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Stories related to एकलव्य नाटक

VIMALESHYADAV

Prashant

एकलव्य 

द्रोण को अपना गुरु बनाया 
सीखने धनुर विद्या आया 
देख कर अपने प्रिय गुरु को 
मन ही मन बहुत हर्षाया 
लेकर शुभ आशीष गुरु का 
उसने अपना हुनर दिखाया 
जो भी था गुरु ने सिखलाया 
एकलव्य के बलिदान से ही तो 
आज अर्जुन अर्जुन बन पाया

©Prashant #एकलव्य

Ashutosh Bhardwaj

एकलव्य

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माना के अब एक अंश अधूरा है।
पर अब आत्मसम्मान पूरा है।।

बिना ड़रे - बिना छले, कर दिया त्याग।
द्रोण सोचते है बालक एकलव्य अभी भोला है।।




आशुतोष भारद्वाज




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© आशुतोष भारद्वाज एकलव्य

Santosh pawara

एकलव्य

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संतोष पावरा लिखित , 
      आदिवासी पावराबोली भाषा में कथा        
 ( इंद्रधनुष्य नी, एकलव्य धनुष्य ..!! )

      इंद्रधनुष्य नही,  एकलव्य धनुष्य...!

प्रकृति का शिष्य शौर्य वीर एकलव्य था 
जिसनें कुत्ते के मुह में सात बाण इस तरह की 
कौशलोंसे चलाया था ,  की कुत्ते को जरा सी भी 
खरोच  न आयी । और कुत्ते का मुह बंद हो गया । 
दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य ही है तो फिर,  
इस  सृष्टि के सात रंगों को इंद्रधनुष्य क्यो कहे ? 
शब्दो का फेर यह तो सबसे बढ़ा षडयंत्र है! 
 इसलिए इन सात रंगों को
 एकलव्य धनुष्य कहना उचित है । क्यौंकि 
 इंद्र का शस्त्र तो वज्र था न  ।पर 
 आदिवासी बच्चे का जन्म हुआ तो
 उसकी नाभी/ नाळा 
तीर से काटने की प्रथा है 
और किसी भी आदिवासी की 
मैयत पर उसकी चिता के साथ
 उसका धनुष्य  बाण  रखना अनिवार्य है 
उस, मरे आदमी के नाम से  हवा में बाण छोडे जातें है
 तब  विधी होती है यह आज भी हमारी  प्रथा है । एकलव्य

Dheeraj Bairagi

एकलव्य #SADFLUTE

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Aditya Kumar Bharti

#एकलव्य स्वयं गुरु

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जिसका गुरु हो पाषाण का और गंतव्य हो अत्यंत ही भव्य।
स्वयं गुरु बन साधता है लक्ष्य को शौर्य से परिपूर्ण अद्भुत एकलव्य।।

आदित्य कुमार भारती #एकलव्य स्वयं गुरु

AKASH THAKUR🖤

एकलव्य का अंगूठा।

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 एकलव्य का अंगूठा।

gio creation

eklvay

©OMPRAKASH GANWA #एकलव्य #my_ATTITUDE #thought #mystories

अज़नबी किताब

नाटक..

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नाटक.. 
रंगमंच... 
कलाकार... 
कला... 
दर्शक.. 
कुछ ऐसा हुआ, 
में रंगमंच पे खड़ी थी, 
और मेरी कला मेरा हाथ थामे |
दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. 
क्या खूब कला थी, 
खुदा की देख हुआ करती थी |
एक बार बोली बात, 
में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, 
कला थी.. 
वचन निभाने की, 
नाटक बन गयी.. 
रंगमंच पे उस खुदा के, 
में आज एक कटपुतली बन गयी...
वचन निभाती नहीं, 
ऐसा सुना है मेने, 
दर्शकों से |
क्या कहु, 
कला खो गयी, 
पर ये कला उनके लिए कायम है,
जो सही में आज भी वचन को समझते है |
कला खुदा की देन होती है, 
खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. 

-अज़नबी किताब नाटक..

Arora PR

नाटक

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