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Vinod Kumar
बादल के झुमके में नजाकत अलग है ! प्राकृतिक शोखियों से मेरा नाता बहुत है !! नीले आसमां और उंचाईयों का चर्चा अलग है ! पगली लड़की के खातिर शायरी करना बहुत है !! ...... विनोद ' कुमार !! कुछ खिसक गए
कुछ खिसक गए
read moreArun kr.
लूंगी भुइंया वजह आपके बंजर में भी हरियाली आई साथ मे गांववालों के जीवन में खुशहाली आई आसान नही था अकेले कर पाना पर हर नामुमकिन संभव हुआ 30 वर्ष लगे 3 किलोमीटर नहर बनाने में पर वक़्त न लगा आपके जय जयकार होने में उम्मीद औऱ आश जगा रहा सार्थक होगा ये सपना यही आश लिये इसमें लगा रहा बहुतों ने आपके मन को तोड़ा होगा अकेला नही कर पाएगा बोला होगा पर जुनून न छोड़ी आपने सच कर दिया सपना सबके सामने है आप जनजीवन के प्रेरणा स्रोत नमन है आपको आपके हौसलो पर जो माँ,माटी और मानुष को शीतल किया फिर से दशरथ मांझी के बाद बिहार का नाम रौशन किया। #लूंगी भुइयां
#लूंगी भुइयां
read moremeena
याद आएगी हर रोज, मगर तुझे आवाज न दूंगी लिखूंगी हर दिल की कसक तेरे लिए मगर तेरा नाम न लूंगी। ©meena #नाम न लूंगी
#नाम न लूंगी
read moreShivraj gupta
ऐसी लागि लगन हो गई तुज में मगन बरखा ने को बुलाई रही है विनती करो सविकार माहा प्रभु जोगन आरती गई रहीं हैं आरती गाई रही है
आरती गाई रही है
read moreManoj Srivastava
तुमसे बिछुड़ जाने के बाद भी तुमको बिसार देने का प्रयास नहीं करूँगा ऐसी कोई कसम तो, नहीं उठाई थी ‘मैंने’, तिसपर भी, कोई कड़ी रह गई है ऐसी, जो बॉंधती है मुझको-तुमसे तभी तो ‘मैं’ सर्वदा तुम संग बिताये पल-क्षणों को बीनकर, चुनकर, सजाकर बड़ी तन्मयता से याद करने लगता हूँ ‘तुमको’ निरन्तर!!!! हॉं कदाचित् यही सत्य है......कि तुम और मैं....नहीं नहीं....’हम’, ऐसे जुड़े रहें हैं, कुछ इतनी अंतरंगता से, कि प्रेम के भावुक सागर पर कसमें -वादों के किसी सेतु की आवश्यकता ही नहीं महसूसी ‘हमनें’। रक्ताभ आभा लिये, मंदसिक्त मुस्कान से सज्जित तुम्हारे होंठ, जिन्होने मुखर हो...अबतक, कुछ भी नहीं....कुछ भी तो नहीं कहा था ‘मुझसे’, किन्तु, तुम्हारे कमलवत् शब्दों की बाढ़ से भरे युगल नेत्र पटलों ने, बोझिल हो - बन्द होते - खुलकर, बार बार .....बहुत बार एक एक कड़ी ‘स्मरित’ है, कितना कुछ कहा है ’मुझसे’। हमारा और तुम्हारा ‘मैं’ से अलग करता रिश्ता, ‘हम’ से भी पार, कुछ.....हॉं.....कुछ कुछ, नयेपन से भरा, वह अविच्छिन्न सम्बन्ध, जो कहे - अनकहे से भी परे, कहीं एक बिन्दु पर जाकर, हुआ था स्थापित.....दृढ़ता से। नीत नये सिरे से, ढूँढ रहा हूँ, वही बिस्मृत ‘नींव’ । मनोज श्रीवास्तव नींव जो खो गाई है
नींव जो खो गाई है
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