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Stories related to दीर्घकालिक अभिविन्यास

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रजनीश "स्वच्छंद"

मन को देखो टटोलकर।। जीवनकाल के उत्तरार्ध पर, मन को मैं हूँ टटोलता, ज्ञान भिक्षा जो मिली थी, मुख खोल मैं हूँ बोलता। दीर्घकालिक हूँ नहीं मैं

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मन को देखो टटोलकर।।

जीवनकाल के उत्तरार्ध पर, मन को मैं हूँ टटोलता,
ज्ञान भिक्षा जो मिली थी, मुख खोल मैं हूँ बोलता।

दीर्घकालिक हूँ नहीं मैं, नश्वरता का कुल बोध है,
अनुभवों की चाभी भर, बन डुगडुगी हूँ डोलता।

ज्ञान का ये दायरा, ना सीमित ना संकुचित हुआ,
वाणी को कर शिरोधार्य, ले ज्ञान-तराजू हूँ तोलता।

विवेक पर कुमति थी भारी, उदंडता अमरत्व पर,
विष मन्थित कंठ धारे, मैं निज को ही हूँ कोसता।

सुचितोचित प्रश्नवाचक, चढ़ दुर्ग था ललकारता,
विनिमयी इस मेले में, निज त्रास को हूँ मोलता।

कंठाग्र जो थी संस्कृति, आंदोलित रही उदगार को,
हो कुपित मनोभाव से, संग शुष्म रक्त हूँ खौलता।

ह्रस्व था या दीर्घ था, मैं दिन था या दीन हुआ अब,
आकंठ क्रंदन-स्वर में डूब, स्याही में नाद हूँ घोलता।

©रजनीश "स्वछंद" मन को देखो टटोलकर।।

जीवनकाल के उत्तरार्ध पर, मन को मैं हूँ टटोलता,
ज्ञान भिक्षा जो मिली थी, मुख खोल मैं हूँ बोलता।

दीर्घकालिक हूँ नहीं मैं

Priyanjali

मुक्त कर मुझे............ के मैं उड़ चलूँ...........! मुक्त गगन में........... पंछियों संग पँख खोलूँ..............!

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मुक्त कर मुझे............
         के मैं उड़ चलूँ...........!
           मुक्त गगन में...........
      पंछियों संग पँख खोलूँ..............!!

आज मुक्त कर मुझे..........
      थोड़ा खुलकर जी लूँ............!
स्वतंत्रता का मय मीठा लागे मोहे....
     थोड़ा पी लेने दे मुझे................
   पीकर थोड़ा मदहोश हो लूँ......
      मत बाँध मुझे................
         आज किसी बंधन में..........
पँख फैलाने दे मुझे आज..........
मुक्त आकाश के आंगन में.....!!

मुक्त कर मुझे दोषारोपण के पिंजरे से..........
समाज के दृष्टिकोण के परे मुझे जाने दे.......
खुदमें ही खुद से मुझे बस खो जाने दे..........🙏🙏🙏
कुछ पल छीन.....
कुछ भावपूर्ण....
कुछ भावविभोर......
कुछ भावविहीन......
थोड़ा रो लूँ........
थोड़ा हँस लूँ.....
ख़ुदको........
खुद की बाहों में लिपट कर..............
आज मैं किसी की नहीं.....
    बस खुद की हो लूँ..............


आज सुगंध सी पवन संग क्रीड़ा करूँ.....
उलझुँ, सुलझुँ संग मिश्रित हो जाउँ........
कुसुमित, प्रस्फुटित पुष्पों से........
दीर्घकालिक वार्तालाप हो मेरी.....
उन वार्तालापों में खो जाउँ....................!!
उन पुष्पों की सुगंध में तुम्हें पाऊं...............
बस मौन ही बातें करें तुम संग...................
मुख से मैं कुछ न बोलूँ.........!!

मुक्त कर मुझे...............
            के मैं उड़ चलूँ..................!
           मुक्त गगन में..............
   पंछियों संग पँख खोलूँ.................!!

©Priyanjali मुक्त कर मुझे............
         के मैं उड़ चलूँ...........!
           मुक्त गगन में...........
      पंछियों संग पँख खोलूँ..............!

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Aprasil mishra

एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर

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"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा"              
                  एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर

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