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Stories related to शिकारे ं सिरप

VIIKAS KUMAR

Sbl कालमेघ सिरप

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Rajesh Pandey

जीवन रक्षक कुरसीप सिरप.

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Kaushal Almora

Arun fitness 3M

सफेद मुसली सिरप increase your sex power #no #notojohindi #ViralVideo #Health&Fitness #Gym

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Manas Raj Singh

सादत हसन मंटो लेखक - मानस राज सिंह "मंटो"  मंटो की कहानी का एक किरदार है, जैसे मंटो की रचनाएं एक जखजोर देने वाला सच थीं शायद कहने का लहजा क

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सादत हसन मंटो
 "मंटो"  मंटो की कहानी का एक किरदार है, जैसे मंटो की रचनाएं एक जखजोर देने वाला सच थीं शायद कहने का लहजा कड़वा था बिल्कुल नीम की तरह, पर जो उस कड़वाहट को पी गया उसका खून और मस्तिष्क साफ हो जाता, लेकिन आज कल इंसान शायद "इंसान" कहना गलत होगा जो मीठा सिरप पीने का आदि है वही मीठा सिरप जो आगे जाकर उसके लहू को इस कदर गड़ा कर देती हैं कि दिमाग तक खून जाना ही बंद हो जाता है, 

जैसा कि मैंने कहा कि मंटो "मंटो" की रचना का एक किरदार है क्योंकि वो किरदार ही रहे तो अच्छा है क्योंकि वो जमीनी हकीकत जब जमीन पर आती है तो हमारे पैरो तले जमीन ही नही रह जाती.....

हिंदुस्तान जिंदाबाद, मंटो जिंदाबाद 

लेखक-मानस राज सिंह"नीम" सादत हसन मंटो
लेखक -  मानस राज सिंह
"मंटो"  मंटो की कहानी का एक किरदार है, जैसे मंटो की रचनाएं एक जखजोर देने वाला सच थीं शायद कहने का लहजा क

Harshita Dawar

सुप्रभात। हर व्यक्ति की संघर्ष गाथा लिखी जाने लायक़ होती है। #बतानाहै #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi Written by

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Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
मुझे बताना है तुम्हे ।
दूर उस शिकारे में बेठे थे हम कहीं।
डल झील की शांत वादियों में खोएं थे कभी।
कावें के घुट से निकलती भाप को मेहसूस किया था ।
अपने चहरे पर ।
लाली जो थी मेरे गालों पर वो गुलाबी गुलाब जो दिया था तुमने उसकी परछाईं थी।
उन सर्दं हवाओं में भी कुछ गरमाईशं हमारे दिलों की धड़कन  को तेज़ कर रही थी।
लाल सुर्खं सेब के बाग़ में ख़ुद को एक अभिनेत्री से कम नहीं समझ रही थी।
वो हाथों में हाथ डाले।आंखो में खोते रहें।
उस बर्फ़ की बारिशं में ख़ुद को  भिगोते रहे। 
एहसास अंतर्मन में जगाते रहे।
दिलों को दिल के एहसासों से जगाते  रहे।


 सुप्रभात।
हर व्यक्ति की संघर्ष गाथा लिखी जाने लायक़ होती है।
#बतानाहै #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
Written by

Poonam Suyal

कश्मीर - एक यात्रा वृतांत करूँ मैं इक दिन कश्मीर की सैर मन में एक चाह थी मेरी बनाया परिवार जनों ने कार्यक्रम वो तमन्ना होने को थी पूरी

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कश्मीर - एक यात्रा वृतांत 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) कश्मीर - एक यात्रा वृतांत 

करूँ मैं इक दिन कश्मीर की सैर 
मन में एक चाह थी मेरी 
बनाया परिवार जनों ने कार्यक्रम 
वो तमन्ना होने को थी पूरी

lalitha sai

करो अपने लिए कुछ काम ऐसा कभी किया ही ना हो.. गुलाबजामुन के साथ मिक्स करके वेनिल्ला आइसक्रीम की जगह चॉकलेट फ्लेवर की सिरप डालकर उसका आनंद ले

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रहो बेफिक्र.... करो अपने लिए कुछ काम ऐसा कभी किया ही ना हो..
गुलाबजामुन के साथ मिक्स करके वेनिल्ला आइसक्रीम की जगह चॉकलेट फ्लेवर की सिरप डालकर उसका आनंद ले

Priya Kumari Niharika

क्या तेरे शहर में,बर्फ ने माथे को चूमा है अफरोज क्या तेरी फिजाओं में,पतझड़ भी मस्ती में झूमा है अफरोज वादियों की बांहों में, कुदरत

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क्या तेरे शहर में,बर्फ ने माथे को चूमा है अफरोज 
क्या तेरी फिजाओं में,पतझड़ भी मस्ती में झूमा है अफरोज 

वादियों की बांहों में, कुदरत का नशा आज भी , छाया है क्या
 रुअब्जा सा गुलाबी आसमा, और शरबती झील को, क्षितिज ने ही मिलाया है क्या
 
क्या ये तेरे इश्क का जादू है या तेरे मोहब्बत का फितूर है दिलशाद 
या कुदरत का करिश्मा कहूं , या तेरे शहर का नूर है दिलशाद 

क्या झील का पानी, आज भी तेरे दीदार को,बेताब रहता है अफरोज 
 क्या तेरे जहन में आज भी, उन लम्हों का, हिसाब रहता है अफरोज 

क्या तुम्हें चिनार के बाग,आज भी, उतने ही हसीन लगते है क्या
और शिकारा,आज भी, नर्गिस और नीलोफर की जमीन लगते है क्या

क्या आज भी तेरे हाथों के कहवे से,जाफरीन की खुसबूँ आती है अफरोज 
क्या आज भी तेरी परछाई, वादिओं से होती हुई, मेरी गलियों तक जाती है अफरोज

 अब भी कैनवास पर रंगों में घुली,केसर की हसीन वादियाँ, शिकारे, झेलम और अफरोज मेरा इंतजार कर रही है क्या 
 या आज भी वो कैनवस पर उतरने से इंकार कर रही है क्या 

क्या पश्मीना, आज भी तेरी मुस्कुराहटों को, ढक लेती है अफरोज 
या हर सबेरा तेरी ख्वाहिशों को, चख लेती है अफरोज 

क्या अब भी स्याह रातों में, तुम्हारी नजरों की दूरबीन,कहकशा को तलाशती है क्या
क्या अब भी तुम्हारी मुट्ठीयों की जुगनूये , परियों की तरह नाचती है क्या

सेब और अखरोट के बाग से होते हुए,झील तक का सफर
और झील के आगोश में हमारी चंद मुलाकाते, कुछ नज्म, चिठ्ठीयाँ और अखरोट
पर मालूम नहीं था,
 कि,हर हसीं सबेरा,एक खौफनाक रात का फरमान लाता है
तब जन्नत का शहर भी, खुद को सुनसान पाता है 

आज बड़े दिनों बाद तेरे शहर में, मैं फिर से लौटकर आया हूँ अफरोज
तुम्हारी मनपसंद नीलोफर और नर्गिस के फूलों के साथ

दो नज्म मैं तुमको सुना दूँ,इतनी सी है आरजू 
पर तेरे क़ब्र की खामोशियाँ,बस तन्हाईयों से ही कर रही हैं गुफ़्तगू
 पर तेरे कब्र की खामोशियां, बस तन्हाइयों से ही कर रही है गुफ़्तगू

©Priya Kumari   Niharika #Nojoto क्या तेरे शहर में,बर्फ ने माथे को चूमा है अफरोज 
क्या तेरी फिजाओं में,पतझड़ भी मस्ती में झूमा है अफरोज 

वादियों की बांहों में, कुदरत
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