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Rakesh frnds4ever

#काश_किसी_दिन मैं भी #सूरज के मानिंद, दुख दर्दों की गहन अंधकारमय #बदलियों से उग पाऊं/ऊपर उठ पाऊं ,, पीड़ाओं/ व्यथाओं/ #क्रूरताओं/ के अत्यंत

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White काश किसी दिन मैं भी सूरज के मानिंद,

 दुख दर्दों की गहन अंधकारमय बदलियों से उग पाऊं/ऊपर उठ पाऊं ,,

पीड़ाओं/ व्यथाओं/ क्रूरताओं/ के अत्यंत विशालकाय पहाड़ों के बोझ से दबा,,

किसी दिन बाहर निकल पाऊं ,,

दिल के उन्मादों मन के अवसादों चित के शैलाबों से कभी तर पाऊं , 

उबर पाऊं 

नहीं तो ,,

ये गर्जनायें, ये शिलाएं , ये आक्रांताएं मुझे काल की  गुमनामी में गुम कर डालेंगी

©Rakesh frnds4ever #काश_किसी_दिन मैं भी #सूरज के मानिंद, दुख दर्दों की गहन अंधकारमय #बदलियों से उग पाऊं/ऊपर उठ पाऊं ,,
पीड़ाओं/ व्यथाओं/ #क्रूरताओं/ के अत्यंत

person

Birth and death are inevitable जन्म और मृत्यु अनिवार्य हैं काल के प्रभाव से जो जीवन हमें मिलता हैं उसकी समाप्ति भी होती हैं यही पृथ्वी /

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Vikas Sahni

#कठिनाइयों_के_काल_में सुकून देता है कठिनाइयों के काल में केवल कविता को चाहना, सुकून देता है कठिनाइयों के काल में केवल इस ही को सराहना

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White 

सुकून देता है
कठिनाइयों के काल में केवल कविता  को चाहना,
सुकून देता है
कठिनाइयों के काल में केवल इस ही को सराहना
शेष शोर हैं,
शेष चोर हैं 
और हैं सिर्फ़ सफलता के आशिक 
इस कायनात में कविता ही है इक,
जिसे इस रूप में 
लिखकर गर्व होता है कि अच्छा किया जो
इतिहास में किसी को
प्रेम नहीं किया अलावा कविता के,
अच्छा किया जो इतिहास में किसी को
दिल नहीं दिया अलावा कविता के,
कष्टों के काल में 
ऐसा सोचकर गर्व होता है,
मातम-मलाल में 
ऐसा सोचकर गर्व होता है,
कविता को वो नहीं नोच सकते,
जिन्हें नोचकर गर्व होता है क्योंकि कविता को कोई
देख  नहीं सकता 
क्योंकि कविता को कोई 
छू नहीं सकता,
जो कभी नहीं था थकता
वह भी 
कदाचित कविता को 
तलाशते-तलाशते 
थक गया 
होगा।
                                                                     ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni 
#कठिनाइयों_के_काल_में
सुकून देता है
कठिनाइयों के काल में 
केवल कविता  को चाहना,
सुकून देता है
कठिनाइयों के काल में 
केवल इस ही को सराहना

बेजुबान शायर shivkumar

Devesh Dixit

#काल_चक्र #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry काल चक्र (दोहे) काल चक्र है घूमता, समझो इसका सार। देता सबको सीख है, जो माने वह पार।। रचा

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्

बेजुबान शायर shivkumar

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

लावणी छन्द इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया । भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।। सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो

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White लावणी छन्द
इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया ।
भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।।
सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो चूर हुआ ।
तब जाकर माँ की गोदी में , सोने को मजबूर हुआ ।।

मत कहो काल के चंगुल में , लाल हमारा रपट गया ।
जाने कितने दुश्मन को वह , पल भर में ही गटक गया ।।
सब देख रहे थे खड़े-खड़े , अब उस वीर बहादुर को ।
जिसके आने की आहट भी , कभी न होती दादुर को ।।

पोछ लिए उस माँ ने आँसूँ, जिसका सुंदर लाल गया ।
कहे देवकी से मिलने अब , देख नन्द का लाल गया ।।
तीन रंग से बने तिरंगे , का जिसको परिधान मिले ।
वह कैसे फिर चुप बैठेगा , जिसको यह सम्मान मिले ।।

सुबक रही थी बैठी पत्नी , अपना तो अधिकार गया ।
किससे आस लगाऊँ अब मैं , जीने का आधार गया ।।
और बिलखते रोते बच्चे , का अब बचपन उजड़ गया ।
कैसे खुद को मैं समझाऊँ , पेड़ जमीं से उखड़ गया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लावणी छन्द
इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया ।
भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।।
सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो

Anuj Mishra

🙏🕉️ जय बाबा बटेश्वर नाथ 🕉️🙏 आज बाबा बटेश्वर नाथ का संध्या काल आरती दिव्य विशेष श्रंगार दर्शन🔱 दिनांक 14/8/2024 दिन (बुधवार) 🔱🙏🙏🙏🕉️🕉️🕉️

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