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Jairam Dhongade
पानगळ वाढत आहे चिंता आता पानगळीची... घुसमट भीती मनात असते वावटळीची! लागत नाही खरेच काही वृद्ध जिवाला... हवी जराशी विचारणाच बस कळकळीची! मरण्यासाठी जगण्याची तर कसरत सारी... प्रत्येकाची जिंदगीच ही धावपळीची! जीवनभर रंगाढंगाची प्यालो मदिरा... नशा तशी ना चवही कोठे जशी मळीची... व्हावे सारे मनासारखे वाटायाचे... उठाव मोर्चे चळवळ झाली बाब कळीची! जयराम धोंगडे ©Jairam Dhongade #leaf मराठी शायरी नवीन
#leaf मराठी शायरी नवीन
read moreArpit Mishra
चाँदनी छत पे चल रही होगी, अब अकेली टहल रही होगी। फिर मेरा जिक्र आ गया होगा, वो बरफ़-सी पिघल रही होगी। कल का सपना बहुत सुहाना था, ये उदासी न कल रही होगी। सोचता हूँ कि बंद कमरे में, एक शमआ-सी जल रही होगी। शहर की भीड़-भाड़ से बचकर, तू गली से निकल रही होगी। आज बुनियाद थरथराती है, वो दुआ फूल-फल रही होगी। तेरे गहनों-सी खनखनाती थी, बाज़रे की फ़सल रही होगी। जिन हवाओं ने तुझको दुलराया, उनमें मेरी ग़ज़ल रही होगी। . ©Arpit Mishra दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
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जन्माष्टमी के पावन पर्व पर अखंड पाठ रामायण
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