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Aslam Khaan
यह मुड़ा हुआ कागज नहीं है,धोखा है यह एक कर्म है, भले ही आप इसे नहीं पढ़ते हैं, मुझे लिखने की लत है ©Aslam Khaan यह मुड़ा हुआ
यह मुड़ा हुआ
read moreR A
रास्ते सुनसान थी हमारे चारों तरफ अंधेरों में,एक छोटी सी टीम टीम लाइट थी तभी थोड़ी दूर में एक आहट सुनाई दी पीछे मुड़कर जब देखा तो मानो एक परछाई थी दिल घबराया थोड़ी डर के मारे शरीर कप कपाया फिर समझ में आया यह भर्म है हा जब पिछे मुड़ कर देखा,साले मेरे अपने ही दोस्त खड़े थे ©R A पीछे मुड़ा
पीछे मुड़ा
read moreIzahar Rashid
एक भूला बिसरा ज़माना याद आया कुछ लोग याद आए कुछ फसाना याद आया कुछ अंजाने साथ थे अपनों की तरह कुछ अपने साथ थे अंजानों की तरह जब पीछे मुड़ कर देखा हर सुबह एक नया सवेरा था सोई थी किस्मत ज़िंदगी में अंधेरा था बैचेनी थी जिंदगी में सब कुछ पा कर संभलना न सीखा कई बार ठोकर खा कर जब पीछे मुड़ कर देखा कुछ दुश्मन थे आंखों में प्यार ले कर कुछ दोस्त थे आस्तीन में सांप ले कर आंखों में सपने थे किसी का प्यार लिए दिल में कुछ जज़बात थे चंद अल्फाज़ लिए जब पीछे मुड़ कर देखा राहों पर राहें जुड़ती रहीं चलता रहा मैं और मंज़िल दूर होती गईं ©Izahar Rashid #aahat पीछे मुड़ा........
#aahat पीछे मुड़ा........
read more_itni _si _baat _hai _vandana Upadhyay
हमारे आस -पास पहाड़ होने चाहिए ताकी जब भी हम दुख से भर जाए... उन्हें गले लगाकर मुक्त हो जाएं अपनी अनहद पीड़ाओं से.... ©वंदना उपाध्याय पहाड़
पहाड़
read moreShivani Thapliyal
*मेरु पहाड़* मेरी अलग पहचान ची ; मैं उत्तराखंडी छो , जाणा छीन लोग मीता छोड़ी यख बतीन। कुछ यख छीन मेरा भूमयाल मां, क्वै क्वै लुकारी मैमा जान माया शक्ति ची। गो खाली वैग्या जन विनाश वैगी होलू मेरू , यूँ आँखी तरसी तूता देखरो आज भी । कुछ लोग घोर कुड़ी पुंगरी छवारी यन चलया, जन तुन पलटी भी नी देखर होलू अब। गो सुन करी कनके बसोला कुड़ी शहर मां, अपणी भाषा भूली कन बोल लेंदा शहर की भाषा । गो का बटा भूली के कन जाण लगया छोदा बटा बतीन, मेता भूली कर रोंदा गुमजवारू उन। जे चौक मा नालोडा ओर लोग बैठया रोंदा छा , तो देखी ता तख आज घास जमी छो । जै भीतरू मनखी रोंदा छा, तख मुशुन अपणु घोर जमेली। ज्यूँ पुंगुरू मा सदा अनाज रोंदू छो, तख बसेलु घासन आणु बड़ेली। कन पैसा वे कन शहर वे, जख पाणी भी बीन पैसान नी मीलदू। यख मनखी मनखी नी रे , सब मनखियों मा स्वार्थ वैगी। ©Shivani Thapliyal पहाड़
पहाड़
read moresandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3
इस तरह पहाड़ तोड़ा गया... गंगा आज भी रो रही है..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 पहाड़
पहाड़
read moreउमेश
तुम जब आओगी मेरे पहाड़ , मैं तुम्हें उस धार में ले जाऊँगा , जहाँ से दिखता है हिमालय , और उससे आती इक नदी , दृश्य कितने नयनाभिराम , उस धार के ढुंग पर , बैठकर हम करेंगे ढेरों बात , मैं तुम्हे दूँगा इक बुराँश का फूल , जुड़े में गुँथने के लिये नहीं , खाने के लिये , राधे राधे ©उमेश पहाड़
पहाड़
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