कुछ नहीं सूझता है अब तेरे सिवा मुझको,
इतनी शिद्दत से तेरे इ

Bhawna Arora

*ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है, * क्या करूं,क्यों करूं,कैसे करूं, जो कहते हो कुछ कर लिया करो, *चलो अब बता ही दो, *ये जो क

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ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है,
कहा था तुमने कि दिल को ना लगाया करों बातें किसी की,
जो बोलता है बोलने दो,
पर अब जो तुमने ही कह दिया कि किसी की सून भी लिया करो,
ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है,
क्या करूं, क्यों करूं, कैसे करूं,ना किया करो वो जो तुम कहते थे,पर अब कहते हो कि कुछ कर भी लिया करो, 
ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है,
चलो अब बता ही दो की किसी की बातों को सुनकर, 
 दिल पर लगाया करूं या नहीं, 
अब बता ही दो,
कि क्या करूं, कैसे करूं,जो कहते हो कि कुछ कर लिया करो,
चलो अब बता ही दो,
ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है,
वो जो तुम कहते थे कि ना छोड़ूंगा साथ तुम्हारा,
फिर क्यूं नाम मजबूरी का देकर छोड़ दिया साथ मेरा,
चलो अब बता ही दो,
ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है..!! *ये जो कुछ बातें अधूरी सी जो तुमसे कहनी बाकी है,
* क्या करूं,क्यों करूं,कैसे करूं, 
जो कहते हो कुछ कर लिया करो, 
*चलो अब बता ही दो,
*ये जो क

अब्र The Imperfect

पिता सा बरगद बरगद सा पिता दोनों कठोर दोनो कोमल हैं जीवनदायक दोनों ही मां प्रत्यक्ष पिता नेपथ्य है बालक का रंगमच यही निज से उन्नत संतति होवे

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पिता सा बरगद बरगद सा पिता
दोनों कठोर दोनो कोमल
हैं जीवनदायक दोनों ही
मां प्रत्यक्ष पिता नेपथ्य
है बालक का रंगमच यही
निज से उन्नत संतति होवे
हर पिता की कामना यही
भाव अव्यक्त,चित्त दृढ़ सबल
त्याग अटल भाव अभाव
संतति का कोषागार प्रबल
बरगद सा पिता पिता सा बरगद
दोनों में भेद करूं कैसे
है प्रश्न यही है प्रश्न यही

©KumarAmitAbr पिता सा बरगद बरगद सा पिता
दोनों कठोर दोनो कोमल
हैं जीवनदायक दोनों ही
मां प्रत्यक्ष पिता नेपथ्य
है बालक का रंगमच यही
निज से उन्नत संतति होवे

Nitin Kr Harit

प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ, या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ। या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर, जन्म से अंतिम स

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प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ,
या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ।
या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर,
जन्म से अंतिम समय तक, मैं तेरे ही काम आऊँ।।
पर करूं कैसे? ये कलयुगी काया है मेरी,
और उस पर सांवरे, ये अजब माया है तेरी।
आत्मा ये क्या कभी, स्वीकार होगी अनुचरी भी,
इस से ज्यादा श्वेत तो, हे सांवरे, छाया है तेरी ।।

चल ना कर स्वीकार, 
संभावना दे, आभास कर ले !
तू मुझसे कुछ, आशा ना रख, 
फिर भी अपना दास कर ले !! प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ,
या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ।
या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर,
जन्म से अंतिम स

नितिन कुमार 'हरित'

प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ, या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ। या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर, जन्म से अंतिम स

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प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ,
या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ।
या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर,
जन्म से अंतिम समय तक, मैं तेरे ही काम आऊँ।।
पर करूं कैसे? ये कलयुगी काया है मेरी,
और उस पर सांवरे, ये अजब माया है तेरी।
आत्मा ये क्या कभी, स्वीकार होगी अनुचरी भी,
इस से ज्यादा श्वेत तो, हे सांवरे, छाया है तेरी ।।

चल ना कर स्वीकार, 
संभावना दे, आभास कर ले !
तू मुझसे कुछ, आशा ना रख, 
फिर भी अपना दास कर ले !!

- Nitin Kr Harit प्रेम क्या है? क्या यही कि तुमको पाऊँ,
या बनूं मीरा, अंतिम श्वास तक तुमको ही गाऊँ।
या बिखेरूं रंग खुशबू, और तेरा पुष्प बनकर,
जन्म से अंतिम स

सुशांत राजभर

#shayri #sapana जिन लफ़्ज़ों में तेरी तारीफ ना हो उन लफ़्ज़ों को भला मैं सुनूँ कैसे जिन पन्नों पर न लिखा हो नाम तेरा उन पन्नों को मैं पढ़ूं

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Raja Banerji

#bachpan कि बहुत टूटा हूं टुकड़ों में आज फिर किसी के कंधे का सहारा मिल जाए गुम हो गई हैं खुशियां मेरी फिर मेरा बचपन दोबारा मिल जाए जीना

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काश! मेरा बचपन मुझे दोबारा मिल जाए

©Raja Banerji #bachpan  
कि बहुत टूटा हूं टुकड़ों में आज फिर 
किसी के कंधे का सहारा मिल जाए
गुम हो गई हैं खुशियां मेरी 
फिर मेरा बचपन दोबारा मिल जाए
जीना

रजनीश "स्वच्छंद"

अपने ही घर मे पराये हैं। छोड़ जमीं पुरखों की अपनी, आज यहां क्यूँ भाग मैं आया। पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया। खेत मेरे, ख

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अपने ही घर मे पराये हैं।

छोड़ जमीं पुरखों की अपनी, आज यहां क्यूँ भाग मैं आया।
पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया।

खेत मेरे, खलिहान मेरे,
मेरा घर, दालान मेरे।
बस शब्दों में अपने लगते,
क्यूँ ख़ुद को हैं ऐसे ठगते।

छोड़ पिता माता को अकेले,
खेल क्यूँ मैने ऐसे खेले।
किस मुख उनसे बात करूं,
कैसे मैं उनको साथ रखूं।

शहर की हवा जहरीली है,
कितने परिवारों को लीली है।
कहाँ कोई अपना यहाँ है,
निर्जीवों का बस मज़मा है।

आज जो आंखें खोली हैं, इससे पहले ना क्यूँ जाग मैं आया।
पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया।

जो बोया था कल को मैंने,
बैठ आज वही मैं काट रहा।
ज़ख्म हरे हैं वही पुराने,
बैठ आज वही मैं चाट रहा।

किससे शिकायत जा कर आऊं,
किसके सर पे दोष मढूं।
जब रुकना था मैं रुक न सका,
अब आगे मदहोश बढूं।

कैसी तरक्की, कैसा बढ़ना,
अपनों का जो साथ नहीं है।
किस्मत के ही बल पे बैठा,
सर पे मां का हाथ नहीं है।

जिससे कल तक था चिढ़ता मैं, गा वही अब राग मैं आया।
पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया।

अपने भी पीछे छूट गए,
अपनेपन का आभाव रहा।
मरहम की तो कमीं नहीं,
फिर भी दिल मे घाव रहा।

किसको अपना मैं कह जाऊं,
जा किससे दिल की बात कहूँ।
पहर पहर में खुद को भुला,
अपनो की यादों में दिन रात करूँ।

लौट सकूँ मैं थोड़ा पीछे,
सूरत ऐसी है दिखती नहीं।
सबल रहा सब पा सकता मैं,
मां की ममता पर बिकती नहीं।

दिल रोता है और ज़ख्म हरे हैं, अपनों को क्यूँ त्याग मैं आया।
पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया।

©रजनीश "स्वछंद" अपने ही घर मे पराये हैं।

छोड़ जमीं पुरखों की अपनी, आज यहां क्यूँ भाग मैं आया।
पेट की खातिर अपने घर को, आज लगा क्यूँ आग मैं आया।

खेत मेरे, ख

Amit tiwari

प्रिय बहना..!!❤️ कहां से शुरू करूं?कैसे शुरू करूं तुम पे लिखना ये प्रश्न मेरे जहन में तब से ही था,जब पहली बार तुमसे मुलाकात हुई थी,लेकिन अफ

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सिर्फ तुम ही हो....!!💖

(पूरा अनुशीर्षक में है) प्रिय बहना..!!❤️

कहां से शुरू करूं?कैसे शुरू करूं तुम पे लिखना ये प्रश्न मेरे जहन में तब से ही था,जब पहली बार तुमसे मुलाकात हुई थी,लेकिन अफ

Ayush kumar gautam

काबू कैसे करूं

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काबू कैसे करूं मरकज पर तो गम ही बैठा है
एक फन मे तो पूरी दुनिया माहिर हो चुकी है
जिसे दर्द जितना ज्यादा है वो उतना ही मुस्कुरा लेता है

मरकज--केंद्र,फन-एक्टिंग काबू कैसे करूं
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