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Stories related to उतरती नदी के अजमेर

Saurabh Dubey

पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।

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प्रकृति की चाक पर बन रही इक मूरत है,
पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।
पत्थरों से इसकी यारी ,जंगलों को है बड़ी प्यारी,
कहीं उछलना,कहीं मचलना है चंचलता इसकी कितनी न्यारी।
झरने से गिरती है जब इसकी दूधिया फुहार,
वादियों में इसके खिल उठती है तब बहार।
मदमस्त हो बहती आ रही अनवरत है,
पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।
ऊंचाइयों से उतरकर जब इसने समतलता को देखा,
बनती है तब यह कितनी ही सभ्यताओं की जीवन रेखा।
विशाल भूमिखंडों को अपने जल से सींच,
मार्ग बनाती अपना तब वह शहरों के बीच।
दूधिया से हुई अब मटमैली सूरत है,
पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।
करती है जो सबको अपने जल से निर्मल,
होता आ रहा संग उसके बरसों से है छल।
देती है जो अपनी प्यास बुझाने वाली रसधार,
उसकी सुंदरता लौटाने का अब हमें उठाना है भार।
मातृ सलिला को अब सम्मान दिलाने की जरुरत है,
पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।
             -सौरभ दुबे पहाड़ों से उतरती नदी बड़ी खूबसूरत है।।

prakash punekar

अजमेर दर्गा

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Unknown

नदी के गाथा

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बरफ भरल पहाड़न से
पाथरन  के कछारन से
ताल तलैया पोखरन से
पहाड़न के चीरत फाड़त
सोता झरना बन निकललीं
मीठगर रसगर सभै के पिआस बुझइलीं
जंगरवा खेतन के हरिअर कइलीं
भूईंया के सूखल दरारन के भरलीं
कबहुँ पतझर कबहुँ सावन
कबहुँ बसंत कबहुँ बहार भइलीं
सभै के पापन तारत आपन में समेटलीं
सभै के जिनगी नीमन खुसहाल करलीं
आखिर में लहर  दर  लहर टूटत गयलीं
आपन अस्तित्व खो तहरा में जा समइलीं
तहरा में समइते तीखार खारा हो गयलीं
तु अथाह पानी के लेहले समुंदर कहलइलS
बकिया आरंभ से अंत तक खारा ही रहलS
इहे हौ नदी आ समुंदर के जीवन गाथा
आरंभ कहीं से पर अंत हौ सागर माथा

 नदी के गाथा

M Sunil samrat

नदी के किनारे

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हम नदी के दो किनारे 
एक तुम हो दुजा संग हमारे
मिलन की आस में धरा के छोर तक चलेंगे,
तुम होगी सामने हमारे और मैं सामने तुम्हारे

मिट्टी का एक ढेला उस किनारे से घोलो 
और बढ़ने दो नदी का आवेग थोड़ा,
ताकि घुलकर मिट्टी आये नदी के इस छोर तक
मैं हथेलियों में सजा उसे माथे से अपने लगा लूँ।

मैं नदी के हाँथ भेजूँ घास का हरा तिनका 
लेकिन, प्रवाह प्रचंड धकेले इसे मेरे ही छोर पर
निराश ना हो, नदी सौंपेगी इसको तुमको तुम्हारे छोर पर
उठा तिनके को तुम अपने जुड़े में सजा लो।

हम मिलते रहेंगे यूँही समय अनंत तक
नदी के आदि से और नदी के अंत तक,
तुम्हारे किनारे के मिट्टी को नदी में घुल जाने तक
धारा के खोने औ तिनकों के सुख जाने तक ।

चाह सागर में मिलन की बिल्कुल ही व्यर्थ है, क्योंकि
न होगी नदी, न वो घुली मिट्टी, ना ही होगी कोई धारा
ना होंगे किनारे, न वो तिनके बेचारे औ अस्तित्व ना होगा हमारा
चाह मेरी एक ही हम हों सदा यूँही किनारे
तुम रहो सामने मेरे और मैं सामने तुम्हारे।

©M Sunil samrat नदी के किनारे

Sunil Raj

राहुल राज अजमेर

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Amish Dwivedi

सरयू नदी के तीरे #गांव #नदी #प्यार

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MD Mohrm MD Mohrm

माय अजमेर अंसारी

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Reeva

अजमेर दी शेर

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Zulmi Khan

अजमेर जाना है

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CHEETA KHAN BOYS

अजमेर से मेडता

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