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neelu
White आप जो सोच रहे हैं उसे होने से कौन रोक सकता है.. ©neelu #love_shayari #आप जो #सोच #रहे हैं उसे #होने से कौन #रोक #सकता है
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी दीपक के जैसे दिल जलते अब दिया तले अंधेरा है मन रोज मारते अपने हम सब दिवालो जैसा हाल है फलता फूलता पूँजी वाद अथाह सागर धन का चंद लोगो के पास है ईर्ष्या घृणा नही उनसे मगर हमारे छोटे संसाधन व्यापारो पर कब्जा उन रहीशजादो का है आटे दूध नमक चिप्पस के बल पर फूलते वे सब धिक्कार उनकी काबलियत पर है एक एक बूँद शहीद हो गयी अंध विकास की घर घर हमारे फूक डाले दिल दुखाकर जनता के, रोशन नही महल होने वाले प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #happy_diwali रोशन नही महल होने वाले है
#happy_diwali रोशन नही महल होने वाले है
read moreneelu
White दिल से बात करने के लिए क्या दिमाग से मजबूत होने की ज़रूरत नहीं पड़ती होगी ©neelu #sad_dp #दिल से #बात करने के लिए #क्या #दिमाग से #मजबूत होने की #ज़रूरत नहीं #पड़ती #होगी
kavi Dinesh kumar Bharti
टीका बन गया रोग ©kavi Dinesh kumar #टीका बन गया रोग कविता
#टीका बन गया रोग कविता
read moreJansurajharnaut
*नवंबर में होने वाले चार उपचुनावों को जीतकर 2025 की लड़ाई 2024 में ही सेटल कर देगा जन सुराज।*
read moreHimanshu Prajapati
White ये कैसा भ्रम है तेरा तेरे होने से कम तेरे ना होने से ज्यादा फर्क पड़ता है..! ©Himanshu Prajapati #sad_quotes ये कैसा भ्रम है तेरा तेरे होने से कम तेरे ना होने से ज्यादा फर्क पड़ता है..! #36gyan #hpstrange
#sad_quotes ये कैसा भ्रम है तेरा तेरे होने से कम तेरे ना होने से ज्यादा फर्क पड़ता है..! #36gyan #hpstrange
read moreAnuradha T Gautam 6280
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी मन के संचित भावो ने ही आवरण भव भवो के ओड़े है आकुल व्याकुल हर्ष विषाद में अनजाने पापो के पाप आत्मा में जोड़े है करो चिकित्सा इनकी अब दस दिन दसधर्म को प्रगटाओ एक एक धर्म का सार समझो बोधिसत्व चेतना तक पहुँचायो कैम्प समझो आत्मशुद्धि का दस दिन विकारों को दूर भगाये सत्य शौच संयम त्याग तपस्या और व्रतों से मुक्तिपथ अपनाकर जन्म मरण का रोग भगाये प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Buddha_purnima जन्म मरण के रोग भगाये #nojotohindi
#Buddha_purnima जन्म मरण के रोग भगाये #nojotohindi
read moreHeer
रोग ऐसा रोग लगा मुझे की, अब नहीं दिखता कोई अपना, जकड़ा मुझको इसने ऐसे की, रहा न कोई अपना। छाया अब घनघोर अंधेरा, कैसी दुविधा है आई, चारो ओर उदासी है लाई, इंतजार जीवन भर पाया। चेहरे पर खुशी नहीं अब, ऐसा साल आया अब, पैसे रहा न अपने रहे,रहा न कोई अपना। शुरुआत में लगा मुझे भी, सलामत घर को लौट जाऊंगा, सब कुछ ठीक फिर हो जायेगा,पहले जैसा बन जायेगा। लेकिन फिर अचानक से, इस बीमारी ने अपना रंग दिखाई, दिखाया मुझको फिर आइना, मुझसे मेरी पहचान कराई। अब पूछते है एक दूसरे से, कब होगा सब पहले जैसा, कब तक रहेगा सब ऐसा, हर सुबह करते है अब सब, सवाल नए एक दूसरे से। कही ऐसा न हो जाए, उड़ जाए पंछी अकेला, रह जाए बस खाली पिंजरा, समझ आया जब रोग ये लगा, रहा न कोई अपना। Alfazii 🖊️💙 ©Heer #रोग