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kavi manish mann

⭐अपरिचित⭐

मंजिल दोनो की एक रही,साधन दोनो का एक रहा।
अपरिचित प्रेम से एक दिवस,बस नयनों से संवाद हुआ।

अंदर  तो  थी  उथल पुथल,
बाहर मन था   शांत सरल।
उसकी झील सी आंँखों को,
मन देख हुआ अत्यंत विह्वल।
जीवन में पहली बार सखे,ऐसा एक अपवाद हुआ।
अपरिचित प्रेम से एक दिवस,बस नयनों से संवाद हुआ।

मन जान लिया मन की भाषा,
क्या   जानेंगे   इसरो   नासा ।
मन   में   चित्र  बसा   उसका,
बंद नेत्र किए एक आह भरा।।
मन ही मन उस परमपिता का, शत शत बार अभिवाद हुआ।
अपरिचित प्रेम से एक दिवस,बस नयनों से संवाद हुआ। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

है अजब तमाशा दुनिया में।
बस झगड़ा झांसा दुनिया में।

अम्नो चमन था पहले मगर,
अब खून खराबा दुनिया में।

सच कहने वाला मुजरिम है,
और झूठ खुदा सा दुनिया में। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

जो कल नहीं निकले सुनो वो आज निकलेंगे।
वो देश के खिलाफ ले आवाज निकलेंगे।
जब तक नहीं समझाओगे उनकी ही भाषा में,
पत्थर लिए हाथों में पत्थरबाज निकलेंगे। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann


भूल न हो  भगवान नहीं हूंँ।
लेकिन   बेईमान  नहीं   हूंँ।
सही गलत में फर्क न जानूंँ,
ऐसा  भी  इंसान  नहीं  हूंँ।  #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

छत टपकती बिस्तरे पर जोर की बरसात से।
कंपकपा–सी रूह जाती है भयानक रात से।

कंपकंपाती ठंड में इक दुधमुंहे बच्चे को ले,
खींचती हो आत्मनिर्भर नारी रिक्सा रात में। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

रूठता है कोई’ गर तो रूठ जाने दो उसे,
टूटता है कोई’ प्याला  टूट  जाने दो उसे।1

गिड़गिड़ाते हो भला क्यों पत्थरों के सामने,
भूलता है  कोई’ गर तो  भूल जाने  दो उसे।2

मांगते  हो मन्नतें क्यों  टूटे’ तारों  से भला,
सूखती गर कोई’ डाली सूख जाने दो उसे।3

मिल नहीं पाती किसी को सारी’ की सारी खुशी,
जो मिले थोड़ी खुशी भी पास आने दो उसे।4

 #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

वृक्षों से प्राणी जगत के, वृक्षों से संसार।
यदि वृक्ष न हों जगत में, तो जीवन बेकार। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

जिंदगी मुझे भारी लगने लगी,
  मौत ज़िंदगी से प्यारी लगने लगी। #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

कवि मनीष ‘मन’
                    कौशाम्बी,उत्तर प्रदेश से हैं।
 ये स्नातक करने के पश्चात हिंदी साहित्य से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन्हें बचपन से ही कविताएंँ पढ़ने
में अत्यधिक रुचि थी और इसी रुचि ने इन्हें
कविताएंँ लिखने की प्रेरणा दी।

कवि मनीष ‘मन’ जी कहते हैं–
“जाति,धर्म,संप्रदाय के झगड़े,बढ़ती अश्लीलता,
युवाओं में उच्च,पवित्र विचारों का अभाव,
संकृति का पतन, ये सारी चीजें हजारे राष्ट्र
 को कमजोर करने के लिए पर्याप्त हैं। हम
 प्रत्येक नागरिकों को चाहिए कि इस विषयों
 पर अपने अपने तरीके से सुधार करने का  प्रयत्न करें। मेरी रुचि कविताओं
 में में है।अतः मैं इस माध्यम से इन बुराइयों
 को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहा हूंँ।” #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

अभी भी हौसला है ’मन’ अभी हारा नहीं हूंँ मैं,
जुनूंँ है आज भी दिल में यहांँ कुछ कर दिखाने की। #मौर्यवंशी_मनीष_मन
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