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#suman singh rajpoot
कोई संभाला था, पर गिर पड़ा! कोई खाई में गिरकर शीघ्र नहीं, अतिशीघ्र संभल गया! बर्बाद उसे कारण था जो सहयोग में खड़ा था! आबाद उसे करना था जो चापलूस बड़ा था! भिखारियों की पंक्ति में जो खड़ा कर दे, वैसे भी रिश्ते देखें हैं! लोग पराये की बात करते हैं, ऐसे वैसे भी रिश्ते देखें हैं! ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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ये जो खता है मेरी लगता नहीं कि वफ़ा है मेरी। चाहकर भी नहीं बदल सकता काफ़ी छोटी औकात है मेरी! कोई उतर सकता है गले मेरे, हर किसी के गले ना उतारूं ऐसी है औकात मेरी! आज भी कीमती दस बीस निगाहें दूरबीन की तरह हैं मुझ पर ऐसी है औकात मेरी! कोई ढूंढ सकता है मुझे इतनी छोटी औकात है मेरी ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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संभलने की कला हर किसी में होती है। संभालने की कला जिसे गिरने के बाद चोट लगी हो वही जानता है। बेहतर से बेहतर हाथ टा टा बाय बाय कर निकल जाते हैं। पर बेहतरीन हाथ डूबते को थाम लेते हैं! ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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समर्पण के बाद समर्पित होना पैसों की नजरों से नहीं समझ सकते! वफ़ा क्या वफादारी पैसों की नजरों से नहीं समझ सकते हैं! कुछ चंद भाई, लोग, दोस्त बचे हैं हिस्से में, जेब से नहीं, स्वभाव से हीरे जैसे समझ सकते हैं! कोई पैसे की खनक से खुश होता है, हम तो नजरों की चमक से ख़ुश होते हैं! कि सामने जो हो मेरे उनकी नजरों की चमक की ख़ुशी से खुशी मिलती है। ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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बिछड़े की जगह भी बिरान सी हो गई सड़कों के साथ कुर्सियां भी बेजां सी हो गई! ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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कभी बूंदों की झड़ी कभी फुहार है ये अलग बरसात है। बहुत ख़ामोशी से बरस रहा है बादल। इस बरसात की अलग बात है ©#suman singh rajpoot suman singh rajpoot
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उस महफ़िल का कई इशारे याद था मुझे। जब फोकस की बात आई सबसे पहले आपकी याद आई। पहली पंक्ति से मुड़कर पहली बार आपने जब देखा, कुछ समझ ना आई। जब बार बार अपने देखा मेरी नज़र में नहीं दिमाग़ में उतर आये। ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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हरे भी हैं गहरे भी हैं उनका दिया हुआ ज़ख़्म है। अभी तक ताज़े हैं। अक्सर कुरेदता हूं मैं जख्मों से पूछता हूं मैं मैं बेदर्द हूं या उसने बना दिया मुझे। जो मरहम लगाने के बजाय कुरेदता हूं तूझे। ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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छड़ी बनने से ना डरें कभी। जो विद्यार्थी की हथेली पर खुद टूटकर जिन्दगी बना दे। वो छड़ी बनने में क्या जाता है। आपके टूटने से कोई सवर जाता है तो क्या जाता है। छड़ी बनने से ना डरें कभी। जो अंधों को राह दिखा दे ऐसा सहारा बनने में क्या जाता है। छड़ी बनने से ना डरें। लड़खड़ाते पैरों का सहारा बनने में क्या जाता है। ©#suman singh rajpoot #suman singh rajpoot
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