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Saurabh Dubey
मैं हूँ एक बूढ़ा स्टेशन जिसका नाम है पिरथीगंज, मेरे हालत को देखकर लोग भी अब कसने लगे हैं तंज। फिर आऊंगा,फिर मिलूंगा ये वादा कितनों ने किया था मग़र न कोई आया,न कोई मिला बस इसी बात का है रंज।। अपनी पटरियों से देखा है मैंने बचपन को यहाँ गुजरते, पीहर जाने को बैठी बेटियों को देखा है यहाँ चुपके से संवरते। मैंने भी सोचा था कभी मेरा भी श्रृंगार बदलेगा मग़र हर रोज देखता हूं मैं अपने सपनों को यहाँ बिखरते।। देखता हूँ नीरवता को भंग करती हुई न जाने कितनी ही रेल, कभी मालगाड़ी,कभी पैसेंजर और कभी पंजाब मेल। नीम,पीपल,सफेदा के पेड़ों पर हर दिन ही देखता हूँ मैं यहां नन्ही चिड़ियों का खेल।। रहा हूँ हमेशा से ही मैं अपनों से रीता, गाय, बकरियों के बीच ही मेरा हर दिन है बीता। कभी तो मेरी पूछ-परख करता हुआ कोई आएगा बस इसी आस में अब भी हूँ मैं जीता। -सौरभ दुबे ©Saurabh Dubey मेरे गाँव का स्टेशन
मेरे गाँव का स्टेशन
read moreLata Sharma सखी
जिंदगी गुजरती है कई सारे स्टेशनों से, कुछ में हम ठहरते हैं कुछ हममें ठहर जाते हैं, सुनो! तुम मेरा ऐसा ही कोई स्टेशन हो, जिसमें मैं जरा ठहरी तो वो मुझमें ठहर गया। ©सखी ©Lata Sharma सखी #स्टेशन
Nidhi Pant
लंबे अरसे से घर में रहते हुए जब अचानक बाहर निकलो तो लगता है दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है। और हम वहीं के वहीं हैं। पर सच तो ये है कि जो दुनिया हम देख रहे हैं वो भी घर के अंदर जाने का ही इंतज़ार कर रही होती है।अंदर होते हैं तो बाहर जाने के बारे में सोचकर बाहर निकल आते हैं और बाहर से अंदर जाने की राह देखते रहते हैं। घर को हम सबने एक स्टेशन मान लिया है, जो आने और जाने के बीच एक सुस्ताने भर की जगह है। कभी अगर शहर बदल लिया तो स्टेशन भी बदल जाता है।दूसरी जगह जाकर भी वो घर नहीं बन पाता।उसी तरह दुनिया वहीं की वहीं है बस चेहरे नए हैं। हम भी वहीं हैं और दुनिया भी।😊 #स्टेशन
Neelam bhola
बचपन,जवानी,बुढ़ापा जैसे स्टेशन हो कोई, रेलवे स्टेशन!! या रेलवे स्टेशन में सिमट आये हो ये दौर जिंदगी के, सुबह का स्टेशन मानो नन्हा बच्चा हो कोई, कभी शांत,कभी चाय चाय की किलकारी सा गूंजता, सौंधी सी खुशबु लिये, बच्चे कि हँसी सा, कभी खिलखिलाता,कभी चुपचाप स्टेशन, बचपन का सा स्टेशन,हल्के से आँख मूँदता-खोलता सा दिखता है, न आने-जाने की होड़ कहीं, आदमी ना भागता सा,ज़रा रुका सा दिखता है, दोपहर होते होते स्टेशन पे भीड़ बढ़ती जाती है, जवानी की ही तरह जिम्मेदारी हर तरफ नज़र आती है, कहीं कूली,कहीं चाय,कहीं लोगों का सामान, जवानी का पहर है, ये है मुश्किल,है नही आसान, चारों तरफ रिश्तों और जिम्मेदारियों की तरह लोग नज़र आते है, ना जाने कहाँ जाते है,कहाँ से लौट के आते हैं, कुछ न आने के लिये वापिस, कुछ न जाने के लिये आते है, जवानी भी कुछ इसी तरह के पहलुओं को समेटें है, कहीं खड़े हैं लोग,कहीं बेबस से लैटे हैं, बुढ़ापे की तरह ही ढलती है हर एक शाम स्टेशन पर, कुछ लोगों के लिये खास, कुछ लोगों के लिये आम स्टेशन पर, बुढ़ापे की तन्हाई की तरह, स्टेशन की शाम भी तन्हा होती जाती है, स्टेशन पे अब गाड़ी भी कुछ कम ही आती हैं, न कूली,न चाय न साजो-सामान होता है, बुढ़ापे की ही तरह तन्हा स्टेशन, हर रोज़ आम होता है।।।। ©Neelam bhola स्टेशन
स्टेशन
read moreDr Wasim Raja
रेलवे प्लेटफार्म पर यात्रियों का लगातार आना-जाना है। रेलगाड़ी का काम मानव को गंतव्य स्थान पर पहुंचना है।। रेलवे विभागीय कर्मचारियों द्वारा यात्रा सुगम बनाना है। यात्रीगण कृपया ध्यान दें ,गाड़ी की स्थिति समझाना है।। आइए कुछ क्षण गाड़ियों के इंतजार में सुस्ताना है। गाड़ी आते ही तत्परता पूर्वक होशियारी दिखाना है।। पुछ ताछ केन्द्र का काम पल पल गाड़ी के बारे बताना है। यहां हर गाड़ी का अपना अलग-अलग होता ठिकाना है।। यहां कोई नहीं होता है अपना सब बना रहता बेगाना है। लगातार शोर गुल होता है सबको आपस में बतियाना है।। सही गाड़ी पर चढ़े अन्यथा कहीं और पहुंच जाना है। बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों का बस यही तो अफसाना है।। सजग रहें, सावधान रहें! यही रेलवे का ताना-बाना है। जान है तो जहान है सुरक्षित यात्रा हो,नहीं हड़बड़ाना है।। ©Dr Wasim Raja रेलवे स्टेशन
रेलवे स्टेशन
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