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Parasram Arora
हा वो भी एक लम्हा था जो गुजर गया ज़ब प्रेम के एक तिनके को थामे मैं बहुत देर तक खड़ा रहा औऱ समय बहता रहा मुझे घेरे औऱ घुमाता रहा मुझे सभी दिशाओ मे लेकिन ढूंढ नहीं पाया मैं फिर भी अपनी प्यास का उदगम स्थल प्रेम का उदगम स्थल
प्रेम का उदगम स्थल
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#Pehlealfaaz यहां मैं तब आया था ज़ब पृथ्वी निराकार शून्य थी पृथ्वी के रहस्यों पर अंधकार tha ईश्वर कि आत्मा क्षीर सागर कि सतह पर तैर रही थी उदगम.......
उदगम.......
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मुझे मालुम है. कि अपना उदगम ढूंढ़ने के लिये मुझे इस जन्म से अगले जनम के बींच का फासला तय करना होगा लेकिन उसके पहले मुझे अपनी मृत्यु से भी तौ गुजरना पढ़ेगा ये मुझे मालूम नही था ©Arora PR उदगम
उदगम
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सपनो के आंशिक एपिसोड कुछ भी स्पष्ट नहीं कर पाए सत्य और यथार्थ सदैव मुझे दूर खडे नजर आये इन सपनो के उदगम स्त्रोत तक पहुंचने मे हमने न जाने कितने बहुमूल्य क्षण व्यर्थ गवाये ©Parasram Arora उदगम
उदगम
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वो नहीं होती कविता जिसे सर्दी की ठिठुरन मे चाय क़े गर्म घूँट क़े साथ हलक मे उतार लिया जाय कविता तो कवि क़े संवेदित ह्रदय की वो उम्दा फ़सल है. जिसे कवि अपने ही खेत मे अपने लिए उगाता है लेकिन जिसे वो औरों मे बाँट कर ज्यादा प्रसन्नता का अनुभव करता है ©Parasram Arora # कविता का उदगम.......
# कविता का उदगम.......
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किसी भी कविता क़े लिए ईमानदारी कोई बुनियादी शर्त नहीं बन सकती क्योंकि कल्पना मे काव्य बिना पंखो क़े ही उड़ान भरता है अक्सर कविता लिख लेने क़े उपरान्त कवि अपनी कविता की सार्थकता ढूंढ़ने लगता है क्योंकि समझ और तर्क का कविता से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है एक उद्विगन भयाकुल निराश संवेदनशील और घुटन से ओतप्रोत व्यक्तित्व ही सुंदर काव्य रचना मे निपुणता हासिल कर लेता है ©Parasram Arora काव्य का उदगम
काव्य का उदगम
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जब अचानक सर उठाने लगती हैँ यादे पीड़ाये सघन हो जाती हैँ जैसे दूर गगन मे काले बादलो की बीच बिजली कौंध जाती फिर नभ ले नीलेपन की गरिमा और गहराई और बढ़ जाती हैँ मन कुछ कहना चाहता हैँ और ह्रदय की धड़कन भी बढ़ जाती हैँ उफनते लगता हैँ अश्रुओ का सिंधु कोष और अविरल जलधारा बह जाती हैँ क्यों आती हैँ यादे कहा से सहसा आ धमकती हैँ कदाचित जब ह्रदय की बंद गुफाये सांस लेने हेतु द्वार अपने खोल देती हैँ............... तब कहीं ये यादे सज संवर कर बाहर आने की धृष्टता कर बैठती हैँ यादो का उदगम.......
यादो का उदगम.......
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हा मैं आ पंहुचा हूँ उस मुकाम पर जहाँ न जहन्नुम का ख़ौफ़ है न जन्नत की कोई हसरत यहां न उजालों की बरकत है. न अंधेरों का कोई वज़ूद सिर्फ दौड़ती फुदकती पगडाडिया है. जिन्हे खुद का कोई पता नहीं और वे न ही ये जानती है क़ि कहाँ है उनका उदगम और आगे कहाँ होगा उनका. अंत ©Parasram Arora उदगम और अंत #Ray
उदगम और अंत #Ray
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बैठे है अकेले कितना सुकून है फर्क़ इतना है,वहाँ लोगो के साथ अौर यहाँ पृकृति के साथ है। शांति स्थल
शांति स्थल
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पहाड़ो की डलांन पऱ पैर मेरे संभल नहीं पांते. मै भूल गया था कि मेरा आश्रय स्थल तो इन पहाड़ो की घाटी मे हैँ ©Arora PR आश्रय स्थल
आश्रय स्थल
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