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kavi anil (nina)
#SolarEclipse2019 ऐ डूबते हुए सुरज एक बात जान ले तु मुझे अंधकार नह दे सकता क्योंकि नीना एक सितारा है जो कि रात को चमकता है नीना
नीना
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आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा लेकिन एक बात और देखी बिछङने की वजहा तुम हो नीना
नीना
read moreNeena Jha
जय माँ वीणा वादिनी स्मृति अच्छी स्मृति से चहक उठती हैं दीवारें भी, बुरी स्मृति में तो कैद लगे प्रकृति भी। शख्स एक वही है दोनों जगह, मेरे दिल और उसके दिमाग में भी। नहीं मानता मन दूर होकर उससे, मगर आता नहीं मुझे, किसी को मनाना भी। बीते हैं कुछ ही पहर अभी वियोग को, लगे सदियों से सूना यादों का कारवां भी। आज याद आ रहे सारे काम पुराने, जो इन्तज़ार में थे एक अर्से से कभी। कब तक निहारूं ये दीवारें ये प्रकृति, दौड़े निगाहें यत्र-तत्र अनमनी उलझी भी। वियोग एक पल भाता नहीं संजोगिनी को, कैसे कहूँ सूनी पड़ीं हैं तुझ बिन ये स्मृतियाँ भी। नीना झा ©Neena Jha # नीना_झा #neverendingoverthinking
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ऋतु पर राज कर इठलाता हूँ, प्रकृति का यौवन, सृजन मैं हूँ, पंछी की चहक का सबब हूँ मैं, अरे! मैं ही हर अधर की मुस्कान बसंत हूँ। ©Neena Jha #नीना_झा #neverendingoverthinking #बसंत
#नीना_झा #neverendingoverthinking #बसंत
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एक प्याली चाय सी उबलती जा रही है ज़िंदगी, थमने का नामो निशान नहीं कहीं, उफ़ान पर उफ़ान मानो तूफ़ानों का अम्बार लगाकर, अनुभव रूपी पकी जा रही है ज़िंदगी। न कोई हसरत बाकी है, न किसी तमन्ना का इल्म, बस प्रार्थनाओं से भरपूर महकी जा रही है ज़िंदगी। अब पत्तियों की भीड़ में अपनी शरारती अदाओं का अस्तित्व पाने, लड़ती ही जा रही है वो बचपन वाली, लौंग लाची-सी ज़िंदगी। अखिरकार, एक कप चाय का गर्माहट भी ठंडी पड़ जाती है, जब एक लंबा सफ़र तय करने पर छन के प्लेट में बिखर जाती है जैसे ज़िंदगी। नीना झा ©Neena Jha #चाय #नीना_झा #neverendingoverthinking
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मन भटक रहा है मेरा तेरे संसार में आकर, जीवन हुआ है क्षीण कैसे, क्यों, के जवाब न पाकर, मन मंत्री बन रौब जताता है मेरी ही देह पर, मगज वक्ता सा चुप्पी साधे, अनहोनी होते देखकर, मन भटक रहा है मेरा तेरे संसार में आकर। कहाँ हो कब आओगे कल्कि अवतरण पाकर, दुःख दूर न होगा तेरा भी इस संसार में जी कर, तू दूर ही रहना, दिल में बसना, देना सबको आशीष, मारती - मरती है भीड़ यहाँ एक-दूजे से जलकर, मन भटक रहा है मेरा तेरे संसार में आकर। कैसे देखूँ तुझे साँवरे, कैसे पाऊँ साथ तेरा, क्यों तरसे नैन सुख को, क्यों चाहूँ एक मार्ग नया? जब होती ही नहीं पूरी स्वर्ण मृग की मृगतृष्णा, क्यों करूँ साजिश दिन-रात तुझे रिझाने की भला ? मन भटक रहा है मेरा तेरे संसार में आकर। ©Neena Jha #neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण