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राधेश्याम
आप व आपके परिवार को जिंदल परिवार की तरफ से होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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read moreAjay Amitabh Suman
कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का ,पूरा है बाजार टिका, झूठ बदल जाता है सच में, ऐसी होती है दलील। औरों के हालात पे इनको, कोई भी जज्बात नही, धर तो आगे नोट तभी तो, हो पाती है डील। काला कोट पहनते जिंदल,काला हीं सबकुछ भाए, मिले सफेदी काले में वो,कर देते तब्दील। कागज के अल्फ़ाज़ बहुत है,भारी धीर पहाड़ों से, फाइलों में दबे पड़े हैं, नामी मुवक्किल। अगर जरूरत राई को भी ,जिंदल जी पहाड़ कहें, और जरूरी परबत को भी , कह देते हैं तिल। गीता पर धर हाथ शपथ ये,दिलवाते हैं जिंदल साहब, अगर बोलोगे सच तुम प्यारे,होगी फिर मुश्किल। आईन-ए-बाजार हैं चोखा, जींदल जी सारे जाने, दफ़ा के चादर ओढ़ के सच को,कर देते जलील। उदर बड़ा है कचहरी का,उदर क्षोभ न मिटता है, जैसे हनुमत को सुरसा कभी ,ले जाती थी लील। आँखों में पट्टी लगवाक़े,सही खड़ी है कचहरी, बन्द आँखों में छुपी पड़ी है,हरी भरी सी झील। यही खेल है एक ऐसा कि, जीत हार की फिक्र नहीं, जीत गए तो ठीक ठाक ,और हारे तो अपील। कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का ,पूरा है बाजार टिका,
कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का ,पूरा है बाजार टिका,
read moreAjay Amitabh Suman
कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का , पूरा है बाजार टिका, झूठ बदल जाता है सच में, ऐसी होती है दलील। औरों के हालात पे इनको, कोई भी जज्बात नही, धर तो आगे नोट तभी तो, हो पाती है डील। काला कोट पहनते जिंदल, काला हीं सबकुछ भाए, मिले सफेदी काले में वो, कर देते तब्दील। कागज के अल्फ़ाज़ बहुत है, भारी धीर पहाड़ों से, फाइलों में दबे पड़े हैं, नामी मुवक्किल। अगर जरूरत राई को भी , जिंदल जी पहाड़ कहें, और जरूरी परबत को भी , कह देते हैं तिल। गीता पर धर हाथ शपथ ये, दिलवाते हैं जिंदल साहब, अगर बोलोगे सच तुम प्यारे, होगी फिर मुश्किल। आईन-ए-बाजार हैं चोखा, जींदल जी सारे जाने, दफ़ा के चादर ओढ़ के सच को, कर देते जलील। उदर बड़ा है कचहरी का, उदर क्षोभ न मिटता है, जैसे हनुमत को सुरसा कभी , ले जाती थी लील। आँखों में पट्टी लगवाक़े, सही खड़ी है कचहरी, बन्द आँखों में छुपी पड़ी है, हरी भरी सी झील। यही खेल है एक ऐसा कि, जीत हार की फिक्र नहीं, जीत गए तो ठीक ठाक , और हारे तो अपील। कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का ,
कचहरी जहाँ जुर्म की दस्तानों पे , लफ़्ज़ों के हैं कील। वहीं कचहरी मिल जायेंगे , जिंदलजी वकील। लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का ,
read moreRavendra
निजी नलकूप उपभोक्ताओं के बिजली बिल पर शत-प्रतिशत छूट योजना का सीएम ने किया शुभारम्भ बहराइच प्रदेश के निजी नलकूप उपभोक्ताओं को मुफ्त विद्
read moreVedantika
व्यथित हुआ हृदय तुम्हारे वियोग में लगता है कि बस धड़कन बाकी रह गई •♡• क़सक तेरे इंतज़ार की •♡• "नाज़ुक ह्रदय की व्यथा को अभिव्यक्त करूँ कैसे बस इक क़सक बाकी रह गई है, तेरे इंतज़ार में।" - शीतल जिंदल ▪▪▪
•♡• क़सक तेरे इंतज़ार की •♡• "नाज़ुक ह्रदय की व्यथा को अभिव्यक्त करूँ कैसे बस इक क़सक बाकी रह गई है, तेरे इंतज़ार में।" - शीतल जिंदल ▪▪▪
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