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Pushpendra Pankaj
यादें बचपन की --------------------------------- अपने गाँव की बूढ़ी हवेली , बालपन की मूक सहेली। मैं और मुझसे भी पहले की कितनी पीढ़ी इसमें खेली ।। नौक-झोक ,व्यंग्य-खिंचाई, हमने सीखीं, संग-संग रहकर । सुबह झगङते ,शाम को मिलते , आत्मीय लहरों में बहकर।। यादें ताजा कर जाती है , नए हो जाते पूर्व संस्मरण । जी करता ,बच्चा बन जाऊँ, जब करता हूँ कभी स्मरण ।। पुष्पेन्द्र "पंकज " ©Pushpendra Pankaj #GateLight बालपन की यादें
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