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#सरफिरा_मुसाफ़िर
मंजिल की तलास में सफर अभी जारी है🚶 कदम कदम पे सोचता हूं की यही मंजिल हमारी है..🤔? (😇सरफिरा मुसाफ़िर) ©Vijay Tiwari #मंजिल की तलाश में
#मंजिल की तलाश में
read moreSamir_Author
मैं आज हूं ❣️ लेकिन कल के बेहतर की तलाश में भटक रहा हु वर्तमान छोड़ कर __ अज्ञात भविष्य के पीछे भाग रहा हु ......🙃 ©Samir_Author मंजिल की तलाश में भटक रहे हैं #Like #share #follow #Heart #SAD #Zindagi
Imran Shekhani (Yours Buddy)
मंजिल की तलाश में #मंजिल #तलाश #ownvoice #Original #lifequotes #philosophical #thought #fundaoflife #YoursBuddy
read moreTHE ISHQ POINT
उम्र भर मंजिल की तलाश में रहे हम सफर गुजर गया मगर फिर भी मंजिल की आश में रहे हम। ©THE ISHQ POINT #smog उम्र भर मंजिल की तलाश में रहे हम सफर गुजर गया मगर फिर भी मंजिल की आश में रहे हम। #safar #Subah #MoralStories #Delhi_Riots #delhi #Morn
#smog उम्र भर मंजिल की तलाश में रहे हम सफर गुजर गया मगर फिर भी मंजिल की आश में रहे हम। #safar #Subah #MoralStories #Delhi_Riots #Delhi Morn
read moreSonam kuril
कविताएं जो कुछ कर गुजरने का हौंसला देती है, रास्ते जो मंजिलों का पता देती है, ठोकरे जो गिर कर सम्भलना सिखाती है, एकांत जो हमें खुद से मिलाती है, ये दौड़ जिसपर हम निकल पड़े है, मैं भटकते से मुसाफिर सी, एक रोज मंजिल की तलाश में, अपनी एक अलग पहचान एक नाम, अपनी छाप छोड़ जायेंगे | ©Sonam kuril #talaash कविताएं जो कुछ कर गुजरने का हौंसला देती है, रास्ते जो मंजिलों का पता देती है, ठोकरे जो गिर कर सम्भलना सिखाती है, एकांत जो हमें खुद
#talaash कविताएं जो कुछ कर गुजरने का हौंसला देती है, रास्ते जो मंजिलों का पता देती है, ठोकरे जो गिर कर सम्भलना सिखाती है, एकांत जो हमें खुद
read moreNitu Singh जज़्बातदिलके
मुसाफिर थी सफ़र करती रही, कभी गिरती तो कभी संभलती रही। तन्हा रातें थी दिल में आहें थी, मंजिल की तलाश में उदास निगाहें थी। खुद को समेटती रही फिर से बिखरती रही, जिंदगी की हसरत में पल पल मरती रही। ज़ख्म दिल के छुपाकर मुस्कुराती रही, मगर दर्द से दिल का सदा रिश्ता रही। बेबसियों पर जब जब दिल चीखती रही, दर्द बन शायरी कागजों पर निखरती रही। ©Nitu Singh(जज़्बातदिलके) मुसाफिर थी सफ़र करती रही, कभी गिरती तो कभी संभलती रही। तन्हा रातें थी दिल में आहें थी, मंजिल की तलाश में उदास निगाहें थी। खुद को समेटती रह
मुसाफिर थी सफ़र करती रही, कभी गिरती तो कभी संभलती रही। तन्हा रातें थी दिल में आहें थी, मंजिल की तलाश में उदास निगाहें थी। खुद को समेटती रह
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