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gudiya
Nature Quotes आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच तब तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी मां मेरी मातृभूमि धान के पौधों ने तुम्हें इतना ढक दिया है कि मुझे रास्ता तक नहीं सुझता और मैं मेले में कोई बच्चे सा दौड़ता हूं तुम्हारी ओर जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हाहाता और उठती हैं शंख ध्वनि कंधराओं के अंधकार को हिलोडती यह बकरियां जो पहली बूंद गिरते ही भाग और छप गई पेड़ की ओट में सिंधु घाटी का वह सेंड चौड़े पत्ते वाला जो भीगा जा रहा है पूरी सड़क छेके वे मजदूर जो सुख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढीले की तरह घर के आंगन में वह नवोढ़ा भीगती नाचती और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोए तक भीगते और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुथंम गुत्था यह सब तुम ही तो हो कई दिनों से भूखा प्यासा तुम्हें ही तो ढूंढ रहा था चारों तरफ आज जब भी की मुट्ठी भर आज अनाज भी भी दुर्लभहै तब चारों तरफ क्यों इतनी बाप फैल रही है गरम रोटी की लगता है मेरी मां आ रही है नकाशी दार रुमाल से ढकी तश्तरी में खुबानीनिया अखरोट मखाने और काजू भरे लगता है मेरी मां आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए यह सारे बच्चे तुम्हारी रसोई की चौखट पर कब से खड़े हैंमां धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर छप्परों से इतना धुआं उठता है और गिर जाता है पर वहीं के वहीं हैं घर से निकले यह बच्चेतुम्हारी देहरी पर सर टेक सो रहे हैं मां यह बच्चे कालाहांडी के यह आंध्र के किसानों के बच्चे यह पलामू के पटन नरोदा पटिया के यह यदि यह यतीमअनाथ यह बंदहुआ उनके माथे पर हाथ फेर दो मां इनके भीगी के सवार दो अपने श्यामलहाथों से तुम कितनी तुम किसकी मन हो मेरी मातृभूमि मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम ही तो हो मुझे प्यार से तख्ती और मैं भेज रहा हूं नाच रही धरती नाच आसमान मेरी कल पर नाच नाच मैं खड़ा रहा भेजता बीचो-बीच। -अरुण कमल ©gudiya #NatureQuotes #मातृभूमि #Nojoto #nojotoquote #nojotohindi #nojotophoto #nojoyopoetry आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच
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read moreसंस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
स्वलिखित संस्कृत लेख भाग१ अद्यत्वे अपि अग्निप्रवेशम अद्यत्वे अपि स्थितिः प्रत्येकस्य महिलायाः अग्निप्रवेशम अस्ति। प्रतिक्षणं ददाति, जीवनस
read moreJayesh gulati
सोलह शृंगार । (Read in caption) ©Jayesh gulati *सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा
*सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा
read moreMiMi Flix
"काले समुंदर के राज" - शिवा और सोनिया को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा है। समुद्र की गहराई में खोए हुए रहस्यमय विमान की खोज, और इसके साथ ज
read moreबादल सिंह 'कलमगार'
काले कमल नैनों पर कजरी.. #badalsinghkalamgar Poetry Love प्यार पर कविता Praveen Jain "पल्लव" Beena Kumari Nitish Tiwary M@nsi
read moreधाकड़ है हरियाणा
बेजुबान शायर shivkumar
White ।। जिस काले गोले से होता है , इस ब्रह्मांड का विनाश है, वह काला गोला महादेव के बस एक सूक्ष्म अंश के वो समान है ।। आदि ना ही अंत जिनका, कंठ समुद्र समान है गले मैं अजय बासुकी, बाल गरुण समान है रूप मानो ऐसा जिसके मुट्ठी में ब्रह्मांड है एक रूप ऐसा जहा ब्रह्मांडधारि पुष्प पे सवार है, जिनका तप सहस्त्र सूर्यो के समान है जिनका मन पूर्ण चंद्र सा महान है, जिनके नेत्र में है बस्ता,वो अंतिम खंड इस समाज का ऐसा ना समझो कि, भैरव बस नाम वो विनाश का । आदियोगी, सर्वयोगी, पूर्णयोगी, महानयोगी । बह रहे हैं गंगाधारी, नदियों के बहाव में चल रहे हैं चंद्रधारी, हिमालय की हवाओं में जिनको महसूस हो रहे जो वो " मां " नाम की पुकार में सहला रहे हैं छाती मेरी ममता के आवास में, रो रहे हैं भोलेनाथ जी भूख की पुकार में ।। लड़ रहे हैं रूद्र बनके, उग रहे हैं पुष्प बनके हंस रहे हैं चंद्र बनके, जल रहे हैं कोयला बनके, हर रहे हैं मां बनके, और मुझे डांट रहे हैं पितृ बनके । ।। जिनके हाथ में है भार मेरे हाथ का, जिनकी आंखों में है तेज मेरी आंख का, जिनकी बुद्धि है शोध मेरे ज्ञान का, महादेव कहो या शिव संपूर्ण अर्थ बस यही काल का ।। ॐ हर हर महादेव ॐ ©बेजुबान शायर shivkumar #Shiva #om_namah_shivay #हरहरमहादेव #हिन्दीकविता #बेजुबानशायर143 #बेजुबानशायर #कविता95 #कविता #omnamahshivaya हर हर महादेव भक्ति सागर भक्त
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read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौल , देश का सैनिक दैनिक ।। ये भी हैं इंसान , हृदय इनके भी होते । यह मत सोचों आप , चैन से सैनिक सोते । कुछ मत पूछो याद ,उन्हें जब घर की आती- किसी किनारे बैठ , सिसक कर वह भी रोते ।। लिए तिरंगा हाथ , बढ़े सैनिक जब आगे । बढ़े देश की शान , खौफ़ से दुश्मन भागे । ऐसे वीर जवान , देश में मेरे अपने- सुनकर दुश्मन आज, रात भर अपना जागे ।। मुझ सैनिक के पास , बहन की राखी आयी । देख उसे अब आज , याद वैशाखी आयी । बहनों का ही प्रेम , जगत में सबसे ऊपर - यही दिलाने याद , घरों की पाती आयी ।। अब भी है उम्मीद , बहन राखी का तेरी । आ जाये जब याद , भेज दे राखी मेरी । तेरा भैय्या आज , दूर सरहद पर बैठा- क्या है तू मजबूर , हुई जो इतनी देरी ।। जिनको दिया उधार , कहीं न नजर वो आते । जग में ऐसे लोग , तोड़ देते हैं नाते । मानो मेरी बात , दूर अब रहना इनसे- ये है काले नाग , समय पाकर डस जाते ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौ
मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौ
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