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Parasram Arora

प्रेम का उदगम स्थल

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हा   वो भी  एक  लम्हा  था  जो गुजर  गया 
 ज़ब प्रेम  के    एक  तिनके  को  थामे मैं 
बहुत  देर  तक   खड़ा रहा 
औऱ समय   बहता  रहा   मुझे   घेरे   
औऱ  घुमाता  रहा मुझे  सभी  दिशाओ  मे 
लेकिन  ढूंढ नहीं पाया मैं  फिर भी 
अपनी  प्यास का उदगम  स्थल प्रेम  का  उदगम  स्थल

Parasram Arora

उदगम.......

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#Pehlealfaaz  यहां  मैं  तब  आया  था 
ज़ब   पृथ्वी   निराकार  शून्य   थी 
पृथ्वी  के  रहस्यों  पर   अंधकार  tha
ईश्वर  कि  आत्मा    क्षीर  सागर  कि  सतह  पर    तैर  रही  थी उदगम.......

Arora PR

उदगम

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Parasram Arora

उदगम

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Parasram Arora

# कविता का उदगम.......

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वो नहीं होती कविता 
जिसे  सर्दी  की  
ठिठुरन  मे  चाय क़े  गर्म घूँट क़े  साथ  हलक 
मे  उतार लिया जाय
कविता तो  कवि क़े  संवेदित  ह्रदय की 
वो   उम्दा  फ़सल है. जिसे कवि अपने  ही 
खेत  मे अपने लिए  उगाता है
लेकिन  जिसे  वो   औरों  मे  बाँट  कर 
ज्यादा  प्रसन्नता  का  अनुभव करता है

©Parasram Arora # कविता  का उदगम.......

Parasram Arora

काव्य का उदगम

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किसी भी कविता क़े लिए  ईमानदारी कोई
बुनियादी शर्त नहीं  बन सकती 
क्योंकि कल्पना  मे  काव्य बिना पंखो क़े ही
उड़ान भरता है
अक्सर कविता लिख लेने क़े  उपरान्त  कवि अपनी कविता की
 सार्थकता ढूंढ़ने  लगता है
क्योंकि  समझ और तर्क का  कविता से  दूर दूर
तक कोई लेना देना नहीं है
एक उद्विगन  भयाकुल निराश  संवेदनशील  और घुटन
से  ओतप्रोत  व्यक्तित्व  ही सुंदर काव्य  रचना
मे निपुणता हासिल  कर लेता है

©Parasram Arora काव्य का उदगम

Parasram Arora

यादो का उदगम.......

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जब  अचानक  सर  उठाने  लगती हैँ  यादे 
पीड़ाये  सघन   हो जाती हैँ 
जैसे  दूर  गगन मे  काले  बादलो की  बीच  बिजली  कौंध  जाती
फिर नभ ले नीलेपन  की  गरिमा  और  गहराई   और  बढ़  जाती हैँ 
मन कुछ  कहना  चाहता हैँ   और  ह्रदय  की  धड़कन  भी बढ़  जाती हैँ 
उफनते  लगता  हैँ  अश्रुओ  का    सिंधु  कोष 
और अविरल  जलधारा   बह  जाती  हैँ 
क्यों आती  हैँ  यादे  कहा से   सहसा  आ धमकती हैँ 
कदाचित  जब  ह्रदय  की  बंद  गुफाये      सांस लेने   हेतु  
द्वार  अपने  खोल  देती  हैँ...............  तब  कहीं  ये  
यादे   सज  संवर   कर  बाहर  आने   की  धृष्टता   कर  
बैठती  हैँ यादो  का  उदगम.......

Parasram Arora

उदगम और अंत #Ray

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हा  मैं आ पंहुचा हूँ
उस मुकाम पर
जहाँ न जहन्नुम का ख़ौफ़  है
न  जन्नत की कोई हसरत 
यहां न उजालों की  बरकत है.
न  अंधेरों का कोई वज़ूद
सिर्फ दौड़ती  फुदकती  पगडाडिया है. जिन्हे
खुद का कोई पता नहीं 
और वे न ही ये जानती है क़ि कहाँ  है
उनका उदगम और आगे  कहाँ  होगा उनका. अंत

©Parasram Arora उदगम  और अंत 

#Ray

satya

शांति स्थल

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बैठे है अकेले कितना सुकून है

फर्क़ इतना है,वहाँ लोगो के साथ अौर यहाँ पृकृति के साथ है। शांति स्थल

Arora PR

आश्रय स्थल

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