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Rakesh frnds4ever

#टूटा टूटा एक #परिंदा ऐसे टूटा की फिर जुड़ ना पाया लूटा लूटा किसने उसको ऐसे लूटा की फिर #उड़ ना पाया गिरता हुआ वो #आसमां से आकर गिरा ज

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Nurul Shabd

Anjali Singhal

#शरद_पूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ... #AnjaliSinghal #sharadpurnimastatus #sharadpurnima #Rasleela nojoto "चाँद देखो खीर में अमृत घोल रहा है

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veer jii

#मरीचिका ✍ इश्क़ में हम हिसाबी नहीं हो सके, इतने हाज़िर- ज़वाबी नहीं हो सके। हमने तो तुम पे ख़ुद को लुटाया मगर, तुम जरा भी रुबाबी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- यूँ न माँ बाप का दिल दुखा दीजिए । बृद्ध हैं तो उन्हें आसरा दीजिए ।। थाम हाथों को जिनके हुए हो बड़े  शीश चरणों में उनके झुका दीजिए  जख़्

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ग़ज़ल :-
यूँ न माँ बाप का दिल दुखा दीजिए ।
बृद्ध हैं तो उन्हें आसरा दीजिए ।।
थाम हाथों को जिनके हुए हो बड़े 
शीश चरणों में उनके झुका दीजिए 
जख़्म जितने सहे हैं तुम्हारे लिए 
फूल दामन में उतने ख़िला दीजिए 
बाप का फर्ज जो भूल पाये नही 
मान सम्मान उनका बढ़ा दीजिए
हैं बहन बेटियाँ सबकी साझीं यहाँ 
बात बेटों को इतनी बता दीजिए 
घर में आई बहू है हमारे नई 
आप नज़रे न उसको लगा दीजिए 
इस जहाँ में पिता परमेश्वर ही यहाँ ।
जाके चरणों में सब कुछ लुटा दीजिए 
मोल जिनका यहाँ पर चुका ना सको 
उनकी सेवा में जीवन बिता दीजिए 
साथ लाये थे क्या जो हुआ दुख तुम्हें
बात इतनी तो जग को बता दीजिए 
हैं दुवाएँ प्रखर साथ माँ बाप की 
आप राहों में रोड़े लगा दीजिए 
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
यूँ न माँ बाप का दिल दुखा दीजिए ।
बृद्ध हैं तो उन्हें आसरा दीजिए ।।
थाम हाथों को जिनके हुए हो बड़े 
शीश चरणों में उनके झुका दीजिए 
जख़्

संस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु

सर्वेभ्यः स्वातन्त्र्यदिवसस्य शुभकामना🇮🇳🙏 आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं स्वरचित संस्कृत रचना शीर्षक अस्माकं प्रियं भार

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- देख कर ख़ुद को छिपाता है कोई  अपने ख़ुद अश्क़  बहाता है कोई  दिल की आवाज़ सुनाता है कोई । वज़्म में अपनी बुलाता है कोई ।। नाम कोई भी नही 

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ग़ज़ल :-
देख कर ख़ुद को छिपाता है कोई 
अपने ख़ुद अश्क़  बहाता है कोई 
दिल की आवाज़ सुनाता है कोई ।
वज़्म में अपनी बुलाता है कोई ।।
नाम कोई भी नही  रिश्ते का
फिर भी रिश्तों को निभाता है कोई
इस तरह चाहता अब है मुझको
सारी दुनिया को बताता है कोई 
सारे इल्ज़ाम हमारे लेकर
मुझको बेदाग़ बताता है कोई 
हो न जाऊँ खुशी से मैं पागल 
जान ऐसे भी लुटाता है कोई
अब तो रहता नशें में हूँ हरपल 
ज़ाम आँखों से पिलाता है कोई
रात कटती न प्रखर करवट में 
याद ऐसे  मुझे आता है कोई 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
देख कर ख़ुद को छिपाता है कोई 
अपने ख़ुद अश्क़  बहाता है कोई 
दिल की आवाज़ सुनाता है कोई ।
वज़्म में अपनी बुलाता है कोई ।।
नाम कोई भी नही 
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