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Stories related to मंकी दीप के मेला

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#मंकी बंदर की समझदारी

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Aman Saini

#मेला मेला मेला मेला मेला

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Bhushan ji motihari

मेला में मस्ती के समय

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music director Ranu Berardi

मेला में झूला के दौरान

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Rudra ashwani arya

बनारस के मेला साथे घूमाई!

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बनारस के मेला साथे घूमाई,
दिने घूमाई राति घूमाई,
बनारस के मेला साथे घूमाई|
लल्लू हलवाई बेचे मिठाई,
समोसा बीचाई रसगुल्ला बीचाई,
लल्लू हलवाई बेचे मिठाई|
जाके बजरिया मे फिलिम देखाई,
टीवी देखाई सनिमा देखाई,
जाके बजरिया मे फिलिम देखाई|
बनारस के मेला साथे घूमाई,
दिने घूमाई राति घूमाई,
बनारस के मेला साथे घूमाई|
मदरिया खूबे डमरू बजाई, 
नगिनियो नचाई बनरियो नचाई, 
मदरिया खूबे डमरू बजाई|
मेलवा मे खूबे मजा लियाई,
जहज़ीया उड़ाई झूलवा झूलाई,
मेलवा मे खूबे मजा लियाई|
बनारस के मेला साथे घूमाई,
दिने घूमाई राति घूमाई,
बनारस के मेला साथे घूमाई|
दुकनिया मे जाके कपड़वो खरदाई,
जूतवो खरदाई चश्मओ खरदाई,
दुकनिया मे जाके कपड़वो खरदाई|
आवतके बच्चन के खेलऊना लियाई,
मोटर लियाई गाड़ी लियाई,
आवतके बच्चन के खेलऊना लियाई|
बनारस के मेला साथे घूमाई,
दिने घूमाई राति घूमाई,
बनारस के मेला साथे घूमाई|
मजा लियाई मजा लियाई! बनारस के मेला साथे घूमाई!

Mahendra Pratap Kori

धुनिया के मेला का झूला है।

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Sachin Kumar Sachin Tendulkar

मेला मस्ती जिगरी दोस्त के साथ

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LAKSHMI KANT MUKUL

दीप पीड़ाओं के

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दीपावली के बाद मुंह अँधेरे में
हंसिया से सूप पिटते हुए लोग बोलते हैं बोल
‘इसर पईसे दलिदर भागे , घर में लछिमी बास करे’
और फेंक देते हैं उसे जलते ढेर में

हर साल भगाया जाता है दरिद्र को
चुपके से लौट आता है वह
हमारे सपनों , हमारी उम्मीदों को कुचलता हुआ

कद्दू के सूखे तुमड़ी में माँ
घी के दिए जलाकर छोड़ती है नदी में
जिसमें मैं बहा आता था कागज़ की नाव
झिलमिल धार में बहती हुई जाती थी किसी
दूसरे लोक में

कितनी दीपावलियाँ आई जीवन में
जलते रहे दीप फिर भी अंतस में पीड़ाओं के
       _ लक्ष्मीकांत मुकुल दीप पीड़ाओं के

LAKSHMI KANT MUKUL

दीप पीड़ाओं के

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दीपावली के बाद मुंह अँधेरे में
हंसिया से सूप पिटते हुए लोग बोलते हैं बोल
‘इसर पईसे दलिदर भागे , घर में लछिमी बास करे’
और फेंक देते हैं उसे जलते ढेर में

हर साल भगाया जाता है दरिद्र को
चुपके से लौट आता है वह
हमारे सपनों , हमारी उम्मीदों को कुचलता हुआ

कद्दू के सूखे तुमड़ी में माँ
घी के दिए जलाकर छोड़ती है नदी में
जिसमें मैं बहा आता था कागज़ की नाव
झिलमिल धार में बहती हुई जाती थी किसी
दूसरे लोक में

कितनी दीपावलियाँ आई जीवन में
जलते रहे दीप फिर भी अंतस में पीड़ाओं के
       _ लक्ष्मीकांत मुकुल दीप पीड़ाओं के

kumar vishesh

मोहब्बत के दीप

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हम भी कभी मुस्कुराया करते थे
अंधेरे से खुद को बचाया करते थे
उसी दिए ने जला दिए मेरे हाथ
जिस दिए को रोज हम हवाओं से बचाया करते थे मोहब्बत के दीप
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