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1. The Word Was God 1. वचन परमेश्वर था यहुन्ना की पुस्तक का केंद्र क्या है और मसीह के व्यक्तित्व को समझने में यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? मती 17 में येशु के रूपांतरण के समय, पिता परमेश्वर अपनी उपस्तिथि प्रकट करता है, यह घोषणा करते हुए; “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, जिस से मैं प्रसन्न हूँ: इस की सुनो!” (मती 17:5) पिता ने तीन चेलों को येशु के शब्द सुनने और उनके प्रति आज्ञाकारी होने का आदेश दिया। आगे जाकर महान आज्ञा में हम देखते हैं कि वह अपने सब चेलों को कहता है कि वे सब राष्ट्रों को उसके सब आदेशों पर चलने की शिक्षा देने को कहता है (मती 28:20)। अगर कभी ऐसा समय है जब कलीसिया को येशु के इन शब्दों को सुनने की आवश्यकता है, तो वह अब है। हमें अपने पाप के अन्धकार में डूबे संसार में ज्योति प्रकट करने के लिए येशु के शब्दों की आवश्यकता है। यहुन्ना बार-बार हमारा ध्यान इस प्रश्न की ओर ले जाता है, “वाकई में, येशु कौन है?” व्यक्तिगत रीती से, मुझे इस बात पर एक विशेष बल होने के कारण यहुन्ना की पुस्तक से पढ़ाना अत्यंत भाता है। यहुन्ना की पुस्तक मती, मरकुस और लूका के संयुक्त (संयुक्त का अर्थ “एक साथ देखना है”) सुसमाचारों से बिलकुल भिन्न है। पहले तीन सुसमाचार येशु के कार्यों और शिक्षाओं पर ज्यादा केन्द्रित हैं, जबकि यहुन्ना का ज्यादा केंद्र इस बात पर है कि येशु कौन है । यह संभव है की यहुन्ना ने पहले से ही वह पढ़ लिया हो जो अन्य सुसमाचारों के लेखक येशु के बारे में लिखते हैं, क्योंकि ज़्यादातर बाइबिल समीक्षक मानते हैं कि यहुन्ना का सुसमाचार लगभग 90 इसा पश्चात् लिखा गया था। यहुन्ना येशु के जीवन में उसके जन्म, बप्तिस्में, जंगल में उसकी परीक्षा, गत्समने में उसकी पीड़ा, उसके उठाये जाने, दुष्ट आत्माओं से सामने और दृष्टांतों जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को छोड़ देता है। यहुन्ना कई ऐसी बातें भी शामिल करता है जिनके बारे में औरों ने नहीं लिखा, जैसे कि येशु द्वारा पानी को दाखरस में बदलने का वाकया, जिसे येशु का पहला आश्चर्य कर्म मन गया (यहुन्ना 2:1-11); कफर्नूम में राजा के कर्मचारी के बेटे की चंगाई (यहुन्ना 4:46-54); बैतहसदा के कुण्ड पर बीमार की चंगाई (यहुन्ना 5:1-9); जन्म से अंधे आदमी की चंगाई (यहुन्ना 9:1-7); लाज़र का जिलाया जाना (यहुन्ना 11:38-44); और मछलियों के पकड़े जाने का दूसरा आश्चर्य कर्म (यहुन्ना 21:4-6). यहुन्ना का बल येशु के स्वर्ग से आने का नजरिया प्रस्तुत करता है, इस बात को दर्शाते हुए कि वह परमेश्वर है। यहुन्ना का ज़ोर येशु को स्वर्ग से आया हुआ प्रस्तुत करने पर है, यह दर्शाते हुए कि वह परमेश्वर है। यहुन्ना के सुसमाचार को एक उद्देश्य के साथ लिखा गया है; और इसकी मुख्य मंशा येशु को प्रतिज्ञा किये हुए मसीह के रूप में प्रस्तुत करने की है। (क्राइस्ट शब्द इब्रानी भाषा में मसीह का अनुवाद है।) इस पुस्तक का मुख्य पद इसके अंत में मिलता है: ©Nn gyan jesus story #waiting
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1. The Word Was God 1. वचन परमेश्वर था यहुन्ना की पुस्तक का केंद्र क्या है और मसीह के व्यक्तित्व को समझने में यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? मती 17 में येशु के रूपांतरण के समय, पिता परमेश्वर अपनी उपस्तिथि प्रकट करता है, यह घोषणा करते हुए; “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, जिस से मैं प्रसन्न हूँ: इस की सुनो!” (मती 17:5) पिता ने तीन चेलों को येशु के शब्द सुनने और उनके प्रति आज्ञाकारी होने का आदेश दिया। आगे जाकर महान आज्ञा में हम देखते हैं कि वह अपने सब चेलों को कहता है कि वे सब राष्ट्रों को उसके सब आदेशों पर चलने की शिक्षा देने को कहता है (मती 28:20)। अगर कभी ऐसा समय है जब कलीसिया को येशु के इन शब्दों को सुनने की आवश्यकता है, तो वह अब है। हमें अपने पाप के अन्धकार में डूबे संसार में ज्योति प्रकट करने के लिए येशु के शब्दों की आवश्यकता है। यहुन्ना बार-बार हमारा ध्यान इस प्रश्न की ओर ले जाता है, “वाकई में, येशु कौन है?” व्यक्तिगत रीती से, मुझे इस बात पर एक विशेष बल होने के कारण यहुन्ना की पुस्तक से पढ़ाना अत्यंत भाता है। यहुन्ना की पुस्तक मती, मरकुस और लूका के संयुक्त (संयुक्त का अर्थ “एक साथ देखना है”) सुसमाचारों से बिलकुल भिन्न है। पहले तीन सुसमाचार येशु के कार्यों और शिक्षाओं पर ज्यादा केन्द्रित हैं, जबकि यहुन्ना का ज्यादा केंद्र इस बात पर है कि येशु कौन है । यह संभव है की यहुन्ना ने पहले से ही वह पढ़ लिया हो जो अन्य सुसमाचारों के लेखक येशु के बारे में लिखते हैं, क्योंकि ज़्यादातर बाइबिल समीक्षक मानते हैं कि यहुन्ना का सुसमाचार लगभग 90 इसा पश्चात् लिखा गया था। यहुन्ना येशु के जीवन में उसके जन्म, बप्तिस्में, जंगल में उसकी परीक्षा, गत्समने में उसकी पीड़ा, उसके उठाये जाने, दुष्ट आत्माओं से सामने और दृष्टांतों जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को छोड़ देता है। यहुन्ना कई ऐसी बातें भी शामिल करता है जिनके बारे में औरों ने नहीं लिखा, जैसे कि येशु द्वारा पानी को दाखरस में बदलने का वाकया, जिसे येशु का पहला आश्चर्य कर्म मन गया (यहुन्ना 2:1-11); कफर्नूम में राजा के कर्मचारी के बेटे की चंगाई (यहुन्ना 4:46-54); बैतहसदा के कुण्ड पर बीमार की चंगाई (यहुन्ना 5:1-9); जन्म से अंधे आदमी की चंगाई (यहुन्ना 9:1-7); ©Nn gyan jesus story #Love
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