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Stories related to अर्जित अवकाश के नियम

Author Munesh sharma 'Nirjhara'

जीतना और हारना नियम जीवन का #Sunday #SundayThoughts #writerscommunity Shayari #muktak #hindishayari

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paimel preet kaur

दुनिया जरूरत के नियम पर चलती है।#Motivation poetry #TrueWords

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Shiva Sarika

#किस नियम से चलतीहै जिन्दगी

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ARBAJ Khan

काली दुनिया के शैतान के खोफ

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White शैतान की दासतान
वे कहते है। जब आप आश की एक छोटी - सी  उमीद निराशा में बदल जाती है। तब काली दुनिया से कोई हमारे लिए आएसान करने के लिए तैयार रहता है।
फिर वों कहते है। ना हर आएसान की कोई न कोई कीमीत होती है।

©ARBAJ Khan काली दुनिया के शैतान के खोफ

Satish Kumar Meena

अनूठा नियम

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Imran Shekhani (Yours Buddy)

बस यही नियम रखो #Original #ownvoice #thought #lifequotes #philosophical #fundaoflife #YoursImran #YoursBuddy

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रॉयल वाटिका

दिल के अरमान आंसुओं में बह के

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Kesh Karan nishad

##प्रकृति का नियम##

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बाबा ब्राऊनबियर्ड

ज्यादा चक्र म मत पड़ो, सामाजिक नियम और मानविक नियम बिल्कुल अलग हैं। 🙏

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जिनकी जिंदगी में सब उनके अनुरूप चला,
वो नास्तिक कहलाए।
"मै" बड़ा है उनके लिए।

जो संघर्ष  के बावजूद तमाम ना हासिल कर पाए
वो आस्तिक कहलाए।
दोष रोपण के लिए ईश्वर को तलाश लिया।

ओर दोनों ही लगभग निरर्थक हैं or मूल से दूर हैं।

©बाबा ब्राऊनबियर्ड ज्यादा चक्र म मत पड़ो,
सामाजिक नियम और मानविक नियम बिल्कुल अलग हैं। 

🙏

person

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

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गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

©person गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?

यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि
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