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shashi kala mahto
श्रद्धांजलि प्रत्येक देश और प्रत्येक काल में मनुष्य ने माता को सर्वाधिक भक्ति और श्रद्धा का पात्र माना है। वीर शिवाजी हमेशा अपने को अपनी माँ का ऋणी मानते रहे।श्रवण कुमार को सभी माता-पिता के भक्त के रूप में जानते हैं यहुदियों का तो ये कथन ही है कि " भगवान सभी जगह (प्रकट) नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने माताओं की सृष्टि की"।अर्थात् जिससे माँ के रूप में भगवान हर जगह दिखाई दें।यदि कोई पूछे भगवान हैं तो सभी को अपनी माँ की ओर इंगित कर कहना चाहिए, देखो माँ के रूप में भगवान। हमें अपनी माँ को पूजना चाहिए, ठीक उसी तरह जिस तरह ईश्वर रूप में देखे जाने वाले पवित्र पुरूष ईसामसीह की जननी माता मरियम की पूजा होती है। पार्ट-6 ©shashikala mahato #श्रद्धांजलि
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श्रद्धांजलि सच्चे प्रेम का आधार होता है स्वार्थ का पूर्ण रूप से त्याग और ऐसे प्रेम का सर्वोत्तम रूप माताओं के स्नेह में ही दिखता है।सन्तान चाहे कुपुत्र दया निकल जाए लेकिन जन्मदात्री माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।ऐसी बात नहीं कि माताओं में अपने दोष या अवगुण नहीं होते।लेकिन कोई भी माँ अपना कोख से जने संतान के दुखों के प्रति उपेक्षा या अनदेखा कर ही नहीं सकती।माँ में स्नेह,दया और क्षमा अपार होती है।सहनशक्ति और त्याग माँ के स्वाभाविक गुण होते हैं जो उनके ह्रदय में बच्चे को नौ महीना कोख में रखने के पवित्र काल में ही उत्पन्न हो जाते हैं और जीवन भर कभी जाते नहीं। पार्ट-5 ©shashikala mahato #श्रद्धांजलि
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श्रध्दांजलि कहीं मैने पढ़ था कि "मानवधर्मशास्त्र में जननी का गौरव उपाध्याय से दस लाख गुना आचार्य से लाख गुना तथा पिता से हजार गुना बढ़ कर बताया गया है।" मुझे तो ये सत्य प्रतीत होता है। क्योंकि तीनों लोक में माँ समान कोई गुरू नहीं है। ईश्वर को छोड़ इस जगत में माँ समान कोई सृष्टिकर्ता नहीं, माँ समान कोई पालनहार नहीं,माँ समान कोई रक्षक नहीं,माँ समान कोई सेवक नहीं, माँ समान कोई मित्र नहीं और माँ समान कोई शुभचिन्तक नहीं है।इसका प्रमाण आपके जीवन में पल-पल मिलता होगा। इसीलिए मुझे मेरी माँ में ब्रह्मा-विष्ण-महेश, दुर्गा-काली, लक्ष्मी-सरस्वती और अन्नपूर्णा सब एक साथ दिखाई देता है। पार्ट-3 ©shashikala mahato #श्रद्धांजलि
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श्रद्धांजलि खट्,खट्,खट्--अचानक आँखें खुली और सुनाई दिया, माँ जी दरवाजा खोलिए,काम वाली बाई थी।अनमने ढ़ंग से उठने की कोशिश की तो महसूस हुआ कि मेरी आँखें नम है और तकिया गीली।दरवाजा खोल कर मैं फिर आकर लेट गई और सोचा कि सुप्त अवस्था में क्यों रो रही थी? आह! एक सिसकी निकली माँ! बन्द पलकों में माँ की यादें कैद थी जो आँखों को नम कर रही थी। निंद्रा जगत में मैं माँ से बातें कर रही थी।उनसे लौट आने का आग्रह, उनकी गोद में सर रख कर सोने की माँग, उनके गले लग रोने की इच्छा, अपने सिर पर उनके हाथ रखवा कर आशीर्वाद लेने की कामना कर रही थी।साथ ही साथ उन्हें अपने पोते-पोती, नाती-नातिन की शादी देखने और उनके बच्चों को गोद में खेलाने की बातें कर रही थी, लेकिन पता नहीं माँ इतनी कठोर कैसे हो गई।मैं जितना उन्हें पकड़ने की कोशिश करती वो उतनी ही दूर होती जातीं ,और तब मैंने दौड़ कर पकड़ने की चेष्टा की,लेकिन पता नहीं अचानक वो कहाँ गयब हो गई। दूर-दूर तक माँ दिखाई नहीं दे रही थी ,फिर तो मेरी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बहने लगी थी।शायद इसी लिए तकिया गीली थी। पार्ट-1 ©shashikala mahato #श्रद्धांजलि
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
हमारे प्रधान मंत्री जी की पूज्य माता जी का स्वर्गवास सुबह 3बजे हुआ। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें और अपने चरणों में स्थान दें।🙏 ©नागेंद्र किशोर सिंह श्रद्धांजलि
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