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Gusai Saab
रहने दो ,, अब हम क्या बताएं उनके इश्क के बारे में सारे मंजर धुंधले हो गए उस बेवफाई के इशारे में ,,, गुसाईं साहब,,, ,,, गुसाईं साहब,,,
,,, गुसाईं साहब,,,
read morePruu upreti
Power and Politics राजनीति की जो महत्वाकांक्षा है वह दूसरों के शोषण की है जब तक शोषक निम्न वर्ग और मध्य वर्ग का शोषण नहीं करेगा वह शासन कर नहीं सकता और लोकतंत्र में तो हमने यह कमान अपने हाथ से दूसरों को दे रखी है । चाहे कोई भी पार्टी का हो या किसी भी समुदाय से वह आता हो, राजनीति में आना ही वहीं चाहता है जो दूसरों के शोषण का इरादा रखता है । #politics समरथ को नहिं दोष गुसाईं ।
#Politics समरथ को नहिं दोष गुसाईं ।
read moreLovkesh narve
यह नार्वे की कहानी है तुम हो उतनी खूबसूरत तुम्हारा दिल भी होता कसम खुदा की खाकर कहता हूं आज मुझे खून के आंसू ना रोना पड़ता बेवफाई में के
बेवफाई में के
read moreModiian bablu
"हवा के रूप में प्रकाश के रूप में परेशानी, महासागर के रूप में गहरे प्यार, हीरे के रूप में दोस्त, और सोने के रूप में उज्ज्वल के रूप में सफलता
"हवा के रूप में प्रकाश के रूप में परेशानी, महासागर के रूप में गहरे प्यार, हीरे के रूप में दोस्त, और सोने के रूप में उज्ज्वल के रूप में सफलता
read moreअजय वर्मा
अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में ज़िन्दगी के खेल में समय के दुष्चक्र में मोह के टूटने में समुद्र के बह जाने में अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में सिद्धांतों के टकराने में अपनों के दूर जाने में पंक्तियों के लफ्जों में स्वप्न के टूट जाने में अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में उम्र के इस पड़ाव में विचार के बहाव में नियति के लिखाव में काल के भविष्य में अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में ज़िन्दगी के खेल में समय के दुष्चक्र में मोह के टूटने में समुद्र के
अजीब सी शांति है ऐसे जीने में छुप छुप कर रोने में सामने मुस्कुराने में ज़िन्दगी के खेल में समय के दुष्चक्र में मोह के टूटने में समुद्र के
read moreManish Raaj
माँ के आँचल में ------------------ फिर फूल सा महक़ जाने का मन करता है हिफ़ाज़त ख़ातिर, टूट कर बिखर जाने का मन करता है एक मुक़ाम पर आ कर पर्वत सा विशाल बन आज फिर से माँ के आँचल में सिमट जाने का मन करता है मनीष राज ©Manish Raaj #माँ के आँचल में
#माँ के आँचल में
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