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महज़
कोई मुझसे पूछेगा मेरे सूकून का राज़। बीना सोचे मैं आपका दीदार कह दुंगा। ©महज़ #umeedein
Harshitha Suresh
தனிமை கொஞ்சம் வித்தியாசமானது நாமே எடுத்து கொண்டால் இனிக்கும் மற்றவர்கள் நமக்கு கொடுத்தால் கசக்கும் ©Harshitha Suresh #umeedein
ANUPMA AGGARWAL
याद रखना जब भी कोई बड़ा फेलियर आता है, तो कोई बड़ी सक्सेस ज़रूर आती है ©Anupma aggarwal #umeedein
Dinesh Kashyap
जो करता था मेरे जीने की दुआ वही मेरे मरने की की बद्दुआ दे गया ! मैं करता रहा सलामती की दुआएं सदा जिसके लिए! वही यार मेरा मुझको दगा दे गया! कोई तो वजह होगी उसके पास मुझे भुलाने की! फिजा के मौसम में खिजा दे गया! ©Dinesh Kashyap #umeedein
Santosh Narwar Aligarh (9058141336)
तेरे लिए जीती हूं कितने गम में पीती हूं कितना कितना सहती हूं कभी मैं तुझसे कुछ कहती हूं ©Santosh Narwar Aligarh #umeedein
sweta Agarwal
“बहुत कदर है ज़माने में उस नज़र की जो हमपर रुकती नहीं। ज़लील है ये दिल इतना, के फिर भी वही निकल पड़ता है”..... ©sweta Agarwal #umeedein
kaurs tams
इस्त्री sirf सम्भोग ki वस्तु nahee hoti और ye बात , hr मर्द me smjhne ki क्षमता nahee hoti !! ©kaurs tams #umeedein
Raj Guru
हम समर्पण लिए द्वार तक आ गए, भाव तर्पण किये पार तक आ गए..! स्वर्ण मृग सा ये भ्रम प्रीत हर ले गया, जीत की आस में हार तक आ गए..!! ©Raj Guru #umeedein
Raj Guru
मय है मीना है साक़ी नहीं है, ज़िन्दगी भी कुछ बाक़ी नहीं है..! नज़रों से ही पी लेने दे अब तो, इश्क़ मासूम है चालाकी नहीं है..!! ©Raj Guru #umeedein
Manjari rajpoot
लाल कफन 💔 माथे लाल बिंदी, चूडां और गहनों में आयी, पापा की परी आँगन में लाल कफन मे आयी। भरकर लाल सिंदूर मांग में जब अल्हड़ वो,, अश्कों की धारा को लाल जोड़े में दफनाईं ।। बचपन के उस संजीदा भोर में जब, पापा की लाडली कलरव करती थी। अब वो भरी जवानी में आगे बढ़,, आजादी छोड़ है रिश्ता जोड़ने आयी।। मैंने देखा था बचपन से, सफेद कफन से दफनाते लोग। आज बड़े होने पर देखा ,, लाल कफन में रंगते लोग ।। गगन में क्रीड़ा करने वाली, पापा की इज्जत में घिर गयी। जिंदगी के दौर से अब पता चला,, सफेद मुक्ति लाल कफन से लिपट गयी।। क्यूँ कहते हो तुम सब मुझको, पापा की लाडली बिगड़ गयी। क्यूँ ना देखा तुम सब ने मुझको,, अश्क दबा लाल जोड़े से सिमट गयी।। जिनको लगती हैं प्यारी बेटियां, उन सबको मैंने सताते देखा है । जो बोलते आजाद हैं मेरी चिड़ियाँ,, इक गुस्ताखी पर मैंने मारते देखा है।। हैं कितना क्रूर ये छल समाज का, मार देता किसी की जीने की वजह। समुद्र की लहरों सा फैलाकर फिर वो,, मजबूर करता आ लौट जमीं की सतह।। अब मैं भी चुप हो फिर , दर्द के जाम में घुल गयी । सारी खुसियाँ छोड़ जमाने में,, मैं लाल कफन में सो गई ।। ©Manjari rajpoot #umeedein