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Ananta Dasgupta
रुद्राक्ष को थामकर आदेश ने उसे कसकर अपनी मुट्ठी मे पकड़ लिया। रुद्राक्ष के हर हिस्से में वो अपने दोस्त को ढूंढ रहा था। आँखों में सिर्फ आँसू थे और कुछ नहीं। --"शिव... स.. दा... सहा.... यते!" रुंधे हुए गले से बहुत देर बाद उसकी आवाज़ निकली। अचानक उसे याद आया कि रुद्राक्ष तो उसकी माँ ने पूजा घर में रखा था। एक हलचल के साथ उसने अपना सिर उठाया और फिर जो देखा, बस देखता रह गया। उसके सामने कोई खड़ा है, शांत, एक अनदेखी आकृति। उसके घर में चारों तरफ कर्पूर जैसी खुश्बू फैल गई। आदेश कुछ समझ पाता कि तभी उसे उस आकृति ने हाथों से उठकर अपने पास खड़ा किया। आदेश ने अब उसे ध्यान से देखा। वो व्याघ्र चर्म पहने हुए खड़ा था जिसने आदेश को बचाया। शिवाय! --"कहा था ना तुझे एक तूफान के बारे में।" इतना कहते ही आदेश शिवाय के गले लगकर फफकते हुए रोने लगा। सारी ज़िंदगी के दुख, उसके इकलौते दोस्त के सामने बाहर आ गए। वो चीख रहा था और शिवाय उसको थामकर संभाले हुए थे। --"शांत हो जा। बस! बहुत रो लिया।" उसके सिर को सहलाते हुए शिवाय ने बिठाया। --"क्यों शिव? मैं ही क्यों? मेरे साथ ऐसा क्यों?" आदेश ने सिसकते हुए पूछा। --"क्यों! वो इसीलिए दोस्त क्योंकि जिसे तूने चाहा, उसने तुझे नहीं चाहा।" शिवाय के इस जवाब से आदेश चुप तो हो गया पर चौंक भी गया। --"हाँ! दिप्ति ने तुझे कभी चाहा ही नहीं। इसीलिए उसने जिसमें हामी भरी, उसे वो चीज़ मिली। उस हामी में तू कभी नहीं था। मैं तुझे कुछ और भी कहने आया हूँ।" आदेश सुनने लगा। --"जो दर्द अंदर है, उसे बर्दाश्त कर, भार उठा उसका। पीले इस ज़हर को ज़िंदगी भर के लिए और आगे बढ़। मैं तो चल ही रहा हूँ। कभी खुद को अकेला मत समझना। भले ही तुझमें बदलाव आए पर एक बात याद रखना.... जब तक तेरे दिल में बुराई पैदा नहीं होती तबतक मैं तेरा साथ दूँगा।" --"आप सब कुछ जानते थे, फिर उसे मेरे पास लाए क्यों?" --"हर कारण बताया नहीं जा सकता, दोस्त। आज अगर दीप्ति न होती तो शायद तू मुझसे रुबरु न होता। हर चलने वाला घटनाक्रम आने वाले घटनाओं का सूचक होता है। एक इंटरप्रिटेशन की तरह।" --"हर दर्द और हर तकलीफ के खत्म होने की एक तारीख होती है। उसी तरह खुद के हाथों हुई गलतियों को भुगतने की सज़ा की भी एक समय सीमा होती है। जब जब दोस्त बनकर आऊँगा तो शिवाय बनकर आऊँगा। तेरी लड़ाई अब शुरू होगी तब तेरा सारथी बनकर आऊँगा।" आदेश बिलकुल चुप था। ऐसा लग रहा है जैसे वो हार चुका है और शायद इसी वजह से वो शांत हो गया। --"मैं क्या करुँ तबतक?" --"अपने तूफान से टकरा। अपने दर्द को अपनी ढाल बना। जिस अंधेरे से लड़ रहा है उससे नज़र मिला। जीत सिर्फ तेरी होगी। ऐसे बहुत सारी चीज़ है जो तेरी समझ से परे हैं। तबतक के लिए अपने करम पर ध्यान करते रहना और कहना... " "शिव सदा सहायते!" आदेश ने धीमी आवाज़ में कहा। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #part2
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read moreKritika Gupta
Ananta Dasgupta
White हर दिन के जैसे आदेश घर में आया और बिना कोई आवाज़ किए अपने कमरे में चला गया। बैग रखके उसने जेब से रुद्राक्ष निकाला और अपनी माँ के हाथ में देकर कहा --"माँ, ये पूजा घर में रख देना।" --"लेकिन तुझे ये रुद्राक्ष दिया किसने?" --"वो रास्ते में पानी था तो एक आदमी ने मेरी मदद की। बाद में उसी ने दिया।" आदेश ने सिर्फ इतना ही कहा। शायद इतना कहना ही लाज़मी था क्योंकि जो वो महसूस कर रहा था वो सिर्फ वही जान रहा था। बेटा होने के नाते अपने आँसू घरवालों को नहीं दिखा सकता। अगर उसके माँ-बाप ने उसके आँसू का एक कतरा भी देख लिया तो उन्हें जो तकलीफ होगी वो आदेश बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। किसी को आँसू न दिखे इसलिए सर झुकाकर उसने अपने चेहरे पर पानी की छींटे मारी पर जैसे ही मुड़ा उसके पिता ने उससे पूछा --"तेरी आँखें इतनी लाल क्यों है? क्या हुआ है?" --"बारिश में बहुत देर तक भीगनें से हो गई होगी।" गले को थोड़ा भारी रखकर उसने कहा और पूजा घर में चला गया। घुटने टेककर उसने एकटक शिवलिंग की तरफ देखा पर आँखे भर आने की वजह से वापस धुंधला सा हो गया। आदेश अपना भार नहीं उठा पा रहा था। खाने का तो मन नहीं था पर कोशिश करके खाने के जैसे ही निवाला निगला, उसे उल्टी हो गई। उसकी माँ भागते हुए उसके पास गई और पूछा --"क्या हुआ बेटा? तबीयत खराब हो रही है?" आदेश के हाथ पैर काँप रहे थे। शरीर और दिल दोनों कमज़ोर थे और क्योंकि वो ये बता भी नहीं पा रहा था इसीलिए वो बात और खाए जा रही थी उसे। --"आपलोग सो जाओ। मुझे ऑफिस का कुछ काम है तो मुझे देर होगी।" --"तुझे जो करना है कल करना। एक तो बारिश में भींग के आया है और अब देर रात तक जगकर अपनी तबीयत और बिगाड़ेगा।" आदेश के पिता ने जवाब दिया। बात सही थी पर लहज़ा गलत। आदेश ने पलभर उनको देखा और काम पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद सब सो गए और अब रात धीरे धीरे गहरी होने लगी। आदेश चुप था लेकिन अंदर एक तूफ़ान था जो कभी भी बाहर आ सकता था। अचानक लैपटॉप पर रखी हुई दिप्ति की एक तस्वीर पर माउस का बटन दब गया। २ साल पुरानी तस्वीर जहाँ दोनों साथ बैठे थे। एक झटके में आदेश ने लैपटॉप बन्द करके घर को अंधेरा कर लिया। उसका दर्द उसको निगलते जा रहा था। साँस लेने में तकलीफ होने लगी। एक वक्त रुककर उसने अपने खाली घर को चारों तरफ से देखा। उसका हर एक सपना कहीं न कहीं बिखरा पड़ा हुआ था। थककर घुटने के बल वो गिर गया और फिर उसका सारा सैलाब बाहर आ गया। आदेश के दिल-ओ-दिमाग में न जाने कितनी यादों का तूफान एक साथ चलने लगा। सिसकियों की आवाज़ बहुत दूर तक न जाए इसलिए उसने अपने मुंह दबोचे रखा पर आँसू नहीं रोक पाया। वो चीखना चाहता था अपनी किस्मत पर लेकिन मजबूर होकर सिर्फ रोता रहा। उसका शरीर अब जवाब दे रहा था। अपने आप को संभालने के लिए उसने अपने हाथों का सहारा लिया लेकिन अचानक उसका हाथ एक चीज़ को छूते ही रुक गया। अंधेरे में उस चीज को टटोलने के बाद वो समझ गया कि ये रुद्राक्ष है। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #part2
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রুদ্রাক্ষ টা হাতের মুঠোয় রেখে নিজের বন্ধুর কথা ভেবে খুব কাঁদছে। --"শিব...... স.. দা.... স... হা... য়তে।" ভারি নিঃশ্বাসে প্রথম বার এত কষ্ট তে আদেশ ডাকল যাতে। হঠাৎ আদেশের মনে পড়ল রুদ্রাক্ষ তো ওর মা ঠাকুর স্থানে রেখেছিল। মাথা তুলে দেখতেই ওর মুখ হাঁ হয়ে গেল। একটা ছায়া রুপে আকৃতি, কর্পূরের মত গন্ধ আর বাঘের চামড়ার আবরণ। তার দুটো হাত আদেশ কে ধরে তুলল। সামনে আসার পর আদেশ দেখল তার সামনে সেই দাঁড়িয়ে যে ওকে বাঁচিয়ে ছিল। শিবায়! --"বলেছিলাম না আরেকটা ঝড় আসবে।" আদেশ এইটা শুনতেই ওকে জড়িয়ে ধরে খুব কাঁদছে। অনেক বছরের চাপা কষ্ট যেই ভাবে বেড়ায়, আদেশ ঠিক সেই ভাবে শিবায় কে ধরে রেখেছে। চিতকার করছে আঁকড়ে ধরে আর শিবায় ওর মাথায় হালকা করে হাত বুলিয়ে দিচ্ছে। --"শান্ত হও। এবার শান্ত হও। আমি এসছি তো।" শিবায় ধরে এক জায়গায় বসাল। --"কেন? এরকম কেন আমার সাথে?" --"তুই যার কথা বলছিস, সে তোকে কখনই চায়নি।" শিবায় বলল আর আদেশ হঠাৎ স্তব্ধ হয়ে গেল। --"হ্যাঁ। দিপ্তি তোর ভালো চেয়েছে কিন্তু তোকে চায়নি। আর আমি এইটা তোকে কষ্ট দেয়ার জন্য নয়, ওর থেকে গুরুতর জিনিসের জন্য এসেছি।" --"মানে?" --"যেই কষ্টটা নিয়ে চলছিস সেটাকে বহন কর। ভার ওঠা এই বিষের আর এগিয়ে চল। মনে রাখিস নিজেকে একা ভাববিনা। কষ্ট তোকে আমার কাছে নিয়ে এসেছে, হয়তো তোকে পাল্টেও দিতে পারে কিন্তু মনে রাখিস তুই নিজের মনে কখনো খারাপ কিছু আনবি না।" --"যদি সবকিছু জানতে তাহলে পাঠালে কেন ওকে আমার কাছে?" --"সব কারণ বলা যায়না বন্ধু। আজ যদি দীপ্তি না থাকতো তাহলে আমি তোর সামনে এসে দাঁড়াতাম না। কে কোন কারণে আসে, সেটা বলা যায়না। প্রত্যেক ঘটনা একটা অন্য ঘটনার সুত্রপাত হয়। মনে রাখিস।" --"প্রত্যেক কষ্টের আর প্রত্যেক মনস্তাপের একটা সময় থাকে। তোর বন্ধু তে আমি শিবায়। তোর জীবন যুদ্ধে আমি কৃষ্ণ।" আদেশ সব শুনছে চুপচাপ। মন শান্ত হয়েছে কিন্তু কষ্টের এক ভাগ রয়ে গেছে। --"আমি কি করবো এখন?" --"নিজের কষ্ট কে নিজের অস্ত্র বানা। নিজের অন্ধকারের সাথে লড় ততক্ষন যতক্ষণ জিৎ তোর না হয়। সামনে অনেক কিছু ঘটতে চলেছে যা তোর কাছে অজানা। নিজের দায়িত্ব পুরো করতে থাকে আর বলতে থাক" --"শিব সদা সহায়তে।" ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #bengaliquote #shivaay
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read moreAnanta Dasgupta
আদেশ ঘরে ঢুকল আর প্রত্যেক দিনের মত ও কোনো সারা শব্দ না করে ব্যাগ রেখে নিজের রুমে চলে আসল। বুক পকেট থেকে রুদ্রাক্ষ বের করে মায়ের কাছে গেল আর বলল। --"মা, এইটা ঠাকুরের সামনে রেখে দাও।" --"কিন্তু তোকে কে দিল রুদ্রাক্ষ?" --"রাস্তায় জল ছিল বলে একটা লোক ছেড়ে দিয়ে গেল। সেই দিয়েছে।" বাকি বৃত্তান্ত আর বলল না। ভিতরে ও যে ভাবে ছটফট করছে সেটা একমাত্র ওই জানত। আদেশ ভয় পাচ্ছে যদি ওর চোখের এক ফোটা জল ওর বাবা মা দেখে তাহলে ওদের মনে কষ্ট হবে। ছেলে হিসাবে আদেশ করতে পারবে না সেটা। মাথা নিচু করে নিজের চোখে জল দিল তখন চোখে লাল দেখে ওর বাবা জিজ্ঞাসা করে। --"হ্যাঁ রে! তোর চোখ এত লাল কেন?" --"বৃষ্টি তে ভিজেছি তাই হয়তো।" একটু ভারিক্কি গলায় বলল আদেশ। আদেশ প্রনাম করতে গিয়ে ঠাকুর স্থানের শিবলিঙ্গ কে ভালো করে দেখল কিন্তু চোখে জল আসতে আবার ঝাপসা হয়ে গেল। আদেশ নিজেকে চাপা রাখতে পারছে না। খুব কষ্ট করে উঠল আর খাওয়ার চেষ্টা করল কিন্তু দু গাল খাওয়ার পড়েই বমি করে ফেলল। --"কি হয়েছে? শরীর খারাপ করছে বাবা?" আদেশের মা থালা রেখে ছুটে আসল। ওর হাত পা কাঁপছে, শরীর দুর্বল আর মনে এক পাহাড় সমান কষ্ট। যেহেতু বলতে পারবে না, তাই আরও ভেঙে পড়ছে। --"তোমরা শুয়ে পড়। আমার কাজ আছে অফিসের।" --"তোর যা করার কালকে করবি। এই ভাবে ভিজে, তার পর রাত জেগে শরীরে আবার অসুখ বাঁধাবে।" আদেশের বাবা কথাটা খুব রুঢ় ভাবে বলতে আদেশ তাকাল কিন্তু কিছু বলল না। ল্যাপটপ খুলে কাজে বসে পড়ল। কিছুক্ষণ পরে সবাই শুয়ে পড়ল। রাত বাড়তে বাড়তে বেড়ে যাচ্ছে আদেশের ঝড়। হঠাৎ করে দিপ্তির একটা ছবি তে ক্লিক হয়ে গেল, দুজনে পাশাপাশি বসে। তারাতারি বন্ধ করে ল্যাপটপ সাইড করে আদেশ লাইট বন্ধ করে দিল। ওর শ্বাস কষ্ট বেড়েই চলেছে। নিজের চারপাশের অন্ধকার কে ভালো করে দেখল। আর যেন ঝড় আটকাতে পারেনি, হাঁটু গেড়ে জড় হয়ে নিজের শরীর ফেলে দিয়ে অন্ধকারে কাঁদছে আদেশ। মনের ভিতরে সমস্ত স্মৃতি উথাল পাথাল খাচ্ছে কিন্তু ওর ব্যথা কমছে না। মাঝখানে একবার কুঁকিয়ে উঠল কিন্তু ভয় মুখে হাত চাপা দিয়ে দিল যাতে কেউ সারা না পায়ে। আদেশের শরীর ধীরে ধীরে শিথিল হয়ে যাচ্ছিল। নিজের ভার সামলানোর জন্য যখন আদেশ হাত পিছনে রাখে, তখন হাতে কিছু পড়ল। আদেশ ধরে বুঝতে পাড়ল রুদ্রাক্ষ টা ওখানে। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #bengalistory #part2
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