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BRIJESH KUMAR
घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ इसलिए घर ए दहलीज़ से बाहर जाता हूँ चंद कौड़ियों के लिए बनिए का बोझा उठाता हूँ घर के मेरे भगवान खुश रहें इसी कारण मै मिलों दूर जाता हूँ शाम को लौटते वक्त लिफ़ाफ़ों में किसी चेहरे की मुस्कुराहट बंद कर के ले आता हूँ घर से निकल कर रोज़ घर लौट आता हूँ ब्रजेश कुमार...✍ ०९/०७/२०१९ ०८:४५ पूर्वा: घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ
घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ
read moreसुसि ग़ाफ़िल
कौड़ियों के भाव बिके वो जिस्म जो मोहब्बत में अनमोल थे। कौड़ियों के भाव बिके वो जिस्म जो मोहब्बत में अनमोल थे।
कौड़ियों के भाव बिके वो जिस्म जो मोहब्बत में अनमोल थे।
read moreDhruv
हद से ज्यादा जिसके प्रति समर्पित रहेंगे वही लोग तुम्हें कौड़ियों के भाव समझेंगे ©Dhruv #हद से ज्यादा जिसके प्रति समर्पित रहेंगे वही लोग तुम्हें कौड़ियों के भाव समझेंगे
#हद से ज्यादा जिसके प्रति समर्पित रहेंगे वही लोग तुम्हें कौड़ियों के भाव समझेंगे
read moreGumnam Shayar Mahboob
अगर वक्त अपना बुरा हो तो सब लोग ही घाव देते हैं कीमती रिश्तों को भी इज्जत कौड़ियों के भाव देते हैं #बुरा #घाव #रिश्तों #इज्जत #कौड़ियों #भाव #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob
Soulmate (Yuhee)
ख़ुद को साबित करने की तमन्ना कब की फ़ना हो चुकी थी यूँही जबसे ज़माने से मुलाक़ात हुई दोस्ती तोड़ दिए हम यूँही खुद के लिए जीयो जमाने के लिए नहीं
खुद के लिए जीयो जमाने के लिए नहीं
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