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Deepali Singh
प्रकृति की हुँकार कब से आस लगाये बैठी थी ये प्रकृति इसे भी मिल जाए सांस लेने की अनुमति धुआँ ही धुआँ दिखता था हर जगह और हो रहे थे ज़ुल्म इसपर बेवजह ढूंढ रही अपने अस्तित्व को जाने कब से, चुप बैठी थी गुमसुम सी इतने वर्षों से ठहरी थी जिंदगी बहुत दूर इससे पर ऐसी बर्बादी कतई ना थी मंज़ूर इसे, रहती थी खोई सी,खामोशियों मे सोई थी उन दूषित गर्म हवाओं में खुद को पिरोई भी काया से इसके लिपट कर वायु ने स्वच्छ शीतल चंचल उड़ान था भरा उन नर्म साँसों में, ठहरी ठंडी रातों में सरसराते इठलाते बहकते पत्तों में, धड़कते पत्थर के उन सहमे दरारों में छुकर अपने धरा के कर कण-कण को मस्ती में इतराते अपने हस्ती पे फ़िर उड़ता चला चुमने गगन को वो मतवाला मनचला बहता चला आज़ाद सोंच में झूमता उठता रहा फिर कैद हुआ कुछ के क्रूर गुरुर से और तड़प रहा गुब्बारों में तो सिलेंडर में सुकून सा देकर तेरे घुँटते फेफड़ों को जो जीवन दिया वो ये वायु ही तो जिताकर तुझे ऐसे जीवन जंग से लौटना है इन्हें उपवन जंगल में जो बनाता रहा दूरी कुदरत से क्या खोया है ज़रा पूछ खुद से प्रकृति के आगे हम मजबूर ठहरे इनकी नज़रों से कुछ भी नहीं परे प्रकृति को हमारी ज़रूरत नहीं पर हमें प्रकृति की ज़रूरत ज़रूर है यूँही नहीं प्रकृति को खुद पर गुरुर है तभी तो प्रकृति खुद मे मगरूर है ©Deepali Singh प्रकृति की हुंकार
प्रकृति की हुंकार
read moreDarlo the king 🦁🐯
हूंकार भरी मेरे दिल ने भी ईश्क के जज़्बात जगा बैठा जो कभी हो नहीं सकता था मेरा उसका ही नाम बता बैठ। मैने भी इसको कुछ यूं समझा डाला फांसला कितना गहरा है दोनों में ए इसको बता डाला। ये कहा सुने बाला था कोई मेरी बात ए ईश्क ही कुछ चीज ऎसी है दिल को कुछ और नहीं समजने देती जब तक ना पड़े इसे अपने ही लोगों से लात। ये फ़िर भी ना माना गलती पे गलती दोहराता रहा जब भी हो इसमें कोई हल चल फिर कुछ नए नाम बताता रहा इस पागल को क्या पता था जिसे करता रहा ईश्क वहीं इसे आजमाता रहा। फिर इसको भी समझ आने लगा जहां जिस और चला जा रहा है बो तेरा रास्ता नहीं छोड़ दे ईश्क करना इसे तेरा को वास्ता नहीं। फिर भी कहा माना मन की ये बात अब गमो में उसके बिताता है हर रात। ये दिल है साहब ये अपने आगे तो उस खुदा की भी नहीं सुनता और जिसको ना हो इसकी कद्र उसी को है चुनता । ..... ✍️ साधु बाबा दिल की हुंकार
दिल की हुंकार
read moreआशीष रॉय 🇮🇳
कविता - रामधारी सिंह दिनकर। दिनकर की रचनाओं ने स्वाभिमान जगाया है। दबी बुझी सी चिंगारी में फिर ज्वाला भड़काया है। कलमों को हथियार बना अंग्रेजों को भगाया है। कविताओं के बल पर आजादी हमें दिलाया है। कविताओं में हुंकार जब दिनकर ने लगाया है। दुश्मन के सीने को दिनकर ने खूब जलाया है। दुश्मन हो या अपने सभी को आईना दिखलाया है। लड़खड़ाती राजनीति को साहित्य से संभाला है। कोरे कागज सा जीवन में साहित्य का दीप जलाया है। उर्वशी में स्त्री का क्या कोमल ह्रदय दर्शाया है। जो देश के लिए तन मन सब अर्पित कर जाता है। वही राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर कहलाता है। - आशीष रॉय। कविता - रामधारी सिंह दिनकर। #reading
कविता - रामधारी सिंह दिनकर। #reading
read moreAnokhi
प्रेम प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता.. एक कोने में ना रुक, सारे हृदय को घेर लेता है..! पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा.. नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है..! प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है..! प्रेम उसकी जिंदगी की सांस है..! प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं चाहती..!! शब्द जब मिलते नहीं मन के, प्रेम तब इंगित दिखाता है.. बोलने में लाज जब लगती प्रेम तब लिखना सिखाता है..! पुरुष प्रेम सतत करता है,पर प्रायः थोड़ा थोड़ा.. नारी प्रेम बहुत करती हैं सच है, लेकिन कभी कभी..! उसका भी भाग्य नहीं खोटा, जिसको न प्रेम प्रतिदान मिला..! छू सका नहीं पर इंद्रधनुष , शोभित तो उसके उर में है..!! महाकवि रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित कविता ©Anokhi # प्रेम महाकवि दिनकर जी द्वारा रचित कविता
# प्रेम महाकवि दिनकर जी द्वारा रचित कविता
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