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Aurangzeb Khan
एक मैं ही नहीं जो तन्हा सफर करता हूं ऐ औरंगज़ेब मैंने उसे पपीहे को भी खुश देखा है जिसका कोई हमसफ़र ही नहीं ©Aurangzeb Khan #तन्हाई#मेरी
Sumit Pandey
तेरे बाद हम तन्हाई ही रहेंगे #Shaayari #Reels #nojotihindi दोस्ती शायरी शायरी वीडियो शायरी हिंदी में 'दर्द भरी शायरी'
read moreRamkishor Azad
शाम को तारों के उजालों में उन्हें देखने की जिद्द करनी लगी आंखें, बैठा था छत पर तन्हाई की नजरे ढूंढने लगी उन्हें जिसे हमने चाहा हैं! डीयर आर एस आज़ाद... ©Ramkishor Azad #love_shayari #शायरी #तन्हाई #rsazad #Trending #Love #viral #mohabbat #चाहत #Reels लव शायरियां लव सैड शायरी लव शायरी हिंदी में खतरनाक लव स्
FAKIR SAAB(ek fakir)
तन्हाई है वीराना है खामोशी है सन्नाटा है ये बस्ती उजड़ चुकी है अब यहां कौन आता जाता है ©FAKIR SAAB(ek fakir) #Couple तन्हाई
#Couple तन्हाई
read moreBrsolanki
White दरमियान तो हरदम रहे करीब रहे ना सके। सैलाब था दिल में लब्ज़ कुछ कहे ना सके। आज भी रूहमें मौजूदगी चांद सी रोशन है, हासिल रहे हर लम्हा,तुम हमे ढूंढ ना सके । अंदर ही अंदर जलाती रही तन्हाई की आग, आए गए बारिशोंके कई मौसम बुज ना सके। ©Brsolanki #तन्हाई
Rudradeep
White सच्चाइयों से मुंह मोड़ना गवारा नहीं है हमें जीने के लिए फिर भी बहाना सीखा है जिस महफ़िल में मिलती हैं सदा तन्हाईयां उस महफ़िल से भी दिल को लगाना सीखा है ©Rudradeep #महफिल #हम #तन्हाई
mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"
White मेरी तन्हाई का सबब है अपना। इक तेरे सिवा यहां सब है अपना। वो भी चुप बैठ गया बुतखाने में। में समझता था कि रब है अपना। आप से ख़फा, आप से गिला अरे! मेरे हुज़ूर ये मसला कब है अपना। आपको चहते है आपको मानते है। आपको चाहना ही मतलब है अपना। मेरी हर धड़कन आपके नाम हो। जय बस यही चाह है अब अपना। मृत्युंजय विश्वकर्मा ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" #Sad_Status तन्हाई #Tanhai #lonely #yad #Love #bestghazal #bestshayari #mjaivishwa शेरो शायरी 'दर्द भरी शायरी' गम भरी शायरी शायरी लव
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read moreShashi Bhushan Mishra
White महफ़िल में भी मिली अकेली तन्हाई, गम के पन्ने पलट रही थी रुस्वाई, गिरा ताड़ से अटका किसी खजूरे पर, बेचारे ने कैसी है किस्मत पाई, बैठ गया खालीपन उसके जाने से, कभी नहीं हो सकती जिसकी भरपाई, बिन बरसे ही सावन घर को लौट गया, मन के अंदर ख़्वाहिश लेती अंगड़ाई, दिन ढ़लने को आतुर मेरे आंगन का, लगी छुड़ाने पीछा अपनी परछाई, आम आदमी की थाली से गायब है, कोर-कसर पूरा कर देती महंगाई, पैसों से तक़दीर की टोपी मिल जाती, दूर सिसकती बैठी मिलती तरुणाई, दिल की बात सुनाऊँ मैं किससे गुंजन, आहत करती मन को यादें दुखदाई, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #मिली अकेली तन्हाई#
#मिली अकेली तन्हाई#
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