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Anjali Nigam
ना पूछो मेरी सराब का आलम तुझे पाने की कोई चाहत ही नहीं तेरे बारे में सोचकर ही तुझे हम अपने नज़दीक महसूस कर लेते हैं......!! ©Anjali Nigam #सराब (मृगतृष्णा)
#सराब (मृगतृष्णा)
read moreVickram
ये भी सच की तरह कड़वी है मगर,, कुछ देर ही सही खूब काम आती है,, ये बड़ी ही अजीब सी दुनिया है इसकी,, हर मौके पर खूब साथ निभाती है,, ये कभी खुशी में तो कभी गम की दवा भी बनी,, कभी हमें अफसोस भी कराती है ये,, पर ये बेवफा नहीं हर किसी की तरह अपना वादा आंखिर तक निभाती है ये सहारा देती है ये बिना औकात देखकर ये सराब है हर कोने में पायी जाती है ये ©Vickram ये सराब है,,,
ये सराब है,,,
read morebrijesh mehta
** लोग तो शराब पे मरते हैं, मैं तो सराब में मारा गया। .. ©brijesh mehta लोग तो शराब पे मरते हैं, मैं तो सराब में मारा गया। #मंमाधन
लोग तो शराब पे मरते हैं, मैं तो सराब में मारा गया। #मंमाधन
read moreAbhinav Mukherjee
बे-गरज़ - without any reason संखिया - arsenic ( poison which is sweet) खुदगर्ज़ - selfish तनक़ीद - criticize दूरबीन-ए-हुकूमत - spies of gove
read moreParastish
किताब-ए-ज़ीस्त में मुझे कोई निसाब ना मिला बहुत सवाल थे जिन्हें कभी जवाब ना मिला मिले बहुत मुझे, मगर कोई सवाब ना मिला मिरे हिसाब का कोई भी इंतिख़ाब ना मिला गुज़र गई ये उम्र बस, चराग़-ए-ग़म के साए में जो रौशनी करे मुझे, वो आफ़ताब न मिला बड़ी थी आरज़ू मिरी, हक़ीक़तें सँवार लूँ नसीब ख़ार ही हुए, कोई गुलाब ना मिला झुलस गए बुरी तरह से हम तो दश्त-ए-इश्क़ में कि आब, अब्र छोड़िए, हमें सराब न मिला किसी हसीन याद का चलो ये फ़ायदा हुआ कटी है उम्र हिज्र में, मगर अज़ाब ना मिला तलाशती रही सदा, वो जिस में अक्स पा सकूँ पर आईने-सा, कोई शख़्स, बे-नक़ाब ना मिला ©Parastish किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब निसाब= मूल,आधार, सरमाया सवाब= सही, ठीक इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला ख़ार= काँटे दश्त-ए-इश्क़= इश
किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब निसाब= मूल,आधार, सरमाया सवाब= सही, ठीक इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला ख़ार= काँटे दश्त-ए-इश्क़= इश
read moreJitender Kumar
#haadse शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था जिस्म जल जाएँगे जब सर प
read moreManjeet Sharma 'Meera'
#ग़ज़ल 221 2121 1221 212 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 आब-ओ-हवा-ए-गुलसिताँ गो पुरबहार है। गुल दिल के गर न खिल सके तो ख़ारज़ार है। ता-उम्र भागते रहे बाहर
read moreManjeet Sharma 'Meera'
#ग़ज़ल 2122 1122 1122 22 🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷 जो निगाहों से गिरी हो वो मुहब्बत हूँ मैं। कैसे कह दूं तेरे अभिमान की दौलत हूँ मैं। आइना देख न पा
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