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Stories related to स्लेटी कलर कैसा होता है

Anita Najrubhai

कैसा होता है प्यार

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कैसा होता  है प्यार 
 प्यार मे धोखा भी मिलता है 
दर्द भी मिलता है 
खुशियाँ भी मिलती है 
 प्यार मे  जीने ने के लिये खुशियाँ  मिलती है 
प्यार मे दर्द मिलता है तो   मोत को गले लगा लिया करते हैं 
कैसा होता है प्यार

©Anita Najrubhai कैसा होता है प्यार

Pawan verma

कैसा होता है तब

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Anjani Upadhyay

परमाणु बम कैसा होता है

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दिल बंजारा

#दिल_बंजारा दर्द कैसा होता है

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अकसर लोग टूटते तारों से 
अपनों के मिल जाने की दुआएं माँगा करते हैं, 
शायद उन तारों को पता होगा कि 
अपनों से बिछड़ने का दर्द कैसा होता है 




- सीमा सिंह 'इश्क़ा' #दिल_बंजारा 
दर्द कैसा होता है

Writer R S Roshan

सफल विद्यार्थी कैसा होता है

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ruhi

#Flower सच्चा प्यार क्या होता है अगर होता है तो कैसा होता है

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Guitar sagar

बचपन का शेर कैसा होता है

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Rohit Saw

रिश्ते निभाना कैसा होता है #MoonHiding

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कुछ रिश्ते किराए के मकान जैसे
 होते हैं...
"उन्हें" कितना भी सजा लो पर वो कभी अपने नही होतें...

©Rohit Saw रिश्ते निभाना कैसा होता है

#MoonHiding

Vijay Kumar उपनाम-"साखी"

#बरता स्लेटी #friends

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वो बरता,स्लेटी
वो बालपन सेठी
सौंधी-सौंधी खुश्बू
उससे आती रहती
जिसमें थी,हमारी
यादो की खेती
वो बरता,स्लेटी
वो बालपन सेठी
उससे होकर ही,
नदियां थी बहती
खेलने में मजा
आता था इतना
भूख,प्यास सुधि
हमको न रहती
ज्यादा बरतेवाला
अमीरों का साला
पर फिसल गई है
बचपन की वो रेती
कोहिनूर सस्ता है
बचपन महंगा है
गर कोई धन बदले
लौटा दे,बचपन खेती
खुदा कसम,छोड़ दूं,
धन,जायदाद की बेटी
वो बरता स्लेटी
वो बालपन सेठी
इसके स्वाद आगे
मिठाई फीकी रहती
उसके स्वाद में,तो
अद्भुत तृप्ति रहती
वो बरते की मिट्टी
भीतर बड़ी महकती
ख़ास छोड़ दूं,
सब प्रपंच सारे
खा लूं फिर से
बरते ढेर सारे
में तो भूला दूँ 
सारी दुनियादारी
गर लौट आये 
बचपन की यारी
वो बरते,
जिसके लिये 
हम थे झगड़ते
अब नही रहे,
सो वर्ष हुए पूरे
मोबाइल युग मे
बच्चों के हाथों मे
न है,बरता स्लेटी
छोड़ दे,व्यर्थ हेकड़ी
उन्हें दे बरता स्लेटी
जिसमें बचपन की
वो चिड़िया चहकती
तोड़े मोबाइल बैटरी
ताकि बच्चे न पाये
रेडिशन हवा बहती
ओर पाये स्वस्थ रेती
वो बरता स्लेटी
बालपन की सेठी
उसमें मासूमियत
फूल से ज्यादा रहती
विज्ञान कहता है
बरते से पथरी होती
पर बचपन कहता है
इससे बीमारी न होती
तन से ज्यादा
मन के बढ़े,रोगी
बरते तो बरते है
ये हर व्याधि छेदी
जो काम करे,भले
वो खाते,स्लेटी बरते
स्लेटी बरते खाने से
मिटे तम घने से घने
खाते रहो,बरते स्लेटी
आंसू खाएंगे गुलेटी
हंसी की आयेगी,पेटी
यह है,बचपने की खेती

दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"

©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" #बरता स्लेटी

#friends

dhiraj pandey

न पूछिए ये इश्क़ कैसा होता है

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न पूछिए कैसा होता है ये इश्क़ साहब जो रुलाता है  न उसी से गले लग कर रोने का दिल करता है न पूछिए ये इश्क़ कैसा होता है
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