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संस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
स्वलिखित संस्कृत रचना शीर्षक विश्वासघातकं विश्वासघातकं कुलसम्बन्धं यावत् निर्दोषतायां स्वार्थः भवतु, यावत् वयं तेषां हितकराः स्मः, अन्यथा
read moreRakesh frnds4ever
White तुझको जो पा जाऊं मैं धन दौलत से भर जाऊं मैं काश तू दुल्हन बनकर आए जीवन में,,, दुनिया की तरह ,,,,,,,मेरी भी दुनिया हो जाए हसीन,,,,,,, पा कर तेरे साथ को जो नीभ जाए जिंदगी तू हो जाए जो मेरी जीवनसंगिनी,, धन तेरस हो जाए मेरी मिल जाए मुझे धन - ते- रस ©Rakesh frnds4ever #तुझको जो पा जाऊं मैं #धन_दौलत से भर जाऊं मैं काश तू #दुल्हन बनकर आए जीवन में,,, दुनिया की तरह मेरी भी दुनिया हो जाए हसीन,, पा कर #तेरे_
संस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
स्वलिखित संस्कृत लेख भाग१ अद्यत्वे अपि अग्निप्रवेशम अद्यत्वे अपि स्थितिः प्रत्येकस्य महिलायाः अग्निप्रवेशम अस्ति। प्रतिक्षणं ददाति, जीवनस
read moreMohan raj
जो भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते उन्हें चुप रहना चाहिए ये भावान् वाचाभिव्यञ्जयितुं न शक्नुवन्ति ते तूष्णीं तिष्ठेयुः Those who cannot express feelings in words should remain silent Dhanywaad Har Har Mahadev ©Mohan raj #Life Lessons ये भावान् वाचाभिव्यञ्जयितुं न शक्नुवन्ति ते तूष्णीं तिष्ठेयुः
#Life Lessons ये भावान् वाचाभिव्यञ्जयितुं न शक्नुवन्ति ते तूष्णीं तिष्ठेयुः
read morewriter_Suraj Pandit
भागवत गीता 🙏🏻 (अध्याय 2, श्लोक 47) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥ भावार्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तुम कर्मों के फल की चिंता मत करो, और न ही निष्क्रियता की ओर प्रवृत्त हो। यह श्लोक हमें बिना फल की चिंता किए अपने कर्तव्यों का पालन करने का संदेश देता है। ©writer_Suraj Pandit भागवत गीता 🙏🏻❣️🌺🌸 श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 47) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥ inspirational
भागवत गीता 🙏🏻❣️🌺🌸 श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 47) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥ inspirational
read moreबेजुबान शायर shivkumar
White कुछ अधूरे अफसाने कुछ अधूरे अफसाने भी ,कुछ दिल में बसे रह गए । जिन्हें तुम कभी लिख न पाए ,हम वो किस्से बनकर रह गए ।। हर मोड़ पर तेरी याद आती रही ,और ये दिल भी यु ही तड़पाती रही । हमेशा की तरह ये सिलसिले भी, मेरी तो अधूरे रह गए ।। मेरे हर लफ्ज़ में बसी थी , तेरे हर उस प्यार की मिठास । लेकिन हम उस मुकाम तक ,तुम तक कभी पहुँच भी न सके ।। तुमसे जहाँ मिलना था, वहीं तेरी यादें रह सी गईं । वो शामें, वो बातें, फिज़ाओं में अफसाने अधूरे रह गए ।। मेरे इन ख्वाबों में तेरा चेहरा ,मुझे आज भी सजीव सा लगता है । पर हकीकत में तो ,मुझे आज भी तेरी कमी दिल को यु चुभती है ।। हर पल का साथ तेरा चाहा था , पर वो मेरे नसीब न हुआ । हमारे प्यार के , इस ज़माने मे अधूरे रह गए ।। कुछ किस्से है जो , अपने इस दिल में दबाकर रखे थे । अचानक दूरी से उन्हें जताने मे, वो अधूरे रह गए ।। कुछ मेरी भी अधूरे अफसाने है ,मेरे इस दिल में बसे रह गए । जिन्हें तुम कभी लिख न पाए ,हम वो किस्से बनकर रह गए ।। // प्रेम का इंतज़ार कर ते , यु अपनी जान के लिए // ©बेजुबान शायर shivkumar प्यार पर कविता हिंदी कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविताएं कुछ अधूरे अफसाने कुछ अधूरे अफसाने भी ,कुछ दिल में बसे रह गए । जि
प्यार पर कविता हिंदी कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविताएं कुछ अधूरे अफसाने कुछ अधूरे अफसाने भी ,कुछ दिल में बसे रह गए । जि
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