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Stories related to पोएम बन्दर मां पहन पजामा

Atal Ram Chaturvedi

बन्दर नें सबकौ सुख छीनौ,
मुश्किल कर दउ सबकौ जीनौ।
🙈🙉🙊
बन्दर दूर भगाने हैं,
दिना चैन के लाने हैं।
🙈🙉🙊
बन्दर दूर भगाओगे,
तभी आप सुख पाओगे।
🙈🙉🙊
कष्ट हमारा जो न जाना,
उससे कैसा प्रेम निभाना ?
🙈🙉🙊
बाहर कूड़ा मत फैलाओ।
"अटल" न्यौत बन्दर न बुलाओ।

©Atal Ram Chaturvedi #बन्दर

SHANU KI सरगम

बन्दर

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होकर के अंजान परिस्थितियों  से यों मत डोलो ।
कर बुलंद आवास हमेशा पक्ष न्याय की बोलो ।
नहीं उचित है बनके रहना गाँधी वाले बंदर ।
खतरे में अस्तित्व दिखे तो कान आँख मुँह खोलो

©SHANU  KI सरगम बन्दर

Kausar Khan

बन्दर family

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Umesh p

#पोएम

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Ashish Penart

पोएम

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उम्मीद राह बना देती है हर पत्थर में, कभी कभी मंजिल दिखाती है जुगनू की रौशनी भी। आशीष पोएम

NONNY

नकलची बन्दर।।

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दे ना दखल तू
थोड़ी कर अकल तू
देख तेरी शकल तू
मेरी करे नकल तू
एहसान लेके भुला
एहसान फरामोश तू
दोश तेरी नियत का
कैसे होगा सफल तू
हाँ नकल ची बन्दर तू
जितना काला बाहर उतना अन्दर तू नकलची बन्दर।।

गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

पोएम

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ओस भले ढंक लें
भौतिक दृश्य
पर मन के भाव
तो मन से देखे जाते हैं।

मैं तो देख पाता हूँ
और तुम।।

शुभ दिन।
गिरीश पोएम

Dhiman Tip

#चालाक बन्दर

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D.M Bhosale

पोएम

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मुजोर
मुजोर झालीय नोकरशाही
उन्मत्त झालेत बाबू
कुणाचाच नाही राहिला
यांच्यावरती काबू
काम चिमूटभर
त्याला लाच खिसाभर
सर्वदूर पाहिले तरी
कारभार लालफिती
ढेकणागत गरिबांचे
रक्त सारे पिती
हक्काच्या कामापायी
मारावे किती खेटे
तेंव्हा कुठे ७/१२ सारखा
एखादा कागद भेटे
जाग्यावर नसते कुणीच
मोकळे असतात टेबल
काय बोलावे तर
प्रत्येकावरती पुढाऱ्याचे लेबल
शौचालयाच्या अनुदानासाठीही
द्यावी लागते लाच
कुणाचीच कशी नाही
यांच्यावरती टाच
स्वार्थासाठी साहेबाची
भांडीकुंडी घाशी
हरामी साल्यांची
जिंदगी अशी कशी
              ~DMB पोएम

Tr. Vikash Kumar Pandey

उफ्फ...ये बन्दर !!!

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उफ़क...!! ये बंदर !!
मुझ अभागिन को 
जाने क्यों सताता है ?
मुझ दुखियारी से
उमर की मारी से
क्या इसका नाता है ?
कभी बिखेर देता है
मेरी सब्जियां अरमानों की तरह,
कभी समेट देता है
बिखरी सब्जियां खुशियों की तरह,
इसका समेटना-बिखेरना
मुझे समझ नहीं आता है ।
उफ्फ...!! ये बंदर !!
कभी छेड़ता है मुझे
ज़िद करता है मुझसे
एक पोते की तरह,
कभी सम्भालता है
सहलाता है मुझे
एक बेटे की तरह,
इसकी ज़िद, इसका अपनापन
जाने क्यों मुझे भाता है ?
उफ्फ...!! ये बंदर !!
मेरी भावनाओं को
ज़ुबान ने ठुकराया
बेज़ुबान ने अपनाया,
मेरे कांपते हाथों से
लाठी ने ही हाथ झटका
इसने हाथ अपना थमाया,
इसका अपनापन ही मुझे
गमों से बचाता है ।
उफ्फ...!! ये बंदर !!
अच्छा लगता है 
मुझे जब भी सताता है । उफ्फ...ये बन्दर !!!
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