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Sanjay Ni_ra_la
हर एहसास में शामिल रहती हो पलकों में काबिज रहती हो चाहतों के मेरे समन्दर में तुम हिचकोले खाती रहती हो एक मृग मरीचिका सी लगती हो पास आने पर कितनी दूर दिखाई देती हो ©Sanjay Ni_ra_la ##दूर दिखाई देती हो हर एहसास में शामिल रहती हो पलकों में काबिज रहती हो चाहतों के मेरे समन्दर में तुम हिचकोले खाती रहती हो एक मृग मरीचिका स
##दूर दिखाई देती हो हर एहसास में शामिल रहती हो पलकों में काबिज रहती हो चाहतों के मेरे समन्दर में तुम हिचकोले खाती रहती हो एक मृग मरीचिका स
read moreveer jii
#मरीचिका ✍ इश्क़ में हम हिसाबी नहीं हो सके, इतने हाज़िर- ज़वाबी नहीं हो सके। हमने तो तुम पे ख़ुद को लुटाया मगर, तुम जरा भी रुबाबी
read moreParastish
किताब-ए-ज़ीस्त में मुझे कोई निसाब ना मिला बहुत सवाल थे जिन्हें कभी जवाब ना मिला मिले बहुत मुझे, मगर कोई सवाब ना मिला मिरे हिसाब का कोई भी इंतिख़ाब ना मिला गुज़र गई ये उम्र बस, चराग़-ए-ग़म के साए में जो रौशनी करे मुझे, वो आफ़ताब न मिला बड़ी थी आरज़ू मिरी, हक़ीक़तें सँवार लूँ नसीब ख़ार ही हुए, कोई गुलाब ना मिला झुलस गए बुरी तरह से हम तो दश्त-ए-इश्क़ में कि आब, अब्र छोड़िए, हमें सराब न मिला किसी हसीन याद का चलो ये फ़ायदा हुआ कटी है उम्र हिज्र में, मगर अज़ाब ना मिला तलाशती रही सदा, वो जिस में अक्स पा सकूँ पर आईने-सा, कोई शख़्स, बे-नक़ाब ना मिला ©Parastish किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब निसाब= मूल,आधार, सरमाया सवाब= सही, ठीक इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला ख़ार= काँटे दश्त-ए-इश्क़= इश
किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब निसाब= मूल,आधार, सरमाया सवाब= सही, ठीक इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला ख़ार= काँटे दश्त-ए-इश्क़= इश
read moreManjeet Sharma 'Meera'
#ग़ज़ल 2122 1122 1122 22 🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷 जो निगाहों से गिरी हो वो मुहब्बत हूँ मैं। कैसे कह दूं तेरे अभिमान की दौलत हूँ मैं। आइना देख न पा
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