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इतनी सी जिंदगी की कहानी मेरी अपना बना कर किसी ने वक्त गुजारा किसी ने वक्त गुजारने के लिए अपना बनाया मैं प्रकृति हूं मेरी संरचना अद्भुत है मेरे कार्य अनूप है मेरी कला अनूप है मेरी सुंदरता भिन्न-भिन्न है मेरे रक्षक महान है मैं सबका हूं सब मेरे हैं मेरी रक्षा आपका धर्म है नमस्कार मैं प्रकृति हूं यह धरती यह माहौल हमसे कुछ कहता है
यह धरती यह माहौल हमसे कुछ कहता है
read moreNeophyte
इससे पहले की उसपर किसी और कि नज़र पड़े ख़ुदा कोई करामात करे कि,मुझे ख़बर पड़े उसके बेपरवाही से मुझे कोई उलझन तो नही बस उसके सिर पर मेरे ही इश्क़ का अंबर पड़े उसका वास्ता ही न हो किसी शख़्स से उसे सिर्फ मैं मिलू या कोई बर्बर मिले सब भूल जाए वो जब मैं साथ रहूं उसे सब पता हो,गर रक़ीब रहबर मिले वो साथ हो तो दुनिया रंगों से भरी हो वो बिछड़े तो अगले ही कदम कब्र मिले ©क्षत्रियंकेश अंबर!
अंबर!
read moreShubham patel
ये आसमा, नीला ये अंबर धरती समंदर न जाने कहां मुझको ले जाए, मैं जाने ना दूंगा ऐसे ही कश्ती को मंजिल की तरफ में बढ़ाता चलूं, आसमा को छूती यह लहरें बताती है समंदर भी आया है जिद पे न जाने ले जाए मुझको कहां, मैंने भी ठाना है कश्ती बढ़ाना है मंजिल की राहों पर इसे ले जाना है || ©Shubham patel ये आसमा, नीला ये अंबर धरती समंदर न जाने कहां मुझको ले जाए
ये आसमा, नीला ये अंबर धरती समंदर न जाने कहां मुझको ले जाए
read moreVandana
भांति भांति के फूल है भांति भांति के अन्न,,, कई तरह के पशु पक्षी कई तरह के वन,,, परमात्मा ने सजाया धरती को कतरा कतरा,,, जर्रा जर्रा खुशबू से बिखेरा,,, कण-कण में भी नहीं हुई कुछ भूल,,,, कहीं सागर की गहराई,, कहीं पर्वतों की ऊंचाई,,, सुंदरता उकेर दी चहुँ ओर,,,, मानव ने स्वार्थ की भेंट चढ़ा डाला,,, इस धरा को,,,, वन को काट भवन बना डाले,,,, उपजाऊ भूमि को बंजर बना डाला,,,, खेत खलियान में उद्योग लगा डालें,,, बेचारे पंछी भी भटकते बसेरे के लिए,,,, पशु भी अब भूख की तृप्ति के लिए,,,, शहरों की तरफ भागे,,,,, ग्लेशियर अब पिघल रहे पहाड़ अब टूट रहे, कहीं सुनामी कहीं बाढ़,,, जन्नत जैसी पृथ्वी का कर दिया तूने क्या हाल,,,, पापी मानव अब तो भुगत रहा,,, जिन पैसों के लिए तूने हरी-भरी धरा को नुकसान पहुंचाया,,, आज वह पैसा भी तेरे काम नहीं आया,,, स्वर्ग से सुंदर यह धरती अंबर आकाश,,,, जर्रे जर्रे में है परमात्मा का एहसास,,, यह धरती फिर से हो जाए हरी-भरी काश,,, सब खुल कर ले फिर से सांस,
स्वर्ग से सुंदर यह धरती अंबर आकाश,,,, जर्रे जर्रे में है परमात्मा का एहसास,,, यह धरती फिर से हो जाए हरी-भरी काश,,, सब खुल कर ले फिर से सांस,
read moretripathi ji
ज़िन्दगी में कुछ गम जरुरी है वर्ना खुदा को कौन याद करता मिलता नसीब चाहने से तो खुदा से फरियाद कौन करता होता सुकून हर निगाह में तो खुदा का दीदार कौन करता अंबर त्रिपाठी
अंबर त्रिपाठी
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