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अजनबी
बेटा खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।।— % & खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।। #बुढ
खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।। बुढ
read moreअजनबी
बेटा खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।।— % & खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।। #बुढ
खुबसूरती पर गुरुर है तुमको, एक दिन चूर चूर हो जायेगा । जिम्मेदारियां के साथ उम्र ढलने दो जरा, झुर्रियों का निशान खुद ब खुद पड़ जायेगा।। बुढ
read moreMr.HypErrr
उसे सृंगार ना दो, उसे इन सब की ज़रूरत कहा हैं... उसे काजल लगा दो हल्का सा, बो तो उम्र ढलने के बाद भी जबां हैं!!! #Mr_HypErrr❤️ ©Mr.HypErrr उम्र ढलने के बाद भी जबाँ हैं❤️ #Eid-e-milad
उम्र ढलने के बाद भी जबाँ हैं❤️ #Eid-e-milad
read moreनेहा
_______________, ©NiyaaKa दो पल की बात नहीं ये ताउम्र तेरा साथ चाहिए, जो उम्र ढलने के बाद भी ना मिटे ऐसी मोहब्बत पाक चाहिए!
दो पल की बात नहीं ये ताउम्र तेरा साथ चाहिए, जो उम्र ढलने के बाद भी ना मिटे ऐसी मोहब्बत पाक चाहिए!
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है । मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१ वही बाजरे की बनी गर्म रोटी मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२ परोसी नही थी कभी शर्द थाली । यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३ पराठे बहुत ही सुहाने बने है । मिरा पेट यादें दिलाने लगा है ।।४ गया है मुझे जो यहाँ छोड़ करके । वही रात दिन तो सताने लगा है ।।५ कहूँ क्या कदम आज उठते नही है । कि घर भी मुझे अब डराने लगा है ।।६ लगी उम्र ढलने प्रखर की अभी से बहुत कहर अब शीत ढाने लगा है ।।७ २०/१२/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है । मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१ वही बाजरे की बनी गर्म रोटी मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२ परोसी नही थी कभी श
मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है । मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१ वही बाजरे की बनी गर्म रोटी मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२ परोसी नही थी कभी श
read morekumar samir
कहानी सी हो गई है जिन्दगी हमारी रास्ते का सफ़र है मिलो भरा और ढलने भी लगी है उम्र हमारी । जिए भी तो कैसे जिए समीर अब तो जेहन पर बोझ है हर रोज भारी।। ©kumar samir #cycle ढलने लगी है उम्र
#cycle ढलने लगी है उम्र
read moreकवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद
शाम और इंतज़ार कुछ ! बूढ़े , कुछ जवान , कुछ बच्चे , होगें जो , कर रहे इंतजार , वो कितने ; अच्छे होगें और देखकर हमें न जाने मिलेगा उन्हें कितना सुखूँ रिश्ते और ज्यादा मजबूत ; और ज्यादा ;पक्के होगें कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद शाम ढलने पर....कीर्तिप्रद
शाम ढलने पर....कीर्तिप्रद
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