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Stories related to शेष अर्थ

saloni toke alfazon ki khumari

शेष

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Vandana Gupta

"शेष"#PoetryOnline

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अशोक द्विवेदी "दिव्य"

जो शेष है वही विशेष हैं।

©अशोक द्विवेदी "दिव्य" #शेष
#विशेष

चिंतन चैतन्य

जब संख्या नहीं होगी तब शून्य तो होगा ना
जब सूर्य चन्द्रमा और रोशनी नहीं होगी 
तब अंधेरा तो होगा ना
जब गूंजते स्वर शोर आवाजे नही होगी
तब खामोशी तो होगी ना
जब जीव और जीवन नहीं होगा
तब जीवात्मा तो होगी ना। #शेष

#EscapeEvening

RavindraSingh Shahoo

#शेष विशेष.

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शेष विशेष
हम अबतक साथ साथ हैं पर अजीब से ताल्लुकात है
अलग अलग सवालात है अलग अलग जज़्बात है
भले ही अहम का प्रभाव है पर हृदय से लगाव है
निभा रहे ये अच्छी बात है जो विधाता की किरपा की सौगात है
वर्ना कभी के बिछड़ जाते फिर तन्हाई का दर्द किसे बताते
वैसे तो उम्र कट गई फिलहाल यादों में सिमट गई
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें कुछ शिकवे तो कुछ फरियादें
शाम भी आखिर ढल जाएँगी पर यादें तो साथ निभाएँगी!
द्वारा:-RNS. #शेष विशेष.

Kavitri mantasha sultanpuri

उमड़ उमड़ जो
भीतर रह रह जो
स्वास शेष रहता
यह तो निश्चिं है
कि जीवन शेष है, 
किंतु मोल हुए जो
भावना बिके जो
फिर क्या रहता
मन में अंतर है
व्योम में छल है, 
बना संजोग जो
मिलन का जो
एक रहस्य रहता
प्रीत किसे कहाँ है
बस अपना काज है,

©Kavitri mantasha sultanpuri #शेष
#KavitriMantashaSultanpuri

BS NEGI

यादें शेष

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वीरान घर और आंगन कहता
बिन तेरे सब अधूरा सा लगता
मैं भीड़ में भी तनहा हूं ,सांसे अब शेष
माँ, तुम और तुम्हारी यादें शेष।
मेरी उलझन का कोई हल नहीं
घर के हर कोने में बस तेरी ही तलाश है
 बिखर गया हूं मैं, क्या तेरे बिन
क्या तू भी उस दुनिया में उदास है।

©BS NEGI यादें शेष

Saurav Sachan

शेष #Nofear

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“मेरे पास मैं अभी कितना शेष हूं”

©SAURAV SACHAN शेष

#Nofear

Poonam

वो धुंधली सी स्मृति तुम्हारी
आज भी शेष है मुझमें कहीं

©Poonam #स्मृति
#धुंधली
#शेष

अर्पिता

तुम और शेष.....

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सुनो !
जाते जाते
नज़रे तो मिली थी न हमारी,
अगर नज़रे न मिलती ,
तो आज मैं आज़ाद होती ।
अपने सपने की तरफ बढ़ रही होती,
जी भर कर जी रही होती,
अपने मन की कर रही होती,
तुमने तो बांध दिया मुझे,
ईन चूड़ी, बिंदी और पायल से,
और फिर चैलेंज करते हो कि ,
मैं सब सम्भालकर कर लूँ पूरे सपने अपने,
वो भी बिना किसी सहारे के,
सोचा था कि अब हम दोनों सहारे होंगे एक दूसरे के,
लेकिन मुझे ये न पता था कि,
इस पंक्ति में हम दोनों तो रहेंगे ही,
लेकिन तुम इस कदर सहारे बनोगे की,
मुझे खुद को देखने तक का समय नही मिलेगा,
तो फिर मेरे सपने तो क्या ही देखु में,
ये नज़रे जब मिल रही थी न,
बहुत सी उम्मीदे दिल मे खिल रही थी,
नही पता था इस मन को,
की सब धरा का धरा रह जाना है,
मुझे तो सिर्फ केअर टेकर बनकर रह जाना है,
गुजार लेती हूँ चार लोगों के सामने,
तुम्हारे गुस्से पर हँसकर,
जानते हो तुम ,अंदर मेरे कितना डर और दर्द भरा,
शायद !तुम तो सिर्फ मेरे ऊपर की ये हँसी तक ही पहुँच पाते हो, 
पता नही कभी पहुँच पाओगे भी के नहीं ,
रोना रोक रोक कर थक गयी हूँ,
चार लोगों के सामने बखेड़ा खड़ा करने से अच्छा मुस्कुरा दो, अंदर से डरते रहो,
आने वाले समय के लिए तैयार रहो ,सिर्फ इतना शेष रहा हैं मेरे पास तो.....

©अर्पिता तुम और शेष.....
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