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Urmeela Raikwar (parihar)
White मैं अकेली, और चारो और अँधेरे, कब तक रोक पाऊँगी इस जीवन को , कब से मर चुका है, बाकी है तो बस तेरे कांधे पर जाना,, By Urmee Ki Dairy ©Urmeela Raikwar (parihar) #Sad_Status मैं अकेली
#Sad_Status मैं अकेली
read morePalak Parmar
White अगर मैं लिखूं किताब तो तुझे अपना लिखूंगा , खुली आंखों से देखा हुआ सपना लिखूंगा, लिख कर सारे दुख अपने हिस्से तेरे हिस्से बस हंसना लिखूंगा ©Palak Parmar अगर मैं लिखूं किताब तो तुझे अपना लिखूंगा , खुली आंखों से देखा हुआ सपना लिखूंगा, लिख कर सारे दुख अपने हिस्से तेरे हिस्से बस हंसना लिखूंगा
अगर मैं लिखूं किताब तो तुझे अपना लिखूंगा , खुली आंखों से देखा हुआ सपना लिखूंगा, लिख कर सारे दुख अपने हिस्से तेरे हिस्से बस हंसना लिखूंगा
read moreParasram Arora
White किसी दिन इत्मीनान से बैठ कर समझने की कोशिश क र के देखना कि सारे झगड़े तुमसे तुम्हारा ये मन करता है या तुम मन से से झगड़ कर खफा हो जाते हो ©Parasram Arora मैं बनाम मन
मैं बनाम मन
read moreहिमांशु Kulshreshtha
इन सर्द रास्तों पर कहीं ठहरा हुआ हूँ मैं एक खौफनाक अंधेरा है पूरी शिद्दत से गिरफ्त में लिए मुझे रिमझिम बरसती बूंदे जिस्म से फिसलते हुए बहा ले जा रही है मेरे भीतर का कतरा कतरा दुख हथेलियों में समेट रहा हूँ बारिशें पर ये टिकती नहीं सर्द हवाएँ अंदर तक कुरेद रही है मुझे मैं बस ख़ामोश हूँ… इतना खामोश अपने अंदर के शोर को साफ साफ सुन पा रहा हूँ मैं … मैं तय कर लेना चाहता हूँ ये सफर मिटाना चाहता हूँ जिंदगी की पगडंडियों से गुजरती तुम्हारी यादें भूलना चाहता हूॅं तुम्हारी खनकती हँसी खुद को… यक़ीन दिलाना चाहता हूॅं तुम नहीं हो अब …. तुम नहीं हो ….नहीं हो तुम इन भीगी हुई हथेलियों के बीच गुनगुनी छुअन बन कर सुनसान सड़क पर रफ्तार से गुजरते शोर के दरमियाँ मेरे साथ नहीं हो तुम मेरी अँगुलियों से फिसलती बूंद सी तुम. ©हिमांशु Kulshreshtha मैं...
मैं...
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White मै ही रहा मन से दग्ध और देह से शापित दर्द उगता है दिल में तेरी यादों के जालों से घिरा रहता हूँ मैं अकुलाता उमड़ते ज्वार सा ©हिमांशु Kulshreshtha मैं....
मैं....
read moreShalini Pandey
White इच्छायें शून्य होती जा रही हैं बस ये जिम्मेदारियां ही है जो जीने के लिए मजबूर करती जा रही हैं ... ©Shalini Pandey मैं
मैं
read morePankaj Pahwa
White क्या लिखा है क्या लिखुंगा और क्या लिखता हूं मै, शब्दों से जो दिख रहा हुं बस वही दिखता हूं मैं, ना पढ़े साहित्य मैने ना पढ़ी कोई पोथियां, अब तलक जितनी पढ़ी थीं निकली सारी थोथियाँ, जीने का मतलब सिखाती ये किताबें मोटियां, क्या करूं पढ़कर इन्हें गर मिल ना पाएं रोटियां, क्या लिखा है क्या लिखुंगा और क्या लिखता हूं मै, अब तलक जितना पढ़ा था सब किताबी ज्ञान था, असली दुनिया में तो मुझसा बस मैं ही अज्ञान था, झूठ को सच मान लेता ये यहां कानून है, सच को सच्चाई से कहना जैसे कर दिया खून है, क्या लिखा है क्या लिखुंगा और क्या लिखता हूं मै, अब इलाज के नाम पे वो लेते मोटी हैं रकम, पट्टी तो कर देते लेकिन नोटों का देते ज़ख्म, है अगर तुम में रईसी तुम में है पैसे का दम, तब तो जानो तुम हो जिंदा वरना समझो हो खतम, क्या लिखा है क्या लिखुंगा और क्या लिखता हूं मै, शब्दों से जो दिख रहा हुं बस वही दिखता हूं मैं, ©Pankaj Pahwa #Thinking क्या लिखूंगा
#Thinking क्या लिखूंगा
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