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Ravi Kamle
पुरानी यादें आज भी, रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है #पहल #बज़्म रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है #पहल #बज़्म
Bhupendra Ganjam
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है ©Bhupendra Ganjam रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में
read moreAjeet Singh
💠💠💠 रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो धडकनों से भी इबा
💠💠💠 रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो धडकनों से भी इबा
read moreKavi Alok Sharma
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं - डाॅ॰ राहत इंदौरी रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हू
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हू
read moreShaarang Deepak
ख़लल पड़ता है (Khalal padta hai) Shayari/ Ghazal/ Poem by Rahat Indori (राहत इंदौरी) || SOHBAT रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद
read moreShaarang Deepak
ख़लल पड़ता है- 2 (Khalal padta hai) Shayari/ Ghazal/ Poem by Rahat Indori (राहत इंदौरी) || SOHBAT रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है च
read moreAdil babu
रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है चांद पागल है जो अंधेरों में निकल पड़ता है और उसकी याद आई सांसे जरा धीरे चल धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है रोज तारों की नुमाइश में Rishi Singh 'अनीस'●•
रोज तारों की नुमाइश में Rishi Singh 'अनीस'●•
read moreYogenddra Nath Yogi
यूं ही बैठ कर ताक़ते रहे, आसमां के तारों को। कोई भूला पल याद आता, देख नजरों को।। गवाही देते उन लम्हों की, जो देखें साथ बहारों को। मुद्दतों बाद साथ फिर गुजारें वक्त, टटोलने लगे ख्यालों को।। गुमशुम सी खामोश चांदनी, लाती साथ पहरेदारों को। मिल बैठते बिन अल्फाज गुफ्तगू, खोल देते यादों के पिटारों को।। ©Yogendra Nath #Stars#तारों को