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दिनेश कुशभुवनपुरी
नवगीत:– स्वर्ण समय के सिरहाने पर! भले दूरियों की डोरी से, बंधे हुए हैं हम। फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥ स्वर्ण समय के सिरहाने पर, स्मृतियां हैं बैठीं। अहंकार के अंगीठी में, श्रुतियां हैं ऐंठी॥ कड़वाहट की कंठी माला, दिखा रहे हैं दम। फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥ चाहत के चलचित्र न जानें, फिर कब मचलेंगे। आशा के अकुलाए बर्तन, कब खुश निकलेंगे॥ मुरझाए आंगन दीवारें, झेल रहे हैं गम। फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥ अनशन के पहिये इस घर में, चाहे जब डोलें। मंदिर के मासूम मजीरे, चाहे जब बोलें॥ नैनों के दरवाजे चाहे, जितने बोयें तम। फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥ ©दिनेश कुशभुवनपुरी #नवगीत #स्वर्ण_के_समय_सिरहाने_पर
#नवगीत #स्वर्ण_के_समय_सिरहाने_पर
read moreGaurav JS007
मोसम ने लगाई ऐसी चिंगारी ये बस्ती झीलों का शहर बन गया! एक मुसीबत का एक केहर और बन गया जब टमाटर 200 रुपए किलो हो गया कहते हैं अब मंत्री महोदया पेट्रोल भी अब टमाटर से सस्ता हो गया। ©Gaurav Johar_007 मस्ती की पाठशाला
मस्ती की पाठशाला
read moreडॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
- ग़ज़ल की पाठशाला - (पाठ१) ग़ज़ल:शिल्प और संरचना ( तकती/बहर) तकतीअ:वो विधि जिसके द्वारा किसी मिसरे(पंक्ति )या शे'र को अरकानो के तराजू पर तौलते हैं, ' तकतीअ' कहलाती है। तकतीअ से पता चलता है कि शे'र किस बहर में है,या बहर से खारिज है। बहर : एक मीटर है, लय है, ताल है,जो अरकानो या उनके जिहाफों के साथ एक निश्चित तरकीब से बनती है।(पाठ २ कल की पाठशाला में) ©डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313) #l ग़ज़ल की पाठशाला (१)
#L ग़ज़ल की पाठशाला (१)
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